39 माह में 562 IED बरामद : 2022 – 66 2023 – 272 2024 – 131 2025 – 94 (24 अप्रैल तक)आमने-सामने की लड़ाई से बच रहे नक्सली : झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई तेज है. इस बीच नक्सल विरोधी अभियान को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. दरअसल, झारखंड में सुरक्षा बलों के नये कैंप और ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ (एफओबी) स्थापित किये जा रहे हैं. ऐसे में नक्सली बौखला गये हैं. सुरक्षाबल तेजी से उनकी तरफ बढ़ रहे हैं. इसके चलते नक्सलियों के सामने नयी भर्ती का भी संकट खड़ा हो गया है. एनआईए भी नक्सलियों के वित्तीय संसाधनों पर चोट दे रही है. यही वजह है कि अब नक्सली आईईडी ब्लास्ट का सहारा ले रहे हैं. उनके लिए आमने-सामने की लड़ाई संभव नहीं रही. नक्सली पांच तरह के आईईडी ब्लास्ट कर रहे हैं. यहां तक कि वे ब्लास्ट के लिए 1.95 डेस्क टाइमर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
सारंडा जंगल में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में उतारे गये गोरखा के जवान

Saurav Singh Ranchi : कोल्हान और सारंडा के जंगल में नक्सलियों के खिलाफ अभियान और तेज होगा. झारखंड पुलिस मुख्यालय ने नक्सलियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान में पहली बार गोरखा जवान को उतारा है. पुलिस मुख्यालय के आदेश पर जैप की पांच कंपनियों को नक्सलियों के खिलाफ अभियान में सारंडा व कोल्हान जंगल में प्रतिनियुक्त किया गया है. गोरखा जवानों का एक बटालियन है झारखंड सशस्त्र पुलिस (जैप) वन झारखंड सशस्त्र पुलिस (जैप) वन गोरखा जवानों का एक बटालियन है. जनवरी 1880 में अंग्रेजों के शासनकाल में इस वाहिनी की स्थापना न्यू रिजर्व फोर्स के रूप में हुई थी. वर्ष 1892 में इस वाहिनी का नाम बंगाल मिलिट्री पुलिस पड़ा. इस वाहिनी की टुकड़ियों की प्रतिनियुक्ति तत्कालीन बंगाल प्रांत (बिहार, बंगाल एवं ओड़िशा) को मिलाकर की जाती रही. वर्ष 1905 में इस वाहिनी का नाम बदलकर गोरखा मिलिट्री रखा गया. राज्य के अन्य स्थानों पर प्रतिनियुक्त गोरखा सिपाहियों को भी इस वाहिनी में सामंजित किया गया. देश में स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1948 में इस वाहिनी का नाम बदलकर प्रथम वाहिनी बिहार सैनिक पुलिस रखा गया था. इस वाहिनी की प्रतिनियुक्ति नियमित रूप से देश के विभिन्न राज्यों में की जाती रही. इसमें वर्ष 1902 से 1911 तक दिल्ली दरबार, वर्ष 1915 में बंगाल, 1917 में मयूरभंज व मध्य प्रदेश, 1918 में सरगुजा मध्य प्रदेश, 1935 में पंजाब, 1951 में हैदराबाद, 1953 में जम्मू-काश्मीर, 1956 में असम (नागालैंड), 1962 में चकरौता (देहरादून), 1963 में नेफा, 1968-69 में नेफा के प्रशिक्षण केंद्र हाफलौंग असम आदि शामिल हैं. वर्ष 1971 में भारत पाक युद्ध के समय इस वाहिनी को त्रिपुरा के आंतरिक सुरक्षा कार्यों के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था. उस वक्त साहसपूर्ण कार्यों के लिए वाहिनी को भारत सरकार ने पूर्वी सितारा पदक से सम्मानित किया था. वर्ष 1982 में दिल्ली में आयोजित नवम एशियाड खेलकूद समारोह के दौरान इस वाहिनी की प्रतिनियुक्ति की गयी, जहां बेहतर कार्य के लिए दिल्ली सरकार ने इन्हें सराहा था. वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद इस वाहिनी का नाम झारखंड सशस्त्र पुलिस वन (जैप वन) रखा गया था. तीन इनामी समेत 13 नक्सली झारखंड पुलिस के निशाने पर : एक-एक करोड़ के तीन इनामी समेत 13 बड़े नक्सली झारखंड पुलिस के निशाने पर हैं. इनमें माओवादी नक्सली संगठन के शीर्ष नेता व एक करोड़ इनामी मिसिर बेसरा, पतिराम मांझी और असीम मंडल के अलावा अनमोल, मोछु, अजय महतो, सागेन अंगरिया, अश्विन, पिंटू लोहरा, चंदन लोहरा, अमित हांसदा उर्फ अपटन, जयकांत और रापा मुंडा का नाम शामिल है. झारखंड पुलिस के अफसरों का मानना है कि इन बड़े नक्सलियों के पकड़े जाते ही कोल्हान और सारंडा के जंगल में नक्सलियों का वर्चस्व खत्म हो जायेगा. सभी बड़े नक्सली अपने दस्ते के साथ कोल्हान और सारंडा के जंगल में विध्वंसक गतिविधियों के लिए भ्रमणशील हैं.
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