भाजापा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से कार्यकर्ताओं में लौटा उत्साह
Rohit Bharti Tisari (Giridih) : गिरिडीह जिले का आदिवासी बहुल कोदाईबांक गांव राजनीतिक दृष्टिकोण से किसी पहचान का मोहताज नहीं है. राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर बसे इस छोटे से गांव का झारखंड की राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा है. इसी गांव ने बाबूलाल मरांडी के रूप में राज्य को पहला मुख्यमंत्री दिया. जी हां, कोदाईबांक बाबूलाल मरांडी की जन्मभूमि है. गांव की उबड़-खाबड़ पगडंडियों से निकलकर दुमका के रास्ते मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले बाबूलाल राज्य की राजनीति में कभी अप्रासंगिक नहीं रहे. बाबूलाल को अलग कर झारखंड की सियासत की बात भी बेमानी है. चाहे वे भाजपा में रहे तब भी, भाजपा से अलग हुए तब भी और अब जब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तब भी. उन्होंने हर बार विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई है. राज्य की राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है. यह गांव फिर सुर्खियों में है. राजनीतिक फिजाओं में सवाल तैरने लगा है- क्या कोदाईबांक का लाल फिर राज्य की बागडोर संभालने की दिशा में कदम रख चुका है? बाबूलाल मरांडी के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद से न सिर्फ इस गांव और क्षेत्र की, बल्कि पूरे प्रदेश की बदली राजनीतिक तपिश को महसूस किया जा सकता है. लोगों का मानना है कि एक बार फिर मरांडी के सीएम बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है. प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हुई उनकी ताजपोशी इसका पहला पड़ाव है. लोगों के चेहरे का भाव यही बता रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा की प्रदेश की मौजूदा राजनीति फिलहाल बाबूलाल मरांडी के इर्दगिर्द ही रहेगी. इसमें भी कोई संदेह नहीं कि बाबूलाल भाजपा के तरकश के आजमाए हुए तीर हैं. राज्य में पार्टी के सबसे तपे तपाए लीडर हैं. इनकी राजनीतिक दक्षता पर पार्टी को पूरा ऐतवार है. प्रदेश अध्यक्ष की कमान इन्हें सौंपकर राष्ट्रीय नेतृत्व ने अप्रत्यक्ष रूप से कई बातों को साफ कर दिया है.2024 का चुनाव परिणाम तय करेगा भविष्य
बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक भविष्य वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम से तय होगा. हालांकि बदले राजनीतिक परिदृश्य में बाबूलाल के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं. मौजूदा दौर में झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार है, इसे कमतर आंकने की गलती भाजपा कतई नहीं करेगी. वहीं भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जो मास्टर स्ट्रोक खेला है, उससे राज्य में विपक्षी खेमे में मची छटपटाहट भी साफ देखी जा सकती है. दूसरी ओर 2006 और 2023 के बीच एक लंबा अरसा गुजरा है. तब और अब की परिस्थितियों में काफी अंतर है. वोटरों के मन-मिजाज में भी काफी बदलाव हुए हैं. कुछ परिस्थितियां पॉजिटिव हुई हैं, तो कई चीजें नेगेटिव भी हैं. युवाओं का एक वर्ग जोश के साथ अलग ताल ठोंक रहा है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी को एक साथ कई चुनौतियों को साधते हुए उससे पार पाना होगा .2006 में किया था जेवीएम का गठन
2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से अलग होकर जेवीएम के रूप में अपना अलग राजनीतिक दल बनाया. कई उतार-चढ़ाव के बावजूद वे सदैव झारखंड की राजनीति की धुरी बने रहे. पक्ष-विपक्ष सभी बाबूलाल की जीवटता और संघर्ष करने की क्षमता का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कायल रहे हैं. बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में बाबूलाल अब पुनः भाजपा के साथ हैं. जो बीत गई, सो बात गई की तर्ज पर जेवीएम और अन्य सारी चीजें अब पुराने वक्त की बात हो चुकी हैं. यह भी पढ़ें : बोकारो">https://lagatar.in/bokaro-skill-development-will-provide-employment-to-the-youth-prakash-ranjan/">बोकारो: कौशल विकास से युवाओं को मिलेगा रोजगार- प्रकाश रंजन [wpse_comments_template]
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