Search

पूर्व राजनयिक ने कहा, ट्रंप टैरिफ से झुकना नहीं चाहिए, बताया, ट्रंप भारत से खुश क्यों नहीं हैं

New Delhi : विपक्ष द्वारा भारत की विदेश नीति और कूटनीति पर सवाल उठाये जाने को लेकर पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप ने कहा कि मैं यहां अपने राजनयिकों को बिल्कुल भी दोष नहीं दूंगा. मुझे लगता है कि पाकिस्तान ने कुछ बिचौलियों के माध्यम से अमेरिकी राष्ट्रपति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है और असीम मुनीर की दो वाशिंगटन यात्राओं के बाद, पाकिस्तान के तथाकथित तेल भंडार पर अमेरिका के साथ तथाकथित सौदा हुआ है.

 

 

 

विकास स्वरूप ने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान अब खुद को वर्ल्ड लिबर्टी फ़ाइनेंशियल के माध्यम से दक्षिण एशिया का क्रिप्टो किंग बनाने की कोशिश कर रहा है, जिसमें ट्रंप के परिवार की हिस्सेदारी है, मुझे लगता है कि पाकिस्तान अपनी छवि एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में पेश करने में कामयाब रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसने(अमेरिका) भारत से उम्मीद छोड़ दी है या भारत अब उसका विरोधी है. 

 


पूर्व राजनयिक ने कहा कि भारत को झुकना नहीं चाहिए क्योंकि हमारी रणनीतिक स्वायत्तता पर कोई समझौता नहीं हो सकता.  अमेरिका द्वारा भारत पर लगाये गये 50फीसदी टैरिफ पर, पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप ने कहा कि ट्रंप एक सौदागर हैं और अब उन्होंने इसे अपनी खासियत बना लिया है कि वे शांतिदूत हैं.

 

 

उन्होंने थाईलैंड, कंबोडिया, रवांडा, कांगो,  आर्मेनिया  हर संघर्ष में खुद को शामिल किया है. उन्हें लगता है कि इनमें से सबसे बड़ा संघर्ष भारत और पाकिस्तान का था क्योंकि ये दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. इसलिए, इस दृष्टिकोण से ट्रंप को लगता है कि वे श्रेय के हकदार हैं 

 


विकास स्वरूप ने कहा कि ओबामा एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला है. ट्रंप वाकई ओबामा से बेहतर प्रदर्शन करना चाहते हैं, और इसीलिए, मुझे लगता है, उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार पाने की अपनी लालसा को छुपाया नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि  अगर वे रूस और यूक्रेन के बीच युद्धविराम करवा पाते हैं, तो शायद यही उनके लिए नोबेल शांति पुरस्कार का टिकट हो सकता है. 


टैरिफ के मद्देनजर भारत और अमेरिका के बीच राजनयिक विवाद पर पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि ये टैरिफ क्यों लगाये गये हैं. मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इसके तीन कारण हैं. पहला, ट्रंप भारत से खुश नहीं हैं क्योंकि हम ब्रिक्स के सदस्य हैं और किसी तरह, उनके दिमाग में यह धारणा है कि ब्रिक्स एक अमेरिका विरोधी गठबंधन है जो डॉलर का वैकल्पिक मुद्रा बनाने पर तुला हुआ है.

 

 

 इसलिए, इस वजह से उन्हें लगता है कि भारत को ब्रिक्स का सदस्य नहीं होना चाहिए. दूसरा, ऑपरेशन सिंदूर और युद्धविराम लाने में उनकी तथाकथित भूमिका. हम शुरू से ही कह रहे हैं कि ट्रंप की कोई भूमिका नहीं थी क्योंकि हम बाहरी मध्यस्थता स्वीकार नहीं करते हैं. यह युद्धविराम पाकिस्तान के डीजीएमओ के अनुरोध पर पाकिस्तान और भारत के डीजीएमओ के बीच सीधे मध्यस्थता से हुआ था.

 

 

 ट्रंप लगभग 30 बार कह चुके हैं कि उन्होंने ही दोनों देशों को युद्ध के कगार से वापस रोका, जिन्होंने उपमहाद्वीप में परमाणु युद्ध को रोका. इसलिए ज़ाहिर है कि वह इस बात से नाराज़ हैं कि भारत ने उनकी भूमिका को स्वीकार नहीं किया है, जबकि पाकिस्तान ने न केवल उनकी भूमिका को स्वीकार किया है, बल्कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया है.

 

 

तीसरा, यह उनकी दबाव की रणनीति का हिस्सा है ताकि भारत उन अतिवादी मांगों पर सहमति जताये जो अमेरिका हमारी डेयरी, कृषि और जीएम फसलों तक पहुंच के संबंध में कर रहा है. हमने हार नहीं मानी है और यह एक तरह से रूस के लिए भी एक संकेत है क्योंकि वह भी इस बात से निराश हैं कि वह राष्ट्रपति पुतिन को उस युद्धविराम पर सहमत नहीं करा पाये हैं जिस पर ज़ेलेंस्की सहमत हुए थे.

 

 

 

अब वे 15 अगस्त को अलास्का में मिल रहे हैं. अगर अलास्का वार्ता का सकारात्मक परिणाम निकलता है तो मुझे पूरा यकीन है कि रूस पर प्रतिबंध नहीं लगेंगे क्योंकि पुतिन युद्धविराम स्वीकार करने के साथ-साथ आर्थिक प्रतिबंधों से भी जूझेंगे.

Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें 

 

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp