Ranchi : फेडरेशन ऑफ झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की हेल्थ कमेटी के चेयरमैन डॉ. अभिषेक रामाधिन सिंह ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि सरकार निरंतर प्रयास तो कर रही है, लेकिन सुधार काफ़ी धीमी गति से हो रही है. हाल ही में चाईबासा में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाए जाने की घटना को उन्होंने सिस्टम की नाकामी पर जोर दिया.
साथ ही कहा कि यह गलती सिर्फ डॉक्टरों की नहीं, बल्कि तकनीकी कमी की वजह से हुई है, ऐसे में डॉक्टरों को निलंबित करने के जगह व्यवस्था पर सरकार को काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि एचआईवी जांच की दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक वायरस की पहचान पर आधारित (NAT) और दूसरी एंटीबॉडी पर.एंटीबॉडी जांच में वायरस का पता 2 से 6 हफ्तों तक नहीं चलता. यह सस्ती किट होती है, जिसपर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता है,जबकि NAT मशीन से सीधे वायरस का पता चल जाता है, मगर झारखंड में रांची सदर अस्पताल को छोड़कर कहीं भी यह मशीन नहीं है.
राज्य की आपात चिकित्सा सेवाओं पर भी उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य में 543 एम्बुलेंस हैं, जिनमें से 340 काम ही नहीं कर रहीं. यह बताता है कि झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था किस हद तक चरमराई हुई है.
उन्होंने झारखंड सरकार और विशेष रूप से स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी से अपील की कि वे इस स्थिति को गंभीरता से लें और ठोस कदम उठाएं ताकि आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें.
इस मुद्दे पर चैम्बर के अध्यक्ष आदित्य मल्होत्रा ने कहा कि नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है. उन्होंने कहा की सरकार को अस्पतालों और जांच केंद्रों को आधुनिक उपकरणों से लैस करना चाहिए ताकि लोग इलाज के लिए राज्य से बाहर न जाएं. इससे न सिर्फ जनता को राहत मिलेगी बल्कि राज्य का धन भी यहीं रहेगा.
उन्होंने आगे कहा कि झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स लगातार राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर चिंतित है और सरकार को सुधार के लिए सुझाव देता रहता है ताकि प्रदेश के लोग सुरक्षित और स्वस्थ रह सकें.
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