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अब ऊपरवाले के भरोसे मधुपुर का उपचुनाव

  • पारंपरिक वोटों पर चोट करने के लिए प्रत्याशियों ने बदला हथकंडा
  • मोदी और हेमंत के बाद अब मंदिर-मस्जिद, भगवान और अल्लाह की एंट्री
Satya Sharan Mishra Madhupur : मधुपुर">https://en.wikipedia.org/wiki/Madhupur,_Deoghar">मधुपुर

के उपचुनाव में विकास, मोदी और हेमंत के नारों के बाद अब मंदिर-मस्जिद, भगवान और अल्लाह की भी एंट्री हो गयी है. वैसे तो चुनावी मैदान में 7 प्रत्याशी ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के गंगा नारायण और जेएमएम के हफीजुल हसन में है. एक-दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक पर चोट करने के लिए दोनों प्रत्याशी हर हथकंडा अपना रहे हैं. हफीजुल इस मामले में गंगा नारायण सिंह से आगे चल रहे हैं. वह बीते कई दिनों से हिंदू बहुल इलाकों में चुनाव प्रचार करते दिख रहे हैं. होली के दिन भी वे कुंडू बंगला स्थित श्याम मंदिर में होली के रंग में रंगे नजर आये थे. इससे पहले हफीजुल होलिका दहन सहित कई अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में भी शामिल हुए. बचपन से सियासत के रंग-ढंग देख चुके हफीजुल यह जानते हैं कि चुनावी मौसम में चोला बदले बिना नेताओं का गुजारा नहीं है. इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान वे हिंदू वोटरों से खूब मिल रहे हैं. उनसे वादा भी किया है कि अगर चुनाव जीत गये तो मंदिरों की मरम्मत करवायेंगे. इसे भी पढ़ें : बेरोजगार">https://english.lagatar.in/unemployed-youth-proclaimed-against-hemant-government-will-campaign-in-madhupur/44432/">बेरोजगार

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हफीजुल का हिंदू गांवों पर फोकसः गंगा

उधर बीजेपी के प्रत्याशी गंगा नारायण सिंह पारंपरिक वोटरों के ही चक्कर काट रहे हैं. मधुपुर के राजनीतिक समीकरण से वह भी वाकिफ हैं. लेकिन अबतक के चुनाव प्रचार में उनका फोकस हिंदू बहुल इलाके में ही दिख रहा है. गंगा नारायण सिंह खुद भी मान चुके हैं कि अल्पसंख्यकों के वोट हफीजुल के हिस्से में जायेंगे. मथुरापुर में गुरुवार को आयोजित एक नुक्कड़ सभा में गंगा नारायण ने साफ शब्दों में कहा कि हफीजुल जिस दिन से मंत्री बने हैं, सिर्फ हिंदुओं के गांव जा रहे हैं. क्योंकि वह जानते हैं कि मुस्लिम और आदिवासी वोटर्स उनके साथ हैं. इसलिए हिंदुओं को मंदिर बनवाने के सब्जबाग दिखा रहे हैं. उन्हें अभी मस्जिद दिखाई नहीं दे रही, क्योंकि वह मुस्लिम वोटरों को लेकर निश्चिंत हैं.

पालिवार की नाराजगी दूर करते-करते कहीं न हो जाये देर

गंगा नारायण सिंह को बीजेपी से टिकट तो मिल गया, लेकिन उनमें पहले जैसा कांफिडेंस नहीं दिख रहा. वजह शायद राज पालिवार और उनके समर्थकों की नाराजगी है. राज पालिवार ने पार्टी से बगावत तो नहीं की है, लेकिन उनकी नाराजगी का असर बीजेपी वोटों पर जरूर होगा. राज पालिवार को टिकट कटने से ज्यादा दुख इस बात का है कि संगठन ने उनकी पूरी तरह उपेक्षा कर दी. पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष की हैसियत से भी उन्हें नॉमिनेशन और जनसभा में आमंत्रित नहीं किया गया. बीजेपी को भी यह मालूम है कि राज पालिवार की नाराजगी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अबतक बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व ने उनसे बात तक नहीं की है. गुरुवार को बाबूलाल मरांडी ने कहा कि पालिवार पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं, उनसे बात कर उनकी नाराजगी दूर की जायेगी. सवाल यह है कि आखिर कब पालिवार की नाराजगी दूर करने की पहल होगी. कहीं नाराजगी दूर करते-करते देर न हो जाये.

भीतरघात की आशंका से डरे हुए हैं गंगा नारायण

बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले गंगा नारायण को इंपोर्ट किया है. बीजेपी की कार्यशैली को इतनी जल्दी समझना और मधुपुर में बीजेपी नेताओं से तालमेल बैठाना उनके लिए आसान नहीं है. अभी तक प्रदेश के बड़े नेताओं का वहां दौरा भी शुरू नहीं हुआ है. गंगा नारायण भीतरघात की आशंका से भी डरे हुए हैं. अपने जनसंपर्क और सभाओं में ऐसे नेताओं को नजरबंद करने की अपील करते नजर आ रहे हैं.

मधुपुर का उपचुनाव : बीजेपी के कई नेताओं को जेएमएम ने तोड़ा

चुनाव से पहले दलबदल की परंपरा पुरानी रही है. इसमें भी जेएमएम बीजेपी से आगे चल रहा है. हफीजुल हसन के नेतृत्व में एक हफ्ते के अंदर कई बीजेपी नेताओं ने जेएमएम की सदस्यता ग्रहण की. इनमें संतोष तिवारी, धनंजय तिवारी, सुनील सिंह और अजय दास जैसे नेता भी शामिल हैं. बीजेपी के इन नेताओं का पार्टी से मोहभंग राज पालिवार को दरकिनार किये जाने के बाद हुआ है. उधर अबतक मधुपुर में बीजेपी का मिलन समारोह शुरू नहीं हो पाया है. https://english.lagatar.in/positive-initiative-one-click-appointment-will-be-available-in-dhanbad-sadar-hospital/44469/

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