DR. Santosh Manav
तेलंगाना में अगले साल चुनाव है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन जुलाई की शाम सिकंदराबाद के परेड ग्राउंड में कह आए हैं कि थोड़े समय बाद तेलंगाना में डबल इंजन की सरकार होगी. पता नहीं, यह सुनकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) पर क्या गुजरी होगी? तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में BJP की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी और बैठक समाप्ति के तत्काल बाद प्रधानमंत्री डबल इंजन सरकार की बात कह रहे थे. अपने गृह मंत्री अमित शाह भी अपनी वाणी में जोर डालकर कह रहे थे कि तेलंगाना में अगला मुख्यमंत्री BJP का होगा. मतलब साफ है कि कमल दल ‘अबकी बारी, तेलंगाना हमारी’ के लिए तैयार है. तेलंगाना तैयार है या नहीं, यह अगले साल पता चलेगा. लेकिन, हैदराबाद की बैठक, नेताओं के बोल-बचन और तेवर से तीन-चार बात याद कर लेनी चाहिए.
बाप-बेटा-बेटी की पार्टी और सरकार
तेलंगाना में दो बार यानी 2014 से तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की सरकार है. मुखिया यानी पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हैं केसीआर. बेटा केटी रामाराव बाप की सरकार में मंत्री है और बेटी कविता सांसद. कह लीजिए बाप-बेटा-बेटी की पार्टी और सरकार. केसीआर पहले तेलगू देशम पार्टी के नेता थे. अलग राज्य की मांग उठाई. पार्टी बनाई और पार्टी को सत्ता में ले आए. कांग्रेस से गठजोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और केंद्र में मंत्री का पद भोग चुके हैं. 2014 से लगातार CM हैं. वह कब तक CM रहेंगे, इस सवाल का जवाब कठिन है. लेकिन, यह कहना कठिन नहीं है कि BJP की चले तो आज ही उन्हें उखाड़ दे. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कमल दल ने कम जोर नहीं लगाया था. लेकिन, 119 की विधानसभा में 5 सीटों पर सिमट गई. टीआरएस 90 सीटों के साथ सत्ता में दूसरी बार आ गई. कांग्रेस 13 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल हो गई. ओवैसी की पार्टी को भी 7 सीटें मिल गई . तेलगूदेशम तीन और सीपीएम एक. अब तेलंगाना में 5 सीटों के साथ चौथे नंबर की पार्टी कम से कम साठ सीटें यानी सत्ता का ख्वाब देख रही है, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है. फैसला तेलंगाना की जनता को करना है कि वह फिर से केसीआर या कमल दल को चुनेगी ? ऐसा इसलिए कि कांग्रेस पस्त है और ओवैसी में इतना दम नहीं है.
BJP का दिल ‘धड़क-धड़क जाए’
तेलंगाना को लेकर BJP का दिल ‘धड़क-धड़क जाए’ हो रहा है, तो इसके कारण गैरवाजिब नहीं हैं. कांग्रेस लस्त-पस्त है. लगातार दो बार टीआरएस यानी सत्ता से विरोध का भाव जगना और साफ कहें तो सत्ता विरोधी रूझान की उम्मीद और तीसरा बड़ा कारण है ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम का चुनाव परिणाम. हैदराबाद नगर निगम में चार जिले, पांच लोकसभा की सीटें, विधानसभा की 24 सीटें और 88 लाख की आबादी आती है. दिसंबर 20 के चुनाव में BJP ने यहां बड़ा उलटफेर किया था. नगर निगम की 150 में से उसने 48 सीटें जीत ली थी. जबकि 2016 के चुनाव में वह चार पर सिमट गई थी. इसलिए 2020 से ही BJP ‘अब तेलंगाना, तब तेलंगाना, कर रही है. थोड़ा और विस्तार देते हैं. टीआर एस को 2020 के हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में 55 सीटें मिली, जबकि 2016 में 99 मिली थी. ओवैसी को 44. वह 16 में भी 44 पर ही थे. बेचारी कांग्रेस दो पर रह गई थी. यानी BJP की उम्मीद का घोड़ा सरपट दौड़ रहा है, तो अकारण नहीं है. प्रधानमंत्री अबकी बार डबल इंजन की सरकार या अमित शाह तेलंगाना में बीजेपी का मुख्यमंत्री कह रहे हैं तो उसके पुख्ता कारण हैं और ओवैसी के किले में उन्हें पछाड़ कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाने की खुशी भी तो है.
