Anand Kumar
झूठ, झूठ और सफेद झूठ!! सत्ता प्रतिष्ठान चलानेवाला पूरा सिस्टम झूठा है. अब आप जिसका नाम सोचना चाहते हैं, सोच लीजिए. सारे के सारे झूठे, नकारा, पाखंडी और बेईमान हैं. केंद्र हो या राज्य, सारा सिस्टम झूठ पर चल रहा है. लोग मरते जा रहे हैं. बीमार लोग कातर आंखों से मदद के लिए पुकार रहे हैं. जलते शवों के धुएं से आसमान धुंधला हो गया है, लाशों के बोझ से धरती रो रही है, लेकिन ये लोग राहत के ठोस उपाय करने के बजाय झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं. सच्चाई से मुंह फेर रहे हैं. लाशों की गिनती कम करके बताते हैं. सरकारी सिस्टम एक नंबर का झूठा, बेईमान, मक्कार और बेशर्म हो चुका है.
झारखंड में कोरोना की आंच राजभवन और मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच गयी है. लेकिन सरकारी सिस्टम अभी भी गंभीरता को कम बता रहा है. मीडिया में सरकार के अधिकारी ऐसे ऐसे बचकाने दावे कर रहे हैं, जिनका हकीकत से कोई लेनादेना नहीं है. पहले प्रशासन ने कई अस्पतालों के नंबर जारी किये कि आपात स्थिति में मरीज वहां फोन करें. मगर जारी करने के बाद सारे फोन या तो बंद मिले या आउट ऑफ सर्विस, अस्पतालों में कई घंटों के इंतजार के बाद भी बेड नहीं मिल रहे. इस वजह से कई मौतें हो चुकी हैं. ऑक्सीजन की भारी कमी है. 10-12 हजार देने पर एक सिलिंडर मिल रहा है. वेंटीलेटर नहीं हैं, दवाओं की किल्लत हैं, लेकिन दावों में कोई कमी नहीं है.
सरकारी झूठ नंबर -1
सोमवार को एक सरकारी झूठ अखबारों में छपा है. इनमें कहा गया है कि झारखंड सरकार का हेल्पलाइन 104 कोविड रोगियों के लिए वरदान साबित हुआ है. यहां से डॉक्टर रोजाना 19 हजार लोगों को खुद फोन कर उनका हालचाल पूछते हैं. लोगों के स्वास्थ्य पर नजर रखे हुए हैं. लोगों को जरूरी सलाह और मदद दे रहे हैं. रविवार तक झारखंड में कुल एक्टिव मामलों की संख्या 28 हजार के करीब थी. इस लिहाज से तो हर मरीज के पास हर दिन डॉक्टरों के फोन आने चाहिए, लेकिन एक भी फोन नहीं आता. 104 की हकीकत जानने के लिए रांची से ही कुछ संक्रमित लोगों के परिजनों ने अलग-अलग नंबरों से 104 पर डायल किया. एक संक्रमित मरीज जिनकी रिपोर्ट 13 अप्रैल को आयी थी, उन्हें आज तक किसी डॉक्टर का फोन नहीं आया. जब 104 पर फोन कर जानकारी ली गयी, तो कॉल उठानेवाली महिला ने बताया कि आपका डेटा हमारे पास नहीं आया होगा. डेटा आयेगा, तो कॉल जायेगा. ऐसा ही जवाब बाकी लोगों को भी दिया गया. सवाल है कि जब किसी की पॉजिटिव रिपोर्ट आने के 6 दिन बाद तक 104 हेल्पलाइन में कोई डेटा नहीं आता, वे कौन 19 हजार लोग हैं, जिन्हें इस सेंटर से डॉक्टर फोन कर रहे हैं. जाहिर है कि ये एक बड़ा सरकारी झूठ है.
सरकारी झूठ नंबर -2
एक और झूठ देखिये. रांची जिला प्रशासन की तरफ से कहा जा रहा है कि वैसे पॉजिटिव मरीज, जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं हैं और वे होम आइसोलेशन में रहना चाहते हैं, तो उन्हें एक पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद आवेदन करना होगा. फिर इस आवेदन पर जिला प्रशासन निर्णय लेगा और वैसे मरीजों की नियमित मॉनिटरिंग की जायेगी. इससे क्रूर मजाक क्या होगा कि जिस राज्य के अस्पतालों में मरीजों को बेड नहीं मिल रहा. ऑक्सीजन और वेंटीलेटर के बिना मौतें हो रही हैं. जिस रांची शहर के डिप्टी मेयर के रिश्तेदार को बेड नहीं मिलता और उनकी मौत हो जाती है. उस शहर में ये होम आइसोलेशन की अनुमति देंगे और मरीज की देखरेख करेंगे. मरीज को उसके अपने ही घर में रहने की अनुमति देनेवाले ये होते कौन हैं.
सरकारी झूठ नंबर -3
जल संसाधन विभाग के एक अवर सचिव की दवा के अभाव में तड़प कर मौत हो गयी. अस्पताल का कर्मचारी दवा वाले रूम में ताला लगा कर घूम रहा था. और सरकार दावा करती है कि उसके पास वर्ल्ड क्लास लेबोरेटरी है, दवाएं हैं. डॉक्टरों की कमी नहीं है. प्रशासन के सभी इंतजाम चौकस हैं. ऑक्सीजन की खेप आ गयी है. वेंटीलेटