Ranchi : छत्तीसगढ़ के जशपुर की रहने वाली स्नेहलता महज 10 साल की थी, जब पढ़ाई के दौरान उनकी आंख में कीड़ा चला गया. उन्होंने घबराकर आंख को जोर से रगड़ दिया. धीरे-धीरे आंखें लाल हो गयी और कॉर्निया सफेद पड़ने लगा. हालत ऐसी हो गयी कि उनकी आंख की सफेदी फोटो में भी साफ दिखाई देने लगी. कई डॉक्टरों को दिखाने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ.
कश्यप अस्पताल ने जिंदगी बदल दी
इसी बीच वर्ष 1996 में रांची के कश्यप मेमोरियल आई अस्पताल में डॉ बी.पी. कश्यप और डॉ भारती कश्यप द्वारा संयुक्त बिहार-झारखंड का पहला कॉर्निया प्रत्यारोपण किया गया. यह खबर मीडिया में छायी रही. यह जानकारी स्नेहलता तक पहुंची. उन्होंने रांची आकर आई बैंक में पंजीकरण कराया. कुछ महीनों के इंतजार के बाद उन्हें कॉल आया. इसके बाद डॉ कश्यप दंपति ने उनका प्रत्यारोपण किया.
24 घंटे के भीतर पूरी हुई प्रक्रिया
स्नेहलता बताती हैं कि उस समय कॉर्निया को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की तकनीक उपलब्ध नहीं थी. जशपुर से रांची की दूरी 3 घंटे 30 मिनट की थी, लेकिन वह 2 घंटे में अस्पताल पहुंचीं ताकि 24 घंटे के भीतर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पूरी हो सके. डॉक्टरों की मेहनत और समय पर पहुंचे कॉर्निया की वजह से सर्जरी सफल रही.
जिंदगी में आया बड़ा बदलाव
ऑपरेशन के बाद स्नेहलता की आंखों की रोशनी लौट आयी. उनकी तस्वीरें साफ आने लगीं और शादी की राह आसान हो गयी. वह बताती हैं कि प्रत्यारोपण के बिना शादी होना मुश्किल था, लेकिन आंखें ठीक होने के बाद सब कुछ सामान्य हो गया. उनकी शादी हुई और वह जयपुर चली गयी.
स्नेहलता आज भी जयपुर में जब किसी नेत्र चिकित्सक से दिखाती हैं तो डॉक्टर यह देखकर आश्चर्य करते हैं कि उनका कॉर्निया प्रत्यारोपण बेहद सफल रहा है. भावुक होकर वह कहती हैं कि 28 साल पहले जिन डॉक्टरों ने उनकी जिंदगी में उजाला भरा, उन्हें वह शत-शत नमन करती हैं.
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