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जिजीविषा-कर्मठता की मिसाल डॉ भुवनेश्वर अनुज की कमी हमेशा खलेगी

Ranchi : झारखंड के जानेमाने शिक्षाविद, लेखक, नागपुरी साहित्य के अध्येता और पत्रकार डॉ भुवनेश्वर अनुज का शुक्रवार दोपहर लगभग 3 बजे रांची">https://en.wikipedia.org/wiki/Ranchi">रांची

के नागरमल मोदी सेवासदन में निधन हो गया. करीब 90 वर्षीय डॉ अनुज को तीन दिन पहले ब्रेन हेमरेज के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन पर वरिष्ठ पत्रकार धनश्याम श्रीवास्तव ने अपने फेसबुक वॉल पर अपने लेख के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी है. उनकी अनुमति से इस हम प्रकाशित कर रहे हैं.

नागपुरी साहित्य संस्कृति के विराट अध्येता थे डॉ भुवनेश्वर

Ghanshyam Shrivastav डॉ भुवनेश्वर अनुज चले गये. पत्रकार, शिक्षाविद, कई पुस्तकों के लेखक और नागपुरी साहित्य संस्कृति के विराट अध्येता. संजय गांधी मेमोरियल कॉलेज के संस्थापक डॉ अनुज ने रांची सहित गुमला-बसिया के उन क्षेत्रों में महाविद्यालय खोले, जहां शहरी नहीं, गांव के वे बच्चे दाखिला लेते थे, जो शहर के अच्छे कॉलेजों में पढ़ने का सपना भी नहीं देख पाते. अपने महाविद्यालय में कई लोगों को उन्होंने जमीन से उठाकर व्याख्याता, प्रोफेसर और अशैक्षणिक कर्मी बना दिया, लेकिन उनमें से कई को उनके ही खिलाफ खड़ा होते हुए देखा. उनके खिलाफ षड्यंत्र का भी साक्षात्कार किया है. लेकिन डॉ अनुज अपने खिलाफ लोगों की गतिविधियों की जानकारी मिलने पर यही कहते थे कि व्यक्ति से बड़ा संस्थान होता है. जो लोग मेरे सद्व्यवहार का उलटा सिला देते हैं, मैं उन्हें हृदय से माफ कर देता हूं. उन्हें एक दिन जरूर समझ में आयेगा कि उनके जीवन में रोशनी भरने के लिए ईश्वर ने मुझे माध्यम चुना था.

नागपुरी साहित्य-परंपराओं पर लिखते थे सारगर्भित लेख

शिक्षा के प्रति उनका लगाव तब से देखा है, जब वे मेरे आग्रह पर प्रभात खबर में नब्बे के दशक में नागपुरी साहित्य, संस्कृति और परंपराओं पर सारगर्भित लेख लिखा करते थे. पत्रकारिता जीवन के ढेर सारे अनुभवों में उनका जीवन संघर्ष झलकता था, जब वे हमें अपने जमाने की पत्रकारिता की शुचिता और संघर्ष की कहानियां सुनाया करते थे. जीवन की उपलब्धियों की चर्चा आदमी के जीवित रहते और जाने के बाद होती रहती है, लेकिन डॉ अनुज की चर्चा कई लोग अपने सामने न रहने पर भी करते थे और उनकी जिजीविषा-कर्मठता की मिसालें दिया करते थे. झारखंड के समाज में ऐसे लोग धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं. साथ ही कम होती जा रही है व्यक्ति की विराटता और अर्जित बौद्धिकता की विरासत भी, जिससे हम जैसे लोग कुछ और सीख पाते. मेरी दराज में अभी भी उनके कुछ आलेख पड़े हैं, जो उन्होंने आदिवासी पत्रिका में प्रकाशित करने हेतु मुझे दिये थे. उनकी कमी हमेशा खलेगी. https://english.lagatar.in/newlyweds-death-dowry-murder-charge-fir-lodged/44762/

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