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मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह की चिट्ठी, चिट्ठी और वैभव कृष्ण की चिट्ठी ?

Vijay Shankar Singh यह चिट्ठिनामा भी अजब है. खबर है कि मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह, अब इस समय डीजी होमगार्ड, महाराष्ट्र, हैं ने एक पत्र लिख कर बताया है कि, महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख इंस्पेक्टर संजय वाज़े जो, मुकेश अम्बानी के आवास, एंटीलिया के सामने जिलेटिन भरे विस्फोटक केस में बतौर संदिग्ध मुल्जिम सामने आये हैं, और जेरे तफ्तीश हैं, के माध्यम से हफ्ता वसूली कराते थे. हफ्ता वसूली का रेट भी उक्त पत्र में दिया गया है. कुल 100 करोड़ का टारगेट रखा गया है और उसके वसूलने के तऱीके भी बताये गये हैं. इसे भी पढ़ें : महाराष्ट्र">https://lagatar.in/will-bihar-politics-repeating-in-maharashtra-sanjay-rauts-tweet-we-are-just-looking-for-new-ways/40210/">महाराष्ट्र

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यह बेहद गम्भीर आरोप है

यह बेहद गम्भीर आरोप है. और जब यह आरोप एक डीजी स्तर का पुलिस अफसर लगाये तो यह और भी गम्भीर हो जाता है. अब यह सब आरोप सही हैं या गलत, किसी साजिश के अंतर्गत लगाये गये हैं, या यह एक व्हिसिलब्लोअर की व्हिसिल है, यह तो, पूरे घटनाक्रम की जांच के बाद ही पता चल सकेगा. पर यहीं कुछ सवाल भी उठते है कि, इस तथ्य की जानकारी परमवीर सिंह को कब हुई ? क्या उन्हें इस बात की जानकारी कमिश्नर के पद से हटाये जाने के पहले हो गयी थी या यह सब पता बाद में चला? यदि कमिश्नर के पद पर रहते हो गयी थी तो फिर, उन्होंने संजय वाजे के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नही की और यह बात उन्होंने मुख्यमंत्री की जानकारी में क्यों नही लायी? उन्होंने क्यों नहीं इस तथ्य की जानकारी होते ही खुद को कमिश्नर पुलिस के दायित्व से मुक्त हो जाने की बात मुख्यमंत्री से मिल कर नहीं कही ?

पुलिस कमिश्नर, मुख्यमंत्री का भरोसेमंद अफसर जरूर होता है.

मुंबई का पुलिस कमिश्नर, गृहमंत्री का विश्वासपात्र हो या न हो पर वह मुख्यमंत्री का भरोसेमंद अफसर ज़रूर होता है. निश्चित ही उन्हें यह बात मुख्यमंत्री को और साथ ही डीजी महाराष्ट्र एवं मुख्य सचिव की जानकारी में लानी चाहिए थी. पुलिस द्वारा अवैध वसूली का आरोप नया नहीं है और यह लगभग हर जगह हर पुलिस बल में समान रूप से संक्रमित है. लेकिन यह भी सच है कि कहीं कहीं वरिष्ठ पुलिस अफसरों का संरक्षण भी इस अवैध कृत्य में रहता है तो कहीं कहीं वरिष्ठ अफसर सख्ती कर के इसे रोकने की कोशिश भी करते हैं. पर यह व्याधि निर्मूल नष्ट हो जाये यह सम्भव नहीं है. जहां तक राजनीतिक नेताओ का प्रश्न है अनिल देशमुख अकेले भ्रष्ट राजनेता नहीं हैं बल्कि इस पंक में सभी सने हुए हैं, अपवादों को छोड़ कर. अब अपवाद कौन है यह मुझे नहीं पता. जिसे पता हो वह कमेंट बॉक्स में हम सब की जानकारी के लिए बता दे. इसे भी पढ़ें : 100">https://lagatar.in/100-crore-recovery-case-maharashtra-cmo-claims-parambir-singhs-letter-unofficial-mail-id-and-without-signature/40204/">100

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यूपी  के एसएसपी वैभव कृष्ण ने भी यूपी सरकार को लिखी थी ऐसी ही  चिट्ठी

परमवीर सिंह की चिट्ठी के साथ ही यह याद आया कि ऐसी ही एक चिट्ठी, उत्तर प्रदेश के जिले, गौतमबुद्ध नगर नोयडा, उत्तर प्रदेश के एसएसपी वैभव कृष्ण ने भी यूपी सरकार को लिखी थी. मुख्यमंत्री जी को सम्बोधित उक्त चिट्ठी में, 5 वरिष्ठ पुलिस अफसरों पर संगठित तौर पर भ्रष्टाचार करने की पूरी जानकारी दी गयी थी. उस चिट्ठी में  ट्रांसफर-पोस्टिंग का रैकेट सरकार में कैसे चल रहा है इसपर खुलासा भी था. पर उस चिट्ठी पर कोई जांच हुई या नहीं हुई,यह तो नहीं पता पर उक्त चिट्ठी के बाद वैभव कृष्ण जो एसएसपी गौतम बुद्ध नगर से हटा दिया गया था. वैभव ने यह पत्र पद पर रहते हुए दिया था. परमवीर सिंह को व्हिसिलब्लोअर माना जाये या पद से हटने के बाद की नाराजगी, कि मैं सब पोल खोल दूंगा जैसा भाव, यह सब अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.

पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार है इससे किसी को इनकार नहीं है

पुलिस विभाग में भी भ्रष्टाचार है इससे किसी को इनकार नहीं है. इस भ्रष्टाचार को यह कह कर जस्टिफाई भी नहीं किया जाना चाहिए कि भ्रष्टाचार सभी जगहों पर है. यूपी में हमारे एक आईजी साहब थे, बीपी सिंघल. वे कहा करते थे कि, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार को अन्य विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार से अधिक गम्भीरता से लेना चाहिए, क्योंकि पुलिस के पास भ्र्ष्टाचार रोकने, रिश्वत लेने देने के आरोप में कार्र्वाई करने की वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं.

महाराष्ट्र सरकार  इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराये

महाराष्ट्र सरकार को चाहिए कि वह इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराये, यदि सम्भव हो तो न्यायिक जांच करा लें और गृहमंत्री अनिल देशमुख को या तो मंत्रिमंडल से जांच होने तक, हटा दें या उनका विभाग बदल दें. ऐसी ही जांच यूपी सरकार को भी वैभव कृष्ण के पत्र पर भी करानी चाहिए. हालांकि कमिश्नर पुलिस मुंबई और वैभव की चिट्ठियों की टाइमिंग में अंतर है, आरोपों मे अंतर है और उनकी परिस्थितियों में भी अंतर है. लेकिन समर्पण और अनुशासन जैसे बोध वाक्य से सम्पुटित इस अनुशासित महकमे में, ऐसे पत्र यदा कदा ही लिखे जाते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.

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