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गडकरी की सदिच्छा या फिर राजनीति कांग्रेस की मजबूती की वकालत !

Faisal Anurag भाजपा नेता नितिन गडकरी की यह सदिच्छा है, लोकतंत्र मोह है या फिर इसके पीछे कोई राजनीति. नितिन गडकरी ने न केवल स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत कांग्रेस की वकालत  है बल्कि क्षेत्रीय दलों के उभार के खतरे को लेकर भी एक तरह की गहरी चिंता प्रकट की है. दो दिनों से भारतीय राजनीति में गडकरी के बयान की चर्चा है और तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की राजनीति में दखल देने की शुरूआत ही कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ की थी. अमित शाह भी नरेंद्र मादी के इस कथन को बारबार दुहराते हैं. हालांकि गडकरी ने विपक्ष की मजबूती को लेकर कोई नयी बात नहीं कही है, लेकिन इस बार एक ओर जहां वे कांग्रेस के नेताओं से पार्टी की विचारधारा नहीं छोड़ने का सुझाव दे रहे हैं. वहीं जवाहरलाल नेहरू का नाम लेकर कह रहे हैं कि वे विपक्ष का उस दौर में भी पूरा सम्मान करते थे जब वे राजनैतिक तौर पर बेहद कमजोर थे. दूसरी ओर भारत की हर समस्या के लिए नेहरू को दोषी बताना मोदी के स्वभाव का हिस्सा बन गया है. वहीं स्वतंत्रता संग्राम में भी जवाहरलाल नेहरू के योगदान को कम करने की एक पूरी प्रक्रिया मोदी सरकार चला रही है. राजनैतिक घुटन और विपक्ष को खतरा बताने की प्रवृति के बीच गडकरी की बातें एक सुकून का अहसास देती हैं. गडकरी मोदी सरकार के सबसे अधिक सक्रिय मंत्री हैं, जिनकी अपनी पहचान है और वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इसके साथ ही वे राष्ट्रीय सेवक संघ के बेहद करीब समझे जा सकते हैं. गडकरी का ताजा बयान पांच राज्यों में से चार में भाजपा की जीत के बाद आया है. बयान की टाइमिंग का भी राजनैतिक महत्व होता है. गडकरी ने कहा कि चूंकि कांग्रेस कमजोर हो रही है, अन्य क्षेत्रीय पार्टियां उसका स्थान ले रही हैं. कांग्रेस के पुराने नेताओं को पार्टी की विचारधार के साथ बने रहने के उनके सुझाव इस अर्थ में महत्वपूर्ण हैं कि आरोप लगाया जाता रहा है कि कांग्रेस को कमजोर करने के लिए उसे नेताओं को भाजपा ही प्रेरित करती है. जोतिरादित्य सिंधिया ,जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह के उदाहरण चर्चा में रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है कि अन्य क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस का स्थान लें. इस समय देश की केंद्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दल तेजी से विकल्प बनने के लिए गठबंधन की कोशिश में हैं. इसमें ममता बनर्जी,शरद पवार और चंदशेखर राव जैसे मुख्यमंत्री शामिल हैं. पांच राज्यों में बुरी पराजय के बाद कांग्रेस चौतरफा आलोचना का शिकार हो रही है. कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता पार्टी में बुनियादी बदलाव पर जोर दे रहे हैं. कपिल सिब्ब्ल ने यहां तक कह दिया है कि गांधी परिवार का दौर खत्म हो चुका है. गुलाम नबी आजाद राजनीति से रिटायर होने की बात कहने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में एक ऐसी भूमिका में हैं जिससे लग रहा है कि उनके मन में एक क्षेत्रीय पार्टी बनाने की प्रवृति हावी है. क्षेत्रीय दल इस समय एक तीसरे मोर्चे की भूमिका ठीक उसी तरह बना रहे हैं जैसा 1995 के बाद के राजनीतिक घटनाक्रम में देखा गया था. उस समय भी कांग्रेस बुरी तरह बिखरी हुयी थी और वह लगातार विभाजन का शिकार हो रही थी. भारत में एक तबका ऐसा भी है जो मानता है कि भारत में भी अमेरिका की तरह दो दलीय व्यवस्था होनी चाहिए. तो क्या गडकरी भी चाहते हैं कि भारत में मात्र मजबूत दल ही रहें जो एक दूसरे का विकल्प पेश करते रहें. लेकिन भारत की राजनैतिक विशेषता इसकी सामाजिक,सांस्कृतिक और क्षेत्रीय बहुलता है. राजनीति में उपेक्षित क्षेत्रीय आकांक्षाओं को क्षेत्रीय दल ही स्पेस देते हैं. भारत की विविधता ही भारत में राजनैतिक दलों की बहुतायता और बहुलता को परिलक्षित करती है. आरएसएस इस विधिता के खिलाफ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पैरोकारी करता रहा है. गडकरी ने कांग्रेस की विचारधारा की मजबूती की भी वकालत की है. यानी वे चाहते हैं कि एक लिबरल और एक कंजरवेटिव दल ही अस्तित्व में रहे. जैसा ब्रिटेन में है. हालांकि वहां भी ग्रीन पार्टी तेजी से उभर रही है. हालांकि एक ऐसे दौर में जब कि सच बोलने के साहस का अभाव हो, मोदी से अलग बातें करना बताता है कि तेजी से मजबूत होती एकाधिकारवादी प्रवृति के खतरे को भाजपा के कुछ पुराने नेता भी महसूस कर रहे हैं. गडकरी ने जवहारलाल नेहरू का उल्लेख करते हुए कहा कि अटल बिहारी बाजपेयी के चुनाव हार जाने के बाद भी पचास के दशक में नेहरूजी ने उनकी प्रंशसा की थी और उन्हें भविष्य का नेता बताया था. आज के दौर में विपक्ष के नेताओं के खिलाफ बुलडोजर से कुचल दिए जाने की प्रवृति हावी है और गडकरी जो कि बाजपेयी स्कूल के ही राजनेता हैं लोकतंत्र में विपक्ष के नेताओं को चुनावी हार के बाद भी सम्मान और महत्व दिए जाने की बात कर रहे हैं. गडकरी ने मजबूत कांग्रेस के सहारे क्षेत्रीय दलों के साथ उन लोगों पर भी एक तरह से निशाना साधा है जिनका राग है कांग्रेस मुक्त भारत. [wpse_comments_template]

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