- पंचम विधानसभा के 12 सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के बीत, अब सिर्फ बचे हैं 3 सत्र
- पक्ष-विपक्ष की खींचतान में खाली पड़े हैं महत्वपूर्ण आयोग और संवैधानिक पद
- सदन में नेता प्रतिपक्ष का कमरा, कुर्सी और वाहन कर रहे अपने नये नेता का इंतजार
Satya Sharan Mishra
Ranchi : झारखंड विधानसभा को 3 साल 10 महीने बाद भी नेता प्रतिपक्ष नहीं मिल पाया है. राज्य के इतिहास में पहली बार इतने लंबे समय तक राज्य में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है. इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष के लिए सदन में अलॉट उनका कमरा और सदन में बैठने और वाहन भी खाली पड़ा है. इससे पहले झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का पद सबसे अधिक 8 महीने तक खाली रहा था. 29 मई 2009 को अर्जुन मुंडा नेता प्रतिपक्ष के पद से हटे थे. इसके बाद करीब 8 महीने बाद 7 जनवरी 2010 को राजेंद्र सिंह नेता प्रतिपक्ष बने थे. वहीं 2013 में करीब 6 महीने तक नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहा था. राजेंद्र सिंह 18 जनवरी 2013 को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटे और फिर से अर्जुन मुंडा 19 जुलाई 2013 को नेता प्रतिपक्ष बने थे.
नेता प्रतिपक्ष न होने से राज्य को भी नुकसान
2019 से अबतक झारखंड विधानसभा का 12 सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के बीत चुका है. 2024 का विधानसभा चुनाव होने से पहले पांचवीं विधानसभा के अब सिर्फ 3 सत्र ही बचे हैं. 2023 का शीतकालीन सत्र, 2024 का बजट सत्र और मॉनसून सत्र के बाद चुनाव होने की उम्मीद है. करीब 4 साल की लंबी अवधि में सदन को नेता प्रतिपक्ष नहीं मिलने के कारण राज्य को भी बड़ा नुकसान हुआ है. नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के कारण सूचना आयोग और लोकायुक्त समेत कई संवैधानिक पदों पर अबतक नियुक्ति नहीं हो पाई है. इसके कारण जनता की हजारों शिकायतें और आवेदन इन दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं.
भाजपा नहीं चुन पाई नया विधायक दल का नेता
बाबूलाल मरांडी के दलबदल का मामला स्पीकर के न्यायाधिकरण में लंबित है. इस सरकार के पूरे कार्यकाल में उनके दलबदल के मामले का निपटारा संभव नहीं दिख रहा है. इस बीच भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. अब उनकी जगह नया विधायक दल का नेता ढूंढा जा रहा है. मॉनसून सत्र में ही सदन को नया नेता प्रतिपक्ष मिल गया होता, लेकिन नेता का चयन नहीं हो सका. जुलाई में केंद्रीय पर्यवेक्षक अश्विनी चौबे सभी विधायकों से 3-3 नाम लेकर दिल्ली गये थे. उसपर भी अबतक केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया है. उम्मीद है कि शीतकालीन सत्र से पहले भाजपा नये विधायक दल का नेता चुन लेगी और सदन को बचे हुए तीन सत्रों के लिए नया नेता प्रतिपक्ष मिल जाएगा. इसके साथ ही आयोग और संवैधानिक पदों पर नियुक्ति का भी रास्ता साफ हो सकेगा.