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ग्लोबल ट्राइबल बिजनेस फोरम 2025: दुबई में दिखा आदिवासी संस्कृति का संगम

Ranchi : हाल ही में दुबई के प्रतिष्ठित अल हबटूर पैलेस  में आयोजित ग्लोबल ट्राइबल बिजनेस फोरम 2025 ने जनजातीय समुदायों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान किया. यह आयोजन दुनियाभर के आदिवासी युवाओं, उद्यमियों, नीति निर्माताओं और सांस्कृतिक प्रतिनिधियों का एक ऐतिहासिक संगम बनकर उभरा.

 

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उद्देश्य और उपलब्धि: आदिवासी सशक्तिकरण की ओर ठोस कदम


इस फोरम का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों को आर्थिक सशक्तिकरण, सांस्कृतिक संरक्षण और सतत विकास की दिशा में प्रेरित करना था. यह आयोजन जनजातीय आंदोलन के एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.

 

 

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महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बनीं डॉ. लैला राहल


फोरम की मुख्य अतिथि डॉ. लैला राहल ने विशेष रूप से आदिवासी महिलाओं के योगदान की सराहना की. उन्होंने कहा कि आदिवासी महिलाएं वैश्विक नेतृत्व की पूरी क्षमता रखती हैं और समावेशी विकास की दिशा में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है.

 

जनजातीय प्रतिभाओं को मिला सम्मान


फोरम में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले आदिवासी प्रतिनिधियों को सम्मानित किया गया, जिनमें शामिल हैं:

 

•    लोंग सिंग तेरोन – करबी भाषा एवं सामाजिक कार्यों में योगदान
•    सबिना तेरोम्पी – हस्तशिल्प और पारंपरिक कला के संरक्षण हेतु
•    मालोटी क्रोपी – आदिवासी फैशन और महिला सशक्तिकरण में नवाचार
•    मोनिराम रोंघन्ह – उत्कृष्ट किसान और सामाजिक कार्यकर्ता

 

 

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संस्कृति की जीवंत प्रस्तुति: जोहार और लोकनृत्य से गूंजा दुबई


दुबई में बसे झारखंडी आदिवासी समुदाय ने पारंपरिक पोशाकों और लोकनृत्य के माध्यम से सभी अतिथियों का स्वागत किया. 'जोहार' की गूंज ने आयोजन को आत्मीयता और सांस्कृतिक गर्व से भर दिया.

 

जब ‘जोहार’ ने जीत लिया दिल


एक भावनात्मक क्षण उस समय आया जब कांति गाड़ी ने दुबई के शेख अमर और शेख मोहम्मद अल कसीमी से भेंट की. झारखंड की आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में 'जोहार' कहकर शाही अतिथियों का अभिनंदन किया, जिसने उनकी संस्कृति की गहराई और गरिमा को दर्शाया.

 

नेताओं की प्रतिक्रिया: गर्व और प्रेरणा का क्षण


युवा आदिवासी नेता अनिल अमिताभ पन्ना ने कहा कि यह आयोजन न केवल हमारी परंपरा की वैश्विक स्वीकृति है, बल्कि महिला नेतृत्व और सामाजिक चेतना का प्रतीक भी है.लोहरदगा के सांसद श्री सुखदेव भगत ने इसे ऐतिहासिक आयोजन बताया और कहा कि यह प्रमाण है कि आदिवासी समाज किसी भी वैश्विक मंच पर पीछे नहीं है.

 

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