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आंसुओं के आर्तनाद में जीत का अट्टहास मत कीजियेगा!

Anand Kumar

हर दल के नेताओं से एक आग्रह, किसी की मौत पर अखबार, चैनलों और सोशल मीडिया पर शोक न जतायें. आपके नकली आंसू गुस्सा और आक्रोश पैदा करते हैं.

 आप में से बहुतों को पता भी नहीं होता कि आपके फेसबुक या ट्विटर हैंडल से क्या पोस्ट हुआ है. आपका आईटी सेल, पीए और मीडिया प्रबंधक ये पोस्ट डालते हैं. ये एक स्कूली स्टूडेंट भी जान चुका है. आपमें से ज्यादा तो अपने खुद के पोस्ट भी नहीं पढ़ते. 

 एक बेचारे आदमी को नौ घंटे तक सात अस्पतालों में बेड के लिए घूमना पड़ता है. तिल-तिल कर आती मौत को वह अपनी आंखों से देखता है. उसके परिजन लाख कोशिश करके भी कुछ नहीं कर पाते. आखिरकार वह व्यवस्था के आगे दम तोड़ देता है. इस बेबसी, इस लाचारी को महसूस कर सकेंगे आप?

और आप क्या करते हैं. चार लाइन का शोक जताकर आप छुट्टी पा लेते हैं. सत्ता या विपक्ष के किसी नेता के परिजन को बेड के लिए भटकना पड़ा है क्या? क्या आपके परिवार का कोई बीमार होता तो आप यूँ ही बयान जारी करते, बैठक करते और बाइट देते. नहीं! आप पूरा सिस्टम हिला देते. अफसरों को टांग देते. आपके चेले-चमचे डॉक्टरों की हड्डी-पसली एक कर देते. अस्पताल को फूंक देते.

हमें पता है- जनता की जान संवेदनहीन (कुछ को छोड़कर) नौकरशाहों, पत्थरदिल हेल्थ सिस्टम और क्रूर व्यापारियों के हाथों में है. ये हर संकट, आपदा और विपत्ति को कमाई का जरिया बना लेते हैं. हमारे सिर पर गिरनेवाला संकट का हर पहाड़ इनकी संपत्ति में कुछ लाख या करोड़, जायदाद, गाड़ी और चमक-दमक के साधन जोड़ देता है.

सत्ता नशे में चूर है, उसको सिस्टम में कोई खामी नहीं दिखती. वह अफसरों की आंख से देखती है और चमचों के कान से सुनती है. फलानाजी मर गये. ओह! बहुत बुरा हुआ.. नेताजी कहते हैं. चमचा बोलता है, जी सर, लेकिन बहुत दिन से बीमार थे. हार्ट की बीमारी थी, शुगर भी काफी था और उम्र भी तो 70 पार थी. भर्ती हो भी जाते तो नहीं बच पाते. नेताजी सन्तुष्ट हो जाते हैं. शोक व्यक्त जारी करने को बोल योजनाओं का हिसाब और कमीशन का माल फ़रियाने लग जाते हैं. 

और अगर नेता विपक्ष में हैं, तो प्रेस को बुलायेंगे, सरकार को खूब गाली देंगे, भ्रष्ट बतायेंगे. नसीहत देंगे, इस्तीफा मांगेंगे और फिर कर्तव्य पूरा करके निकल लेंगे.

याद नहीं कि आज तक किसी विपक्षी नेता ने अस्पतालों का दौरा किया हो. सिस्टम को जवाबदेह बनाने की कोशिश की हो. राष्ट्रीय मुद्दों पर धरना-जुलूस निकालने और पुतला जलानेवाले ये लोग बेइलाज मर रहे लोगों के लिए कब धरना-जुलूस निकलेंगे.

प्लीज! कोरोना प्रोटोकॉल का हवाला मत दीजियेगा. क्योंकि हमने बंगाल से हरिद्वार तक आपकी नौटंकियों को देखा है. मधुपुर में आपने सत्ता पक्ष के साथ मिलकर जो चुनावी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का ड्रामा खेला है, वह भी देखा है.

इसलिये, चेत जाइये! ऐसा न हो कि जनता का गुस्सा उबल जाये और हालात आपके काबू से बाहर (हालांकि अभी भी काबू में नहीं हैं) हो जायें.

पवन गुप्ता याद हैं न आपको! वही जिन्होंने तीन दिन पहले स्वास्थ्य मंत्री के सामने रांची सदर अस्पताल के दरवाजे पर दम तोड दिया था. डॉक्टर-डॉक्टर चिल्लाते हुए. उनकी बेटी का गुस्सा भी याद होगा. यह गुस्सा हर उस परिजन का है, जो  इलाज का अभाव और सिस्टम की बदइंतजामी को हर पल झेल रहा है.

कल एक खबर आयी थी, आंध्रप्रदेश में बेटी के साथ हुए दुष्कर्म ने एक पिता को इतना जुनूनी बना दिया कि उसने आरोपी के परिवार के छह लोगों को मौत के घाट उतार दिया.

ऐसी ही कोई अनहोनी यहां न हो, यह पक्का कीजिये. आंसुओं के आर्तनाद में अपनी जीत का अट्टहास करनेवालों को इतिहास माफ नहीं करता!

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