- भानू के खिलाफ गवाह पेश करने की रफ्तार यही रही, तो फैसला आने में 40-50 साल लगेंगे.
- शाही भ्रष्टाचार के आरोपी हैं. विधानसभा चुनाव-2019 में वह भाजपा के टिकट पर भवनाथपुर से विधायक बने.
Ranchi: भाजपा के पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 10 साल में सिर्फ 15 गवाह पेश किये हैं. कोर्ट में पेश किये गये गवाहों की संख्या ईडी के गवाहों की कुल संख्या का 50 प्रतिशत है. अगर मनी लांड्रिंग के इस मामले में ट्रायल की यही स्थिति रही तो फैसला होने में 40-45 साल लगने के आसार है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार राजनीतिज्ञों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को शीघ्र निपटाने का निर्देश दिया गया है.
झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे जिन तीन मंत्रियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया काफी धीमी गति से चल रही है उसमे से एक भानु प्रताप शाही हैं. वह 2005 में ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक की टिकट पर जीत कर पहली बार विधायक बने थे. निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री थे. उसी अवधि में भानु प्रताप शाही पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए. 2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने. लेकिन 2024 के चुनाव में हार गए.
(शाही भ्रष्टाचार के आरोपी हैं. वह फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता थे. बाद में भाजपा में शामिल हो गए. विधानसभा चुनाव-2019 में वह भाजपा के टिकट पर भवनाथपुर से विधायक बने.)
वर्ष 2009 में कोड़ा सहित जिन मंत्रियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी, उसमें भानु प्रताप शाही का नाम भी शामिल था. निगरानी जांच की गति काफी धीमी होने की वजह से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट ने अगस्त 2010 में निगरानी थाने में दर्ज मामले की जांच सीबीआई और ईडी को करने का आदेश दिया था.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने 2010 में भानु प्रताप शाही के खिलाफ प्राथमिकी (RC5A/2010) दर्ज की. सीबीआई ने मामले की जांच कर भानु प्रताप शाही के ख़िलाफ़ दिसंबर 2011 मे आरोप पत्र दायर किया. सीबीआई के विशेष न्यायाधीश की अदालत में यह मामला अभी विचाराधीन है.
(भानू प्रताप शाही मधु कोड़ा कैबिनेट के उन छह मंत्रियों में से एक थे, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और जिनके खिलाफ ईडी-सीबीआई कोर्ट में ट्रायल चल रहा है.)
ईडी ने निगरानी थाने में दर्ज प्राथमिकी के मद्देनजर भानु प्रताप शाही के ख़िलाफ़ 2009 में ही ECIR दर्ज कर लिया था. उन दिनों झारखंड में ईडी का कार्यालय नहीं हुआ करता था. बिहार में पदस्थापित ईडी के अधिकारियों ने मामले की जांच के बाद दिसंबर 2014 में भानु प्रताप के खिलाफ मनी लांड्रिंग के मामले में आरोप पत्र (prosecution complain) दायर किया. इसमें कुल सात लोगों को आरोपित किया गया. आरोपितों की सूची में भानु के अलावा उसके रिश्तेदार और तत्कालीन विशेष कार्य पदाधिकारी (OSD) उमा शंकर मालवीय का नाम शामिल है. उमाशंकर मालवीय की मृत्यु हो चुकी है. ईडी ने आरोप पत्र में भानु प्रताप शाही पर छह करोड़ रुपये से अधिक के मनी लांड्रिंग का आरोप लगाया है. ईडी ने इस मामले में करीब 30 लोगों को गवाह बनाया है.
मामले में चल रहे ट्रायल के दौरान ईडी की ओर से अब तक सिर्फ 15 गवाह ही पेश किया गया है. यानी 10 साल में 15 गवाह. अगर ईडी की गति इतनी ही धीमी रही तो उसे बाकी गवाहों के बयान आदि दर्ज कराने में और 10 साल लगेंगे. इसके बाद बचाव पक्ष की बारी आयेगी. बचाव पक्ष को मामले में देर होने से फायदा होगा. अगर बचाव पक्ष की भी यही गति रही और उसे भी 25-30 गवाह पेश करने का मौका मिला तो बचाव पक्ष की कार्यवाही को पूरा करने में 20 साल और लगेंगे. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर ट्रायल रफ़्तार इतनी ही धीमी रही को मामले में फैसला आने में 40-45 साल का वक्त लग जायेगा.
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