BJP अभी से चुनावी मोड में
अब तेलंगाना के लिए बीजेपी की छटपटाहट का आलम क्या है, यह भी देखिए. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ठीक पहले पार्टी ने सभी 119 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के नेता भेजे. कहा कि लोगों से मिलिए. मन-मिजाज समझिए. झारखंड से बाबूलाल मरांडी, अन्नपूर्णा देवी सहित कुछ और लोग भेजे गए. अब पता नहीं, तमिलभाषियों को बाबूलाल और अन्नपूर्णा की कितनी बात समझ में आई होगी? पर प्रयास तो है. चुनाव 23 में है और बीजेपी का प्रचार 22 से ही प्रारंभ. हमेशा चुनावी मोड में रहने वाले प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी.
ओवैसी को भी जवाब देना है
और समझिए. तेलंगाना में बीजेपी हर बूथ के लिए कमेटी बना चुकी है. पन्ना प्रमुख पर काम चल ही रहा होगा. पन्ना प्रमुख यानी हर साठ मतदाता के पीछे एक कार्यकर्ता लगा दो. पटाने, ख्याल रखने से लेकर मतदान कराने तक की जिम्मेदारी. सिकंदराबाद में प्रधानमंत्री की सभा के लिए हर बूथ से लोग बुलाए गए थे. एक साल पहले बूथ कमेटी और प्रधानमंत्री की सभा. राज्य की राजधानी में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक. मतलब जय तेलंगाना की पूरी तैयारी. फिर बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक ओवैसी को जवाब भी देना है. एक जवाब तो हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में दूसरी बड़ी पार्टी बनकर दे चुकी. अब तेलंगाना की सत्ता पर काबिज होकर कठोर उत्तर देगी? तेलंगाना में ही ओवैसी की असली ताकत है. एक एमपी (खुद ओवैसी), भाई अकबरुद्दीन सहित सात विधायक. ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में 44 पार्षद. हालांकि इसके अलावा भी ओवैसी के पास महाराष्ट्र में एक एमपी और दो विधायक हैं. बिहार में एक विधायक बचा है. चार भागकर राजद में चले गए. यानी प्रधानमंत्री का भाषण कहता है-अबकी बार, तेलंगाना हमार और मजाकिया लहजे में कहें तो सुन ले ओवैसी, सुन ले?
अब निशाने पर क्षेत्रीय दल
तो क्या बात इतनी सी है? नहीं, इतनी नहीं और भी है. बीजेपी कांग्रेस का जो करना था, कर चुकी. इससे ज्यादा क्या करेगी? सवा सौ साल पुरानी पार्टी अपने नेताओं की पुण्याई से उतना तो रहेगी ही, जितना वह आज है. लोकसभा में 54-55 सांसद और दो-तीन राज्यों में सरकार. फिर विस्तारवादी पार्टी का विस्तार कैसे होगा? वह होगा क्षेत्रीय दलों-परिवार आधारित दलों को कमजोर या समाप्त करके. इसलिए बीजेपी वाले वंशवाद की रट लगा रहे हैं. अमित शाह हैदराबाद में कह आए हैं कि वंशवाद की राजनीति समाप्त होनी चाहिए. जातिवादी, वंशवादी पार्टियां समाप्त होनी चाहिए. तेलंगाना, पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सरकार जल्द होगी. कैसे होगी, यह उन्होंने नहीं बताया. चुनाव से या दोनों जगह महाराष्ट्र की तरह ‘शिंदे’ के सहयोग से. सौ टके की बात यह है कि जहां-जहां क्षेत्रीय दलों की सरकार है, वहां-वहां बीजेपी का फोकस है. महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना को लगभग समेट दिया है, यूपी में सपा को शांत कर चुकी. तेलंगाना में टीआरएस, बंगाल में टीएमसी को कस चुकी. अब किसकी बारी? आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, झारखंड में जेएमएम, तमिलनाडु में द्रमुक, ओडिशा में बीजू जनता दल—- ? और बिहार ? इसका जवाब वक्त पर छोड़िए. {लेखक भास्कर सहित अनेक अखबारों के संपादक रहे हैं. फिलहाल लगातार मीडिया में स्थानीय संपादक हैं }
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