Giridih :_आजादी के करीब 75 साल बाद भी गिरिडीह जिले के सदर प्रखंड के बड़कीटांड़ गांव के आदिवासी नाला का दूषित पानी पीने को विवश हैं. सरकार गांव में आज तक पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं कर सकी है. सुबह होते ही महिलाएं घर से तसला-डेकची लेकर निकल जाती हैं और करीब तीन किलो मीटर दूर नाले से पानी ढोकर लाती हैं. इसमें करीब दो से तीन घंटे लग जाते हैं. यह उनकी रोज की दिनचर्या है. महिलाओं को नाले में गड्ढा खोदकर बर्तन में पानी भरना पड़ता है. गर्मी शुरू होने के साथ ही गांव में पेयजल शुरू हो जाता है.
गांव में 3 चापाकल, फरवरी-मार्च में ही सूख जाते हैं
गांव में तीन सरकारी चपाकल हैं. लेकिन महज 3-4 महीने ही इनसे पानी निकलता है. हर साल गर्मी की दस्तक के साथ जल स्तर नीचे चले जाने के कारण फरवरी-मार्च में ही इनसे पानी निकलना बंद हो जाता है. पहाड़ की तलहटी में बसे होने के कारण बड़कीटांड़ का जलस्तर वैसे भी काफी नीचे है. महिलाएं जिस नाले से पानी ढोकर लाती हैं सरकार ने उसी नाले का पानी गांव में पहुंचाने की योजना बनाई थी, लेकिन उसे धरातल पर नहीं उतरा जा सका.
किसी सरकार ने नहीं ली ग्रामीणों की सुध
भाकपा माले नेता राजेश यादव ने कहा कि झारखंड गठन के बाद राज्य में कई सरकारें बनीं, लेकिन किसी भी सरकार ग्रामीणों की सुध नहीं ली. उन्होंने बड़कीटांड़ गांव में पेयजल की समुचित व्यवस्था जल्द करने की मांग की. इस संबंध में पीएचडी के कार्यपालक अभियंता मुकेश मंडल ने कहा कि गांव में पेयजल की समस्या दूर करने के लिए विभाग के पास प्रस्ताव भेजा गया है. इसका स्थायी समाधान जल्द होने की उम्मीद है.
यह भी पढ़ें : गिरिडीह : अलग-अलग घटनाओं में दो की मौत, एक महिला घायल