- स्कूल की जमीन को निजी जमीन बता रहा एक समुदाय
- ग्रामीणों ने डीसी को दिया आवेदन, जांच की मांग की
Hazaribagh : जमीन विवाद को लेकर हजारीबाग जिला सुर्खियों में है. यहां कभी वन विभाग की जमीन, तो कभी सरकारी जमीन को अपना बताकर कब्जा कर लेना भू-माफियाओं की फितरत बन गई है. 20 साल पहले का वक्त वह भी था जब गांव के संपन्न लोग पूरे क्षेत्र की भलाई के लिए अपनी निजी जमीन सरकार को दान देते थे. उस जमीन पर कहीं स्कूल, तो कहीं अस्पताल बनाया जाता था.
लेकिन अब अपने निजी स्वार्थ के लिए पूर्वजों द्वारा दान दी गई जमीन पर वंशज फिर से कब्जा करना चाहते हैं. उक्त जमीन पर करोड़ों रुपयों की लागत से स्कूल, अस्पताल बन चुके हैं और उसके भवन के संरक्षण की जिम्मेदारी भी गांववालों के पास ही है. ग्रामीणों को उस भवन का लाभ भी मिलता है. लेकिन, कुछ सफेदपोश और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग जमीन विवाद करवा कर अपनी रोटी सेंकना चाहते हैं. ऐसा ही मामला जिले के इचाक प्रखंड के डुमरौन से सामने आया है. यहां 1970 से गांव के ही एक व्यक्ति ने सरकार को स्कूल बनाने के लिए जमीन दिया था. इसके बाद सरकार ने उक्त जमीन पर प्राथमिक स्कूल के नाम पर भवन बनवाया और गांव के ही दोनों समुदाय के बच्चे यहां पढ़ते थे.
जब गांव की जनसंख्या बढ़ती गई और फिर सरकार के द्वारा नया स्कूल बनाया गया, जिसके बाद एक समुदाय के लोगों ने अपने बच्चों को नये स्कूल में डाल दिया. अब गांव के एक समुदाय के लोग पुराने जमीन को अपनी जमीन बता रहे हैं. स्कूल के मुख्य गेट पर मीनार तक बना दिया गया है. इससे दूसरे समुदाय के लोगों में आक्रोश व्याप्त है और इस बात को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाने लगी है. जहां एक पक्ष स्कूल की जमीन को सरकारी जमीन बता रहा है, तो दूसरा पक्ष अपनी जमीन बता रहा है. ऐसे में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है और गांव में भी तनाव की स्थिति भी उत्पन्न हो रही है. इस मामले को लेकर ग्रामीणों ने उपायुक्त नैंसी सहाय को आवेदन देकर जांच एवं विवाद सुलझाने की मांग की है.
‘किसके इशारे पर बनाया गया मीनार, हो जांच’
इस संबंध में दर्जनों ग्रामीणों ने बताया कि उर्दू स्कूल की जमीन किसकी थी, यह केवल पूर्वज ही बता पाएंगे. लेकिन इस जमीन पर उर्दू स्कूल पूर्व से था और आज भी है. इसके लिए सरकार ने अनुदान भी दिया था. इस स्कूल में सरकार ने अपने हिसाब से भवन और गेट बनाया था, तो फिर इसमें धर्म और समुदाय कहां से आ गया. इस गेट पर कम समय में मीनार किसके इशारे पर बनाया गया, यह जांच का विषय है. गौरतलब हो कि इचाक बीएलओ कार्यालय की दूरी मात्र 5 किलोमीटर है और सीआरपी का आना-जाना होता है. वहां स्कूल के मुख गेट पर मीनार बना दिया गया, जबकि स्कूल सचिव भी स्कूल में उपलब्ध रहते हैं. लेकिन, उन्होंने भी विभाग को जानकारी देना जरूरी नहीं समझा. वहीं, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कभी स्कूल की जांच नहीं की.
‘छुट्टी का फायदा उठा कर बना दिया मीनार’
बीआरसी प्रभारी दीपक कुलकर्णी ने बताया कि 22 जनवरी को स्कूल बंद था और छुट्टी का फायदा उठा कर कुछ लोगों ने स्कूल के गेट पर रेडीमेड मीनार लगा दिया और वहां के एक समुदाय के लोग स्कूल की जमीन को निजी जमीन बता रहे हैं. उनलोगों का कहना है कि उस जमीन को सरकार को मौखिक तौर पर दान में दिया गया था और उक्त जमीन मदरसा के नाम पर है. सरकार का बना हुआ स्कूल और गेट सुरक्षित है, पर एक नए गेट का निर्माण किया गया है और उस गेट पर मीनार बनाया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि अब विवाद बढ़ते जा रहा है. दूसरे समुदाय के लोग आक्रोशित हैं. उनका कहना है कि रामनवमी का जुलूस उसी गली से गुजरता है और ग्रामीण क्षेत्र में झंडा बड़ा होता है. अगर किसी प्रकार का विवाद हुआ, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
‘मौखिक तौर पर सरकार को दी गई थी जमीन’
इस संबंध में प्राथमिक विद्यालय के सहयोगी शिक्षक अकबर खान ने बताया कि यह 12 डिसमिल का प्लॉट है. 1970 में पूर्वज के द्वारा सरकार को मौखिक तौर पर जमीन दी गई थी. उस वक्त इसी स्कूल में दोनों समुदाय के बच्चे पढ़ते थे. बाद में बहुसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए स्कूल बनाया गया, फिर यहां से बच्चे चले गए. अब इस विद्यालय में केवल अल्पसंख्यक बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन सभी विषयों की पढ़ाई होती है. बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं है. जमीन का मुख्य गेट आज भी उसी तरह है, जैसा सरकार ने बनाया था. इस पर अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा मदरसा की जमीन कह कर मीनार बनाया गया है. इस मामले को लेकर विभाग भी जांच कर चुकी है. इधर ग्रामीणों का कहना है कि बिना कागजात देखे सरकार ने इस जमीन पर स्कूल का भवन व गेट कैसे बनाया?
इसे भी पढ़ें : CGL परीक्षा संपन्न कराने वाली एजेंसी सतवत इन्फो सोल प्राइवेट लिमिटेड को हाईकोर्ट से झटका
Leave a Reply