Surjit Singh दो दिन पहले नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि अभी जब हम आप सबसे बात कर रहे हैं, भारत ने जापान को पछाड़ दिया है. हम दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं. यह बात मैं नहीं विश्व मुद्रा कोष (आइएमएफ) कह रहा है. नीति आयोग के सीईओ के इस बयान को आपने टीवी पर देखा, अखबारों व पोर्टल्स पर पढ़ा. पर यह खबर खूब प्रचारित-प्रसारित किया गया. वाट्सएप, एक्स (ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम पर खूब मैसेज वायरल हुए. दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बनने की बात घर-घर पहुंचा दी गयी. फिर क्या था, देश का बहुसंख्यक समाज खुशी से झूमने लगा. सोशल मीडिया पर डांस करने लगा. आइएमएफ की रिपोर्ट अब दुनिया के सामने है. पता चल रहा है कि नीति आयोग के सीईओ ने आधा सच भी नहीं बोला था. आइएमएफ की रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय वर्ष यानी 2024-25 (31 मार्च 2025 तक) में भारत की अर्थव्यवस्था 3.91 ट्रिलियन डॉलर की रही, जबकि जापान की 4.03 ट्रिलियन डॉलर की. आइएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस चालू वित्तीय वर्ष यानी 2025-26 में अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था 4.187 ट्रिलियन डॉलर की हो जायेगी, जबकि जापान की 4.186 ट्रिलियन डॉलर की. यानी चौथे नंबर पर हम जरुर होंगे, लेकिन कितने अंतर से. 0.001 ट्रिलियन डॉलर से. सवाल उठता है कि नीति आयोग के सीईओ को क्यों झूठ बोलना पड़ा. क्यों दुनियाभर में उनकी भद्द पीट रही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने यह सब बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बोला. आइएमएफ के अनुमान पर आधारित आकलन को आज का सच बता दिया. खैर, नीति आयोग के सीईओ ने क्यों, यह सब किया, वह जानें. हमारे-आपके लिए तो यह मायने रखता है कि भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था कैसे बनी और इससे आम लोगों के जीवन स्तर में कितना सुधार हुआ है या हो पायेगा. यह जो दौलत बढ़ी है, वह किसके जेब में है. हमारे-आपके जेब में या मुट्ठी पर लोगों की जेब में. इसके लिए दो दिन पहले अंग्रेजी दैनिक हिन्दुस्तान टाईम्स की रिपोर्ट को जानना चाहिए.

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रिपोर्ट क्या कहती है -
देश की कुल संपत्ति का 29 प्रतिशत 0.1 प्रतिशत लोगों के जेब में है. 1961 में 0.1 प्रतिशत अमीरों के पास सिर्फ 3.2 प्रतिशत संपत्ति हुआ करती थी.
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देश की कुल संपत्ति का 39.5 प्रतिशत का 1 प्रतिशत लोगों के पास है. 1961 में 1 प्रतिशत अमीरों के पास सिर्फ 12.9 प्रतिशत संपत्ति हुआ करती थी.
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देश की कुल संपत्ति का 64.5 प्रतिशत 10 प्रतिशत लोगों के पास है. 1961 में 10 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 44.9 प्रतिशत संपत्ति हुआ करती थी. मतलब सिर्फ 35.5 प्रतिशत संपत्ति देश के 90 प्रतिशत लोगों के पास है.
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देश के 40 प्रतिशत लोगों (मीडिल क्लास) के पास 1961 में 43.7 प्रतिशत संपत्ति हुआ करती थी. अब इनके पास सिर्फ 29 प्रतिशत बचा है.
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देश के 50 प्रतिशत (नीचे के, गरीब, लोअर मीडिल क्लास) लोगों के पास 1961 में 11.4 प्रतिशत संपत्ति हुआ करती थी. अब इनके पास सिर्फ 6.5 प्रतिशत संपत्ति है.

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alt="" width="242" height="300" /> इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि देश के 90 प्रतिशत लोगों के सामने जिंदगी जीने की दिक्कतों का पहाड़ है. 10 प्रतिशत लोगों की संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है. और इन 10 प्रतिशत लोगों की संपन्नता पर देश के 90 प्रतिशत लोग झूमने लगे हैं या मानसिक रुप से इसी समझ के लायक बना दिए गए हैं. तय इन 90 प्रतिशत लोगों को ही करना है कि वह इस उपलब्धि पर नाचें-गाएं या फिर सोंचे, यह अमीरी किसके लिए?
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