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दुमका : जमशेदपुर के डॉ. नरेश अग्रवाल को सतीश स्मृति विशेष सम्मान

Dumka : हिंदी साहित्यकार सतीश चंद्र झा की 93 वीं जयंती के अवसर पर सतीश स्मृति मंच ने संगोष्ठी व कवि सम्मेलन का आयोजन किया. संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि सिद्धो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय (एसकेएमयू) की कुलपति प्रोफेसर डॉ. सोनाझरिया मिंज ने साहित्यिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने में मंच के प्रयासों की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि ऐसी गतिविधियां हमें सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे के करीब लाती है, जिससे सामाजिक रिश्तों में दृढ़ता आती है. संगोष्ठी में जमशेदपुर के डॉ. नरेश अग्रवाल को हिन्दी साहित्य की निरंतर सेवा के लिए सतीश स्मृति विशेष सम्मान तथा बिहार के बेगूसराय निवासी राहुल शिवाय को उनकी रचना ‘मौन भी अपराध है’ के लिए सतीश स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया. संगोष्ठी में स्मारिका स्मृति-दर्पण एवं डॉ. रामवरण चौधरी की रचना नाचा नूपुरों में कृष्ण का विमोचन किया गया. संगोष्ठी का उद्घाटन सतीश चंद्र झा की पत्नी चंपा देवी और प्रबुद्ध जनों ने संयुक्त रूप से किया. ऋतुराज कश्यप व प्रतीक मिश्र ने सरस्वती वंदना समेत सतीश झा की रचना पर आधारित स्वरबद्ध कविता प्रस्तुत किए. संगोष्ठी के स्वागत भाषण में सतीश झा के पुत्र आशीष कुमार झा ने सतीश स्मृति मंच के अब तक के क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला. उन्होंने युवाओं के मंच के साथ जुड़ाव पर कहा कि दुमका की सांस्कृतिक विरासत की उत्कृष्टता अभी और निखरेगी. सतीश स्मृति मंच के सचिव कुंदन कुमार झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया. संगोष्ठी का संचालन अशोक कुमार सिंह ने किया. इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में दुमका, देवघर, गोड्डा, भागलपुर, बांका, बेगूसराय, पुनसिया समेत अन्य जगहों से आए कवियों ने काव्य पाठ किया. संगोष्ठी में अमरेन्द्र सुमन, तुषार कांति सिन्हा, नूतन झा, अनिरुद्ध प्रसाद विमल, दीनानाथ, मोती प्रसाद, अनिल कुमार झा, डॉ. हनीफ, श्याम राम, मोहित मयंक झा, इंद्रज्योति राय, कैप्टन दिलीप कुमार झा, अनन्त लाल खिरहर, चतुर्भुज नारायण मिश्र, उत्तम कुमार दे, विश्वजीत राहा, नवीन चंद्र ठाकुर, रोहित अंबष्ट, शैलेन्द्र सिन्हा, राजीव नयन तिवारी, डॉ. कृष्णानन्द सिंह समेत अन्य लोगों ने भाग लिया. समृद्ध रचना ही साहित्य को रोजगारोन्मुख बनाएगी : नीलोत्पल मृणाल संगोष्ठी में ‘साहित्य को रोजगारोन्मुख बनाने की चुनौतियां’ विषय पर विचार व्यक्त करते हुए युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नीलोत्पल मृणाल ने कहा कि साहित्य के साथ रोजगार व व्यवसाय जैसे शब्दों को नकारात्मक रूप में लेने, सोचने और समझने की मानसिकता से हमें बाहर निकलना होगा. समृद्ध साहित्य-रचना ही साहित्य को रोजगारोन्मुख बनाएगी. अरुण सिन्हा ने कहा कि किसी देश के मूल्य की पहचान उसकी संस्कृति और साहित्य से होती है. रचनाकार जब अपनी रचनाओं में जीवन दर्शन, चिंतन, मानवीय मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं और हृदयगत भावनाओं को व्यक्त करता है तो वह स्वतः रोजगारोन्मुख बन जाती है. डॉ. यदुवंश प्रणय ने भारतीय भाषाओं में रचे गए साहित्य में उसकी रोजगारोन्मुखता को विस्तार से बताया. अंजनी शरण ने कहा कि साहित्य को पूरा समय देकर ही उसे रोजगारोन्मुख बनाया जा सकता है. अभिषेक कुमार ने साहित्य को रोजगारोन्मुख बनाने के संदर्भ में सतत प्रयत्नशीलता की आवश्यकता बताई. यह">https://lagatar.in/wp-admin/post.php?post=230707&action=edit">यह

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