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|Exclusive| पेयजल विभाग में 22.86 करोड़ का नहीं, 200 करोड़ का घोटाला, इंजीनियर निरंजन की मुट्ठी में दर्जन भर बड़े अफसर

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Akhter
Ranchi : पेयजल विभाग में 22.86 करोड़ नहीं, 200 करोड़ रुपये का घोटाले हुआ है. इसे लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) द्वारा समर्पित बिल से अधिक की निकासी कर अंजाम दिया गया है.  पेयजल विभाग के इंजीनियर निरंजन कुमार 15 वर्षों से रांची में ही जमे हुए हैं. उनकी मुट्ठी में दर्जन भर से ज्यादा अधिकारी है. पेयजल घोटाले के आरोपी संतोष कुमार ने विभाग को भेजे गये अपने जवाब में इन तथ्यों का उल्लेख करते हुए इससे संबंधित दस्तावेज भी सौंपे हैं. संतोष कुमार ने सरकार को भेजे गये अपने जवाब में यह कहा है कि नगर विकास विभाग द्वारा डिपॉजिट वर्क से रूप में दी गयी योजनाओं में 200 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है. 
इस मामले में संतोष कुमार की ओर से यह कहा गया है कि योजना को क्रियान्वित करने के लिए एलएंडटी को कार्यकारी एजेंसी के रूप में चुना गया है. विभाग के इंजीनियरों ने 200 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम देने के लिए इस कंपनी को मोहरा बनाया और कंपनी द्वारा काम के बदले दिये गये वास्तविक बिल से अधिक की निकासी की गयी. 

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संतोष ने अपने जवाब में कहा है कि एल एंड टी के साथ शहरी जलापूर्ति योजना के लिए 290 करोड़ रुपये का मूल इकरारनामा किया गया था. इसके अलावा कंपनी के साथ 64.34 करोड़ रुपये का पूरक इकरारनामा किया गया था. यानी कंपनी के साथ मूल और पूरक मिला कर कुल 354.78 करोड़ रुपये का इकरारनामा किया गया था.  विभाग के इंजीनियरों ने सांठगांठ कर कंपनी के नाम पर मूल इकरारनामा के बदले 264.15 करोड़ रुपये और पूरक इकरारनामा के बदले 60.89 करोड़ रुपये का भुगतान किया. यानी कंपनी को पूरक और मूल इकरारनामा के बदले कुल 325.04 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. 
इस भुगतान में हुई गड़बड़ी को सही साबित करने के लिए संतोष ने अपने जवाब के साथ कंपनी द्वारा मूल और पूरक इकरारनामा के बदले जमा किये गये वास्तविक बिल की छापा प्रति भी विभागीय अधिकारियों को सौंपी है. 
इसमें यह कहा गया कि एल एंड टी ने मूल इकरानामा के बदले दिखाये गये भुगतान के मुकाबले सिर्फ 21.61 लाख रुपये का बिल जमा किया है. कंपनी ने पूरक इकरारनामा में काम के बदले दिखाये गये 60.89 करोड़ रुपये के भुगतान के बदले सिर्फ 3.77 लाख रुपये का बिल जमा किया है.  यानी कंपनी ने मूल और पूरक इकरारनामा में किये गये काम के बदले सिर्फ 25.39 लाख रुपये का बिल जमा किया.  संतोष ने अपने जवाब में लिखा है कि इस योजना में इंजीनियरों की सांठगांठ से 200 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है. कंपनी के नाम पर भुगतान करने के लिए मेजरमेंट बुक में बीक्यू में दिये गये ब्योरे को हूबहू उतार दिया गया है.
संतोष ने अपने जवाब में पेयजल स्वर्णरेखा कार्य प्रमंडल में बची हुई राशि की फर्जी निकासी करने का भी उल्लेख किया है. इसमें कहा गया है डेविएशन वर्क दिखा कर फर्जी वाउचरों के सहारे आवंटन के आलोक में बची हुई राशि की निकासी की जाती है.
इस तरह की निकासी में अधीक्षण अभियंता 20 प्रतिशत हिस्सा लेते हैं. इसके बाद बची हुई 80 प्रतिशत राशि इंजीनियरों व अफसरों के बीच बांटी जाती है. इस तरह की निकासी के मामले में संतोष ने प्रवीण जैन के काम में बची हुई 28.98 लाख की राशि की निकासी को उदाहरण के तौर पर पेश किया है.  इसमें कहा गया है कि इस राशि की निकासी के लिए बनाये गये फर्जी बिल को अधीक्षण अभियंता निरंजन कुमार ने अनुमोदित किया था. इसका बिल कार्यपालक अभियंता चंद्रशेखर सिंह, प्रमंडलीय लेखा पदाधिकारी परमानंद कुमार और बिल क्लर्क संजय कुमार ने पारित किया था.  इसके अलावा संतोष ने मेसर्स आनंद इंटरप्राइजेज के दिये गये 3.28 करोड़ के काम में से बची हुई राशि की फर्जी निकासी का भी उल्लेख किया है. संतोष ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि निरंजन कुमार पिछले 15 वर्षों से रांची में जमे हुए है. राज्य के दर्ज भर से बड़े अधिकारी उनकी मुट्ठी में हैं.

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