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उनको माफ कर देना मेजर शैतान सिंह. वो नहीं जानते वो क्या कह रहे हैं.

Manish Singh

बेल्ट खोल दे रामचंदर.

नही साहेब, मैं नही खोल सकता.

खोल दे, बहुत दर्द हो रहा है..

रामचंदर कैसे खोलता. थोड़ी देर पहले जब हाथ लगाकर देखा था.. तो समझ गया था कि अंतड़ियां खुल गयी हैं.

बेल्ट ने दबा रखा है.

उसने बेल्ट खोल दी तो...

साहेब बेहोशी के दौरे में चले जाते, फिर सचेत होते. फिर एक बार बुदबुदाये..  अच्छा, एक बात मानेगा मेरी.. हां साहेब.. तू बटालियन चला जा. कहना कि पूरी पलटन शहीद हो गयी. लेकिन कोई पीछे नही हटा.

आपको छोड़कर नही जाऊंगा साहब. पर, साहब फिर बेहोश हो चुके थे.

अब जेसीओ रामचंदर यादव ने उन्हें उठाया, और पहाड़ी के नीचे लाने लगा. रास्ते मे उसे अहसास हुआ. मेजर शैतान सिंह दम तोड़ चुके थे. बर्फ अब भी गिर रही थी.

रामचंदर वहां पहुंचा जहां बटालियन का कैम्प था. पर वहां बहुत थोड़े लोग थे. जीप में बिठाकर उसे हेडक्वार्टर लाया गया. उसने कहानी बताई..  बारामूला से उन्हें 2 दिन पहले ही चुशुल सेक्टर में भेजा गया था. वहां LAC के पास रेजांग ला पर एक मोर्चा लगाया गया था. कम्पनी वहीं डटी हुई थी.

18 नवंबर की भयंकर सर्दी थी. लेकिन भारतीय सैनिक चौकस थे. रात साढ़े तीन बजे कुछ चीनियों को आते देखा गया. मेजर साहब ने रेंज में आते ही उन पर फायर करने का आदेश दिया.

पहला रेला आते ही एक टुकड़ी की तरफ से धुआंधार फायरिंग हुई. चीनी गिरने लगे. वे चींटियों की तरह चढ़े आ रहे थे, मरते जा रहे थे.  तीन घंटे तक लड़ाई चली. फिर थम गई.

सुबह साढ़े छह बजे, रोशनी होते ही बंकरों पर गोले बरसने लगे. मानो बरसात हो रही हो. हर पोस्ट, हर बंकर फटने लगी. आधे घंटे की शेलिंग के बाद नजारा बदल चुका था.

धुआं छंटते ही चीनी फिर आने लगे. हमारी कई पोस्ट खामोश हो चुकी थी. जो बचे थे, गोलियां दाग रहे थे. मेजर शैतान सिंह को भी शेल का टुकड़ा लगा था.

मगर वे पोस्ट से पोस्ट भागते रहे, जवानों का हौसला बढ़ाते. इसी दौरान गोलियों का एक बर्स्ट लगा. गिर गए, रामचंदर उन्हें उठाकर ओट में ले आया.

खून तेजी से बह रहा था. साहब बेहोश हो गए.  फिर होश में आये. तो जानकारी ली. फिर कहा - बेल्ट खोल दे रामचंदर.

बर्फबारी कुछ दिन बाद रुकी. सीजफायर हो चुका था, मगर बर्फ की मोटी तह हो चुकी थी.  सारे निशान मिट चुके थे. पूरे तीन माह के बाद बाद जब बर्फ पिघली, इनकी तलाश शुरू हुई. एक चरवाहे को पहाड़ी पर लाशों का ढेर दिखा.

हैवी शेलिंग से उड़े हुए हाथ पैर, हाथों में अब भी बंदूक, कोई यूं पड़ा है जैसे अभी उठ कर गोली चलाने लगेगा. गुड्डे गुड़ियों की तरह जहां तहां बिखरे शरीर..

कुमाऊं रेजिमेंट ने अपने 113 सैनिकों की लाशें इकट्ठा की. 18 नवंबर 1962 की उस काल रात्रि में चीनी सेना ने भी अपने 1200 से ज्यादा सैनिक खोए. बाद में आई रिपोर्ट्स बताती है कि चीन को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला में हुआ था.

उस रात, चीनियों ने आसपास की कई पहाड़ियों को बिना लड़े कब्जा किया था. भारतीय सेना के कम फौजी होने के कारण उन्हें पीछे हटकर रिग्रूप होने को कहा गया था.

यह आदेश, रेजांगला में मेजर शैतान सिंह भट्टी को भी मिले थे. मगर उनकी कंपनी में अपने रिस्क पर, पोस्ट न छोड़ना तय किया था.

नतीजा शहादत होगा, वे जानते थे.

मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला. रेजांगला में उस पहाड़ी पर एक स्मारक बनाया गया. जहां कुमाऊं रेजिमेंट के 113 वीर अपनी जान दे गए.

स्मारक 60 सालों तक चीन की ओर देखकर फुसफुसाता था- यहां न किसी को घुसने दिया गया, न आने दिया गया है.

60 साल बाद वह इलाका, आखिरकार बिना लड़े हम हार गए. इलाका "बफर जोन" हो गया है. सेना पीछे हट गई. स्मारक तोड़ दिया गया. मेजर शैतान सिंह की हार 60 साल बाद हुई. पर वो यह खबर टीवी पर नही आई.

फिर एक शख्स ने सवाल पूछा- वो जमीन क्यों छोड़ी गई. जवाब कोर्ट ने दिया. कहा- तुम सच्चे भारतीय नही हो.

उनको माफ कर देना शैतान सिंह. वो नही जानते वो क्या कह रहे हैं.

डिस्क्लेमरः यह टिप्पणी मनीष सिंह के सोशल मीडिया पोस्ट (X) से साभार लिया गया है. 

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