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हाल-ए-मनरेगा: चबूतरा निर्माण के जरिये हो रहा बाढ़ नियंत्रण का कार्य

Pravin Kumar Ranchi: साहेबगंज जिला के तालझारी प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र जहां की पीढियों को कभी बाढ़ का सामना नहीं करना पड़ा. जहां पहाड़िया जनजातियों को पेयजल और दूसरी तरह के सभी घरेलू एवं कृषि कार्यों संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है. वहीं प्रखंड और जिला प्रशासन पानी रोकने की योजनाओं को क्रियान्वित कराने के बजाय चबूतरा निर्माण के जरिये बाढ़ नियंत्रण जैसे अतार्किक कार्यों में लिप्त है. मनरेगा अधिनियम में श्रम और सामाग्री का अनुपात 60:40 निर्धारित है. लेकिन तालझारी प्रखंड में पिछले दो महीनों जनवरी और फरवरी महीने में जिस रफ्तार से बाढ़ नियंत्रण के नाम पर छोटे-छोटे बरसाती नालों और उन नालों के आसपास पक्के चेकडेम, पक्की सिंचाई नाली निर्माण, झरना कूप निर्माण, सडकों के किनारे गार्डवाल का निर्माण किया गया है. यह इस बात का प्रमाण है कि अधिकारियों द्वारा जानबूझ मनरेगा अधिनियम की अनदेखी की जा रही है और  ठेकेदार, बिचौलियों के जरिये फंड को दुधारू गाय की तरह जमकर लूट रहे हैं. तालझारी प्रखंड में कुल 13 ग्राम पंचायतें हैं, जिसमें से सिर्फ मोतीझरना, मस्कालिया और बड़ी भगियामारी पंचायतों के कुछ ही भौगोलिक हिस्से गंगा के तटीय क्षेत्र में आते हैं. शेष पंचायतों के अधिकांश हिस्से पहाड़ी इलाके हैं. इन्ही दुर्गम इलाके के 10 पंचायतों में किये गये कार्य को मनरेगा वेबसाइट के आंकड़े के विश्लेषण से जो तथ्य सामने आये हैं वह चौंकाने वाले है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल 441 योजनाएं बाढ़ नियंत्रण की ली गई हैं, जिनमें 182 योजनाएं चबूतरा निर्माण की हैं. जो कुल चयनित बाढ़ नियंत्रण योजनाओं का 41 फीसदी है. इसे भी पढ़ें- नगर">https://lagatar.in/municipal-bodies-will-have-to-hold-a-board-meeting-every-month-if-the-mayor-is-not-able-to-do-it-the-secretary-will-call-the-meeting-in-7-days/">नगर

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मनरेगा कानून का माखौल उड़ाकर साहिबगंज में किया जा रहा मनरेगा कार्य

झारखंड नरेगा वार्च के जेम्स हेरंज ने कहा कि राज्य में मनरेगा योजना को मनमाने तरीके से कार्य कराया जा रहा है. यह अजीब विडंबना है कि चबूतरा निर्माण का बाढ़ नियंत्रण से क्या संबंझ है. चबूतरा निर्माण की प्राकल्लित राशि 1.47 लाख से 1.76 लाख तक है. इसी प्रकार बाढ़ नियंत्रण की सभी योजनाओं में सामग्री मद में 80 फीसदी और मजदूरी मद में 20 फीसदी खर्च हो रहा है. जो अधिनियम में किये गए प्रावधान 60:40 अनुपात के बिल्कुल विपरीत हैं. ये सभी योजनाएं पिछली वित्तीय वर्ष के अंतिम माह अर्थात जनवरी-फरवरी में ली गई अथवा क्रियान्वित की गई हैं. इस पूरे अनियमितता को लेकर उपायुक्त एवं उप विकास आयुक्त से शिकायत भी की गई. सरकार पूरे मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करे.

रोजगारपरक योजना की जगह सामग्री मद में किया जा रहा अधिक खर्च

प्रखंड के कई पहाड़ी गांव ऐसे हैं जहां दोपहिया वाहन से भी जाना कठिन है. इन दुर्गम इलाकों में अधिकांश पहाड़ी आदिम जनजाति निवास करते हैं. इनके समक्ष रोजगार का संकट सालोंभर बना रहता है. ऐसे अभावग्रस्त इलाकों में मनरेगा जैसे रोजगारपरक योजनाओं को न लेकर सामग्री आधारित योजनाओं के क्रियान्वयन से साफ झलकता है कि स्थानीय ठेकेदारों और व्यवसायी वर्ग का कितना मजबूत गठजोड़ है. एक तरह से यह परिस्थिति सरकारी मशीनीकृत लूट का प्रमाण है. तालझारी प्रखंड प्रवास के दौरान गांवों में मीटिंगों के जरिये हमने देखा कोई परिवार या मजदूर के पास रोजगार नहीं है. लोगों को काम मांगने पर काम मिल सकता है इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं है.

ठेकेदार कर रहे जिले में मनरेगा कार्य

दूसरी तरफ जब हम सरकारी वेबसाइट में दर्ज सूचनाओं पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि किसी भी पंचायत में काम की कमी नहीं है. प्रखंड अंतर्गत दुर्गापुर में इस वित्तीय वर्ष में अकेले 2 करोड़ 7 लाख से अधिक मजदूरी मद में खर्च हुए हैं. लेकिन उसी पंचायत के अत्तरभीठा गांव के सभी पहाड़िया मजदूर बताते हैं कि वे मनरेगा की योजनाओं में काम नहीं किये हैं. जब उनके नाम से 50 से अधिक कार्यदिवसों का विभिन्न योजना में कार्य करने के सवाल पर उनका कथन था कि ये सब ठेकेदारों का काम है. हमलोगों को कहां काम मिलता है? इसे भी पढ़ें-नागा">https://lagatar.in/naga-baba-khatal-lottery-allotted-to-90-fruit-and-vegetable-vendors/">नागा

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मजदूरी भुगतान पर प्रशासन संवेदनहीन  

मनरेगा योजना में मजदूरी भुगतान एक बड़ी समस्या बनी रहती है. इसके बाद भी स्थानीय स्तर पर भी जानकर लेट-लतीफ किया जाता है. मनरेगा वेबसाइट के इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों हैं जिससे यह पुष्टि होती है. पूरे वित्तीय वर्ष में मजदूरों के कार्य दिवस भरने के लिए तालझारी प्रखंड में जो मस्टर रोल सृजित किये उसमें  14 कार्य दिवसों का सृजित किया गया है. जबकि कंप्यूटर प्रणाली में 7 दिन का भी सृजित करने का विकल्प है. लगातार 14 दिनों के मस्टर रोल सृजित होने से पहले सप्ताह भर कार्य करने वाले मजदूरों को कभी भी क़ानूनी प्रावधान के हिसाब से 15 दिनों के अंदर मजदूरी भुगतान नहीं की जा सकता है. क्योंकि कार्यस्थल से मस्टर रोल ही एक सप्ताह बाद प्रखंडों तक पहुंच पा रहा है. इसके कारण भी ग्रामीणों का मनरेगा के प्रति मोहभंग हो रहा है और ठेकेदारी प्रथा धड़ल्ले से फलफूल रहा है. [wpse_comments_template]

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