हमारा पानी हमें ही बेच कर मालामाल हो रहे प्लांट संचालक
1 लीटर पानी फिल्टर करने में 3.5 लीटर पानी होता है बर्बाद
Tarun chaubey
Ranchi : राजधानी रांची सहित राज्य भर में गाइडलाइन की अनदेखी कर वाटर प्लांट चला रहे कारोबारी हमारा पानी हमें ही मनमाना कीमत पर बेच कर हर रोज लाखों की कमाई कर रहे हैं. दरअसल प्रदेश भर में ग्राउंड वाटर का प्रदूषित हो गया है. ग्राउंड वाटर प्रदूषित होने की वजह से लोगों को पेट जनित कई बीमारियां हो रही हैं. इससे बचने के लिए रोजाना हजारों लोग बोतलबंद पानी खरीद कर पी रहे हैं. बोतल बंद पानी हमारे ही हिस्से का है. बोरिंग/ डीप बोरिंग कर हमारे हिस्से के पीने के पानी को बोतल/जार में अवैध ढंग से संचालित वाटर प्लांट के संचालक बेच रहे हैं. प्रदेश में तेजी से पानी का कारोबार बढ़ा है. सरकारी निर्देशों की अनदेखी कर धड़ल्ले से शहर के मुख्य इलाकों के साथ-साथ गली-मुहल्लों में भी बॉटलिंग प्लांट लगाकर पानी की बिक्री मनमाना कीमतों पर की जा रही है. आम लोगों को पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन पानी के धंधेबाज अपनी मर्जी से बिना किसी की अनुमति के ही प्लांट लगाकर कमाई कर रहे हैं.
गर्मी शुरू होते ही हो जाती है पानी की किल्लत
राजधानी रांची सहित प्रदेश के कई हिस्सों में गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत से हर रोज हजारों लोगों को जूझना पड़ता है. शहर के कई क्षेत्रों में जलस्तर नीचे जाने के कारण लोग प्राइवेट वेंडर्स से पानी खरीदने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में शुद्ध पेयजल की लोगों की डिमांड के चलते शहर के हर गली-मुहल्ले में आरओ वाटर प्लांट सह दुकान खुल रही है. राजधानी के ही अलग-अलग हिस्सों में फिलहाल 1000 से ज्यादा आरओ वाटर प्लांट संचालित हो रहे हैं. यह सभी प्लांट बिना किसी गाइडलाइन के अवैध तरीके से चल रहे हैं. ऐसे प्लांट या दुकान 20 से 30 रुपये में 20 लीटर पानी बोतल में भर कर बेच रहे हैं.
हर माह 1.5 करोड़ रुपये बोतल बंद पानी पर खर्च कर रहे लोग
बोतल/जार बनाने व सप्लाई करनेवाली कंपनियों की मानें तो रांची शहर में ही हर रोज पांच लाख रुपये के बोतल बंद पानी की खपत है. यानी शहरवासी हर माह 1.5 करोड़ रुपये बोतल/जार बंद पानी पर खर्च कर रहे हैं. इस कमाई का शतप्रतिशत हिस्सा प्लांट संचालकों की जेब में जा रहा है. इससे सरकारी कोष में फूटी कौड़ी नहीं जा रही है. सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा है. एक तरह से प्लांट संचालक सरकार से बचते हुए करोड़ों की अवैध कमाई कर रहे हैं. इसके अलावा 20 लीटर जार के पानी पर लोग रोजाना 50 लाख रुपये खर्च कर रहे हैं. दूसरी तरफ रांची सहित प्रदेशभर में पेयजल विभाग और नगर निकाय द्वारा रोजाना जलापूर्ति की जाती है, जो पर्याप्त नहीं है.
निगम ने प्रस्ताव तैयार किया, विभाग ने चुप्पी साधे रखी
रांची नगर निगम ने 2017 में पानी के अवैध करोबार को रोकने के लिए प्रस्ताव तैयार किया था. उस प्रस्ताव को नगर विकास विभाग को भेजा था, मगर सात साल गुजरने के बाद भी प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका. प्रस्ताव में बताया गया था कि शहर के वाटर प्लांटों में वाटर मीटर लगाया जाये, जिससे पता चल सके कि कितने पानी का इस्तेमाल प्लांट/ दुकानों द्वारा किया जा रहा है. इसके अलावा प्रस्ताव में जल संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने की सलाह दी गयी थी, जिससे ग्राउंड वाटर की भरपाई हो सके.
लाखों का पानी नाले में बहाते हैं प्लांट संचालक
रांची में संचालित वाटर प्लांट हर दिन लाखों लीटर पानी का उपभोग करते हैं. डीप बेरिंग के सहारे भूगर्भ जल का दोहन करते हैं. मगर ऐसे प्लांट, जो जल का दोहन कर बेच रहे हैं, इनसे फूटी कौड़ी भी सरकार को नहीं मिलती है. इसी का नतीजा है कि ये जितना पानी जार में भरते हैं, उतने ही पानी को नाली में भी बहा देते हैं. प्लांटों को चलाने के लिए प्लांट संचालक और कंपनियों द्वारा तीन से चार बोरिंग कराकर रखी गयी. वहीं एचईसी और मेकॉन क्षेत्र में जलापूर्ति वाले पानी को ही बोतल में बंद कर बेचा जा रहा है.
क्या है नियम
देशभर में वाटर प्लांट संचालन करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियम लागू किये गये हैं. केंद्र के नियम की बात करें, तो वाटर प्लांट चलाने के लिए क्वालिटी कंट्रोल से लाइसेंस, नगरपालिका से अनुमति प्रमाण-पत्र, संबंधित अस्पताल से अनुमति प्रमाण-पत्र व पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए लैब का प्रमाण पत्र होना चाहिए. साथ ही सारी रिपोर्ट प्लांट की दीवार पर लगानी है, जहां ग्राहक देख सकें. इसके साथ ही प्लांट में पानी की नियमित चेकिंग के लिए एक निजी लैब और लैब टेक्नीशियन होने चाहिए. लेकिन राजधानी रांची सहित राज्य भर के किसी भी वटर प्लांट में इस नियम का पालन नहीं हो रहा है.
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