Prakash K Ray
वैक्सीन के मामले में अमेरिका का रवैया तो निंदनीय है ही. जर्मन चांसलर भी भारत से वैक्सीन की सप्लाई नहीं मिलने से ग़ुस्से में हैं. उन्होंने बयान दिया है कि यूरोप ने भारत को दवा उद्योग का इतना बड़ा केंद्र बनाया और अब अगर ऐसा रहा है तो वे इस क्षेत्र में सहयोग व मदद रोक सकता है.
यह पश्चिम का बुनियादी चरित्र है. लगता है कि ऐसी विपदा में भारत को पश्चिम के अलावा दूसरे देशों के प्रस्तावों पर तुरंत निर्णय लेना चाहिये. वैक्सीन व दवा के मामले में क्यूबा से सहयोग लेने की दिशा में सोचा जाना चाहिए.
क्यूबा के वर्तमान राष्ट्रपति मिगेल दियाज़-कनेल वर्ष 2015 में भारत आए थे. तब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निवास के बाहर आकर स्वागत किया था. उस समय मिगेल राष्ट्रपति नहीं थे और मोदी को प्रधानमंत्री बने एक साल भी नहीं हुआ था. तब उन्होंने कहा था कि जब भी क्यूबा का नाम आता है, तो उनके ध्यान में क्यूबा के डॉक्टर आते हैं, जो दुनिया भर में अपनी सेवाएं देते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने चिकित्सा क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग की उम्मीद भी जतायी थी.
वर्ष 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद क्यूबा की यात्रा पर गये थे. दोनों देशों के बीच दशकों के घनिष्ठ संबंध के बावजूद यह किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली क्यूबा यात्रा थी. महामारी में दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्यकर्मी और दवा भेजने के साथ क्यूबा पांच वैक्सीन बनाने के काम में लगा हुआ है. कई देश ये वैक्सीन लेने जा रहे हैं. भारत को भी अपना प्रस्ताव भेज देना चाहिए.
भारत और क्यूबा की लंबी मित्रता का एक आयाम विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग का भी रहा है. इस संबंध को आधार बनाया जाना चाहिए और इसे और बेहतर किया जाना चाहिए. संभव हो, तो तात्कालिक स्तर पर कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी मांगे जा सकते हैं.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.

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