कैसे हुई पूजा की शुरुआत
एक बार माता की प्रतिमा विसर्जन के समय प्रतिमा का पाटा श्रद्धालु उठा नहीं पाए. तत्कालीन राजा ने पाटा उठाने के लिए हाथी भिजवाया. इसके बाद भी उसे उठाया नहीं जा सका. इसके कुछ दिनों बाद ही गावां में प्लेग फैल गया. मां दुर्गा ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर चैत्र नवरात्र शुरू करने को कहा. इसके बाद से ही यहां चैत्र नवरात्र की शुरुआत हुई. आज भी पूजा में राजपरिवार के सदस्य बैठते हैं. इस समय मंदिर के मुख्य आचार्य भवेश मिश्रा व उनके सहायक अवध पांडे हैं. 60 के दशक के बाद से पूजा सार्वजनिक कमेटी करती आ रही है. इससे पूर्व राजघराने के सदस्य ही करते थे. नवरात्र के समय मेला भी लगता है, जिसमें दूर दराज से लोग आते हैं.भैंस की दी जाती थी बलि
पूर्व में यहां पूजा के दौरान भैंस की बलि दी जाती थी. फिलहाल भैंस की बलि नहीं देकर बकरे की बलि दी जाती है. नवमी के दिन सैकडों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती है.लगता है मेला
चैत्र नवरात्रि के अलावा अश्विन नवरात्रि में मंदिर परिसर में तीन दिनों तक मेला लगता है. मेला में दूर दराज के इलाके से बड़ी संख्या में लोग आते हैं. मेला में झूला, ब्रेक डांस, टोराटोरा के साथ-साथ मनोरंजन के साधन की व्यवस्था रहती है. सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. यह">https://lagatar.in/wp-admin/post.php?post=587860&action=edit">यहभी पढ़ें : गिरिडीह : झामुमो की पंचायत कमेटी गठित [wpse_comments_template]