जानें क्या है मामला
वर्ष 2009 में लगभग दो दर्जन इंजीनियरों की बहाली प्रतियोगिता परीक्षा के जरिये हुई थी. इसमें से कुछ इंजीनियरों को 2009 में ही ज्वाइंनिंग दे दिया गया. नियमित प्रोन्नति भी दी गयी. लेकिन बीआईटी, बीआईटी सिंदरी, एमआईटी भागलपुर और एमआईटी वारंगल सहित देश के नामी-गिरामी इंजीनियरिंग संस्थानों के डिग्रीधारी इंजीनियरों को एक अगस्त 2011 में ज्वाइनिंग दी गयी. इस हिसाब से ये इंजीनियर तीन साल पीछे चले गये हैं. इसमें 18 डायरेक्ट इंजीनियर ऐसे हैं, जिनको प्रोन्नति नहीं दी गयी है. जबकि ये सभी इंजीनिचयर प्रोन्नति पाने की अर्हता भी रखते हैं.बिजली बोर्ड फिर फंसा रहा है पेंच
फिलहाल बिजली बोर्ड में 64 नये पदों का सृजन किया गया है, जिसमें कार्यकारी निदेशक के तीन पद, जीएम तकनीक के 11, जीएम (सीजीआरएफ) के 11, डीजीएम तकनीक के 19, डीजीएम (सीजीआरएफ) के 19 और डीजीएम एचआर के दो पद शामिल हैं. इस सभी पदों के लिए डीपीसी होनी है. जानकारी के अनुसार, डीपीसी में इन इंजीनियरों का नाम शामिल नहीं किया गया है. बिजली बोर्ड का कहना है कि एक अगस्त 2011 में ज्वाइनिंग होने के कारण कालाविधि पूरी नहीं हुई है. जबकि 2017 में ही अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि इनकी ज्वाइनिंग 21 नवंबर 2009 से मानी जानी चाहिए. बिजली बोर्ड में डिप्लोमाधारी और कोरसपोंडंस कोर्स किये इंजीनियरों को डीजीएम रैंक में पदस्थापित किया गया है. ऐसे 12 डिप्लोमाधारी इंजीनियर हैं, जिन्हें रांची, जमशेदपुर, देवघर, हजारीबाग और साहेबगंज में डीजीएम रैंक में पदस्थापित किया गया है.
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