Anand Kumar
Ranchi : बरियातू में एक उपाध्याय जी हैं. घर पर खाना पहुंचाते हैं. कांके रोड में निशा जी लोगों को भोजन मुहैया करा रही हैं. ऐसे ही रांची के कोने-कोने में लोग हैं. इस कोरोना विस्फोट में ये लोग आइसोलेशन में रह रहे मरीजों और उनके परिजनों को खाना, राशन और दूसरी चीजें पहुंचा रहे हैं. दवा दुकानदार हैं, जो घर पर दवाइयां भेज देते हैं. हर मुहल्ले में किराना दुकानदार हैं, जो अपने ग्राहकों के घर सामान पहुंचा रहे हैं. दूध पहुंचाते हैं. जरूरत पड़ने पर दुकान से दवा भी खरीद कर ला देते हैं.
आधी रात को भी जरूरत पड़ने पर इन्हें फोन कीजिये, ये लोग कहीं से सामान जुगाड़ कर आपके घर पहुंचा देंगे. दुकान बंद होगी, तो अपने घर से सामान लाकर देंगे. ये लोग कोई डिलीवरी चार्ज नहीं लेते. पैसा न हो, तो भी सामान दे जाते हैं. कहते हैं, पैसा कहां भागा जा रहा है. ऐसे दुकानदारों और मददगार लोगों की संख्या सैकड़ों में है. और ये छोटे दुकानदार ऐसे लोगों की मदद करते हैं जो मध्यम और निम्नवर्ग से आते हैं. ये बड़े दिलवाले छोटे दुकानदार ही असली कोरोना वीर हैं, लेकिन राजधानी रांची के उपायुक्त छविरंजन प्रचार करते हैं बड़ी एफएमसीजी (उपभोक्ता सामग्री बेचनेवाली) कंपनियों और सुपरमार्ट का. वह भी सरकारी प्रतीक और मुख्यमंत्री की तसवीर लगाकर. जैसे यह कोई सरकारी योजना हो. और सिर्फ प्रचार ही करें तो कोई बात नहीं. इन्होंने बाकायदा होम डिलीवरी का रेट भी तय कर दिया है. 50 रुपये प्रति डिलीवरी.
डीसी साहब को या तो पता नहीं कि 50 रुपये में एक परिवार दिन भर का भोजन बना लेता है. अगर चार-पांच लोगों का कोई परिवार चावल के साथ दाल अथवा सब्जी खाता है, तो 50 रुपये में दो वक्त का खाना आराम से खा सकता है. लेकिन दुकानों का प्रचार करने की हड़बड़ी में रांची के डीसी साहब शायद भूल गये कि एक आम परिवार विशाल मेगामार्ट, सुविधा स्टोर और बिग बाजार कब जाता है. वह तब जाता है, जब वहां कोई बड़ी सेल लगी हो. वह चंद रुपये बचाने की खातिर वहां जाता है. एमआरपी के साथ होम डिलीवरी चार्ज जोड़ कर तत्काल पेमेंट करना वह अफोर्ड नहीं कर सकता. जो बेचारे ऑक्सीमीटर जैसी जरूरी चीज नहीं खरीद पा रहे, उन्हें आप बिग बाजार का नंबर दे रहे हैं.
तरस आता है ऐसी बुद्धि पर
डीसी साहब को यह भी शायद याद नहीं रहा कि फर्स्ट क्राई, बेबीज शॉप और टाइनी टू टॉल जैसी बेबी केयर शॉप्स में या तो आप जैसे बड़े अफसरान जाते हैं या लाख रुपये माहवारी से ऊपर की आमदनी वाले. आम आदमी तो कभी अपने बच्चे को जॉनसन का बेबी पाउडर या शैंपू लगा दे, तो दस जगह शेखी बघारता है. आप जिस शहर के डीसी हैं, वहां के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की अगर आपको जानकारी नहीं है, तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं है. यह जनता का ही दुर्भाग्य है.
कायदे से उपायुक्त महोदय को रिलायंस मार्ट का प्रचार करना चाहिए था. वे तो 10 रुपये का नींबू भी बिना किसी होम डिलीवरी चार्ज के घर पहुंचा देते हैं. मगर रिलायंस मार्ट डिलीवरी के पैसे नहीं लेता, इसलिए उसका प्रचार करने की शायद जरूरत नहीं है.
इसके पहले वाले डीसी भी ऐसा कर चुके हैं
दरअसल कोरोना की पहली लहर में रांची के तत्कालीन उपायुक्त राय महिमापत रे ने यही काम किया था. चापलूसों ने उनकी खूब वाह-वाह भी की थी. महिमापत रे की उसी स्कीम को छविरंजन ने कॉपी-पेस्ट मार दिया. मगर ये लोग भूल गये कि वे रांची के खाये-पीये आघाये लोगों की सेवा के लिए ही नहीं बैठे हैं. उनका काम गांव-गिरांव, कस्बों, स्लम और निर्धनों को देखना भी है.
जब स्विगी, जोमैटो और डोमिनोज जैसी कंपनियां बिना डीलीवरी चार्ज के घर पर खाना डिलीवर कर सकती हैं. तो विशाल मेगामार्ट और बिग बाजार फ्री होम डीलिवरी क्यों नहीं कर सकते और नहीं कर सकते, तो डीसी साहब इनका प्रचार क्यों करें.
इन बड़ी कंपनियों के पास पैसों की कोई कमी नहीं है. इन्होंने देश के बड़ी पीआर कंपनियां और विज्ञापन एजेंसियां हायर कर रखी हैं. वे आसानी से विज्ञापनों के जरिये भी अपना प्रचार कर सकती हैं. ऐसे में झारखंड की राजधानी रांची के उपायुक्त को सरकारी लोगो (प्रतीक) और मुख्यमंत्री की तसवीर लगाकर उनका प्रचार करने की क्या जरूरत है.
इस संकट काल में उपायुक्त का काम है लोगों को पैनिक की स्थिति से बाहर निकालना. मरीजों को त्वरित और उचित मेडिकल सहायता दिलाना. मरनेगा जैसी योजनाओं को लागू करना ताकि गरीबों की आमदनी बंद न हो. पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से लोगों को सस्ता और पोषक भोजन मिले, इसकी गारंटी करना. एफएमसीजी कंपनियों के पास पहले ही ढेरों सेल्समैन हैं. कइयों की उन्होंने इस कोरोना काल में छंटनी भी कर दी है. उनका परिवार भी संकट में है. संकट में पड़ी पब्लिक को देखिए डीसी साहब! सरकारी साइनबोर्ड लगाकर एफएमसीजी कंपनियों का सेल्समैन बनना आपको शोभा नहीं देता.