फरवरी को सौर मंडल में दिखेगा अद्भुत नजारा, एक सीधी रेखा में नजर आयेंगे सातों ग्रह
56 गांवों को मिला पट्टा, लेकिन महत्वपूर्ण प्रावधानों की अनदेखी
महासभा का कहना है कि 9 अगस्त 2024 को गढ़वा जिला प्रशासन ने 56 गांवों को सामुदायिक वन अधिकार पट्टा प्रदान किया था. लेकिन इसमें कानून के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों की अनदेखी की गई. सामुदायिक वन अधिकार पट्टे में धारा 3(1)(झ) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया. इसके अलावा सरकार ने ग्राम सभाओं द्वारा किए गए दावों में कटौती कर दी. जिला स्तरीय वन अधिकार समिति (DLC) ने गैर-कानूनी तरीके से रकबा और अधिकार में कटौती की.वन विभाग पर गंभीर आरोप
महासभा ने आरोप लगाया कि वन विभाग ने गैर-कानूनी तरीके से वन सुरक्षा समितियों का गठन किया और ग्राम सभाओं के वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया. इसमें वन संसाधनों पर ग्राम सभाओं को पूर्ण स्वामित्व मिलना चाहिए था. लेकिन यह नहीं दिया गया. ग्राम सभाओं को तेंदू पत्ता, बांस, महुआ आदि वनोत्पादों के संग्रहण, प्रसंस्करण, भंडारण और बिक्री का पूरा अधिकार मिलना चाहिए था. साथ ही उन्हें गौण वनोत्पादों के परिवहन परमिट जारी करने का अधिकार भी दिया जाना चाहिए था, लेकिन ये अधिकार नहीं दिए गए.पदयात्रा की मुख्य मांगें
1. गढ़वा जिले की ग्राम सभाओं के वन अधिकारों और दावों की कटौती को रद्द कर उन्हें संपूर्ण अधिकार पत्र दिया जाए. 2. लंबित वन अधिकार दावों का शीघ्र निपटारा कर अधिकार पत्र वितरित किए जाएं. 3. वन विभाग द्वारा वन सुरक्षा समिति या संयुक्त वन प्रबंधन समिति जैसे गैर-कानूनी संगठनों का गठन तुरंत बंद किया जाए. 4. CAMPA योजना सहित सभी वन योजनाओं का क्रियान्वयन ग्राम सभा की अनुमति से किया जाए. 5. ग्राम सभा के अधिकारों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर एट्रोसिटी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाए. 6. ओडिशा की तर्ज पर ग्राम सभाओं को बांस और तेंदू पत्ते के संग्रहण और परिवहन का पूरा अधिकार दिया जाए. 7. छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बड़े प्रोजेक्ट्स से प्रभावित गांवों को पारदर्शी मुआवजा दिया जाए. 8. अंबिकापुर-गढ़वा रेलमार्ग निर्माण परियोजना को तत्काल रद्द किया जाए. 9. आदिवासियों पर दर्ज झूठे मुकदमों पर रोक लगाई जाए. इसे भी पढ़ें-भ्रष्टाचार">https://lagatar.in/preliminary-investigation-not-necessary-before-registering-fir-in-corruption-case-supreme-court/">भ्रष्टाचारके मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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