Vinit Abha Upadhyay/Saurav Singh
Ranchi : झारखंड में कई थानेदार नीचे से ऊपर तक चढ़ावा देने में ही परेशान हैं. थाना प्रभारियों के सामने सबसे बड़ी परेशानी ये है कि पहले वो अपना इन्वेस्टमेंट निकालें या अधिकारियों को खुश करें. नाम नहीं लिखने की शर्त पर कुछ थाना प्रभारी बताते हैं कि जिला में पहले थाना देने के लिए जी हुजूरी करनी पड़ती है. उसके बाद सिस्टम को फॉलो करना पड़ता है. थाना मिल जाने के बाद हर महीने चढ़ावा भी चढ़ाना पड़ता है और अगर चढ़ावे से आलाधिकारी खुश नहीं हुए तो व्यवस्था में बदलाव का पूरा डर बना रहता है.
इतना ही नहीं कई जगहों पर जिला से ऊपर के रेंज और जोन के अधिकारी भी अपना आदमी भेजकर थाना प्रभारी से कलेक्शन करवाते हैं. एक जिला में तो एक सिपाही और दरोगा के बीच सिर्फ इसलिए विवाद हो गया, क्योंकि दरोगा ने सिपाही को वसूली करने से रोक दिया. सिपाही भी सिस्टम फॉलो करके ही आये हैं, इसलिए आप मुझे ज्यादा परेशान न करें. वर्तमान में कई जिलों में हाल ऐसा है कि सही रिचार्ज और समय पर रिचार्ज नहीं मिलने पर कुछ महीनों में ही थाना प्रभारियों का तबादला से संबंधित आदेश निकाल दिया जाता है. कुल मिलाकर नीचे से ऊपर तक चढ़ावा और रिचार्ज का खर्चा आम जनता से वसूला जाता है और शायद यही वजह है कि पासपोर्ट वेरिफिकेशन से लेकर केस दर्ज करने तक के लिए या तो बड़ी पैरवी लगानी पड़ती है या फिर चढ़ावा देना पड़ता है. हालांकि कई जिले ऐसे भी हैं, जहां के अधिकारी वसूली के इस खेल में संलिप्त नहीं हैं. लेकिन ऐसे अधिकारियों की संख्या काफी कम है.
प्रतिनियुक्ति करने का अलग ही चल रहा खेल
झारखंड में पुलिस विभाग में प्रतिनियुक्ति का अलग ही खेल चलता है. इसका मतलब होता है अस्थायी थाना प्रभारी. प्रभारी का पद खाली भी है और भरा हुआ भी. यानि जब तक साहेब की मर्जी तब तक थानेदार. जब तक साहेब खुश तब तक अफसर की थानेदारी. थाना प्रभारी के पद पर पदस्थापन और हटाने के लिए नियमावली होती है. हटाने के लिए डीआईजी की अनुमति लेनी होती है. इसलिए पदस्थापन के बदले प्रतिनियुक्ति करके काम चलाया जाता है. बहुत पहले मुख्यालय स्तर पर इसे लेकर गंभीर चर्चा भी हुई थी. तब जिलों में प्रतिनियुक्ति का यह खेल बंद हो गया था. पिछले कुछ महीने से जिले में फिर से यह खेल शुरू हो गया है.