- नॉर्थ-वेस्टर्न गोस्सनर एवंजेलिकल लुथेरॉन चर्च के प्रथम बिशप भी रह चुके थे
- रांची के डिबडीह में हुआ निधन, शिक्षा जगत में शोक की लहर
Ranchi : झारखंड के शिक्षा जगत, साहित्य-संस्कृति की पहचान डॉ निर्मल मिंज का बुधवार की शाम को रांची के डिबडीह में निधन हो गया. बिशप डॉ निर्मल मिंज के निधन के साथ एक युग का अंत हो गया. उनके निधन के साथ छोटानागपुर के आदिवासी समाज ने एक उत्कृष्ट विचारक और बुद्धिजीवी को खो दिया. उनके निधन की खबर से झारखंड शिक्षा जगत के लोगों में शोक की लहर है और आदिवासी समाज भी मर्माहत है.
1971 में गोस्सनर कॉलेज की स्थापना की थी
1971 में उन्होंने गोस्सनर कॉलेज की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में एक विशेष क्रांति का सूत्रपात किया, क्योंकि उन्होंने इतिहास में पहली बार झारखंड के आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई इस कॉलेज में शुरू की. उनके प्रयास से रांची यूनिवर्सिटी में भी इन भाषाओं की पढ़ाई शुरू हुई. वे यंग मेंस एसोसिएशन रांची के प्रथम प्रेसिडेंट थे और विकास मैत्री संस्था के निर्माण में अहम् भूमिका निभाई. 1980 में वे नॉर्थ वेस्टर्न गोस्सनर एवंजेलिकल लुथेरॉन कलीसिया के प्रथम बिशप बने. छोटानागपुर के मसीही कलीसिया में मांदर जैसे आदिवासी वाद्य यंत्र का प्रथम उपयोग का श्रेय बिशप डॉ निर्मल मिंज के साहसी और प्रासंगिक मसीही वैज्ञानिक सोच को जाता है.
आदिवासियों के हित के लिए हमेशा मुखर रहे
इंडियन कौंसिल ऑफ़ इंडिजेनस एंड ट्राइबल पीपुल्स संस्था के सेंट्रल जोन के प्रेसिडेंट के रूप में वे आदिवासी आवाज को उठाते रहे और Working Group of Indigenous Tribal People of the United Nations जेनेवा में झारखंड के आदिवासी मुद्दों को उठाते रहे. झारखंड कोआर्डिनेशन कमिटी द्वारा वे झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को बौद्धिक और नैतिक अगुवाई प्रदान करने में अग्रणी भूमिका प्रदान किए. कुड़ुख, उरांव भाषा के विकास के लिए वे जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे. उनके योगदान के लिए उन्हें 2017 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरुस्कार प्रदान किया गया. उनकी शिक्षा दीक्षा चैनपुर, गुमला, पटना यूनिवर्सिटी, सेरामपुर यूनिवर्सिटी, अमेरिका के लूथर सेमिनरी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनिसोटा में हुई. वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो से पीएचडी हासिल किए थे. बिशप डॉ निर्मल मिंज का पूरा जीवन मसीही कलीसिया और समाज की सेवा के लिए समर्पित था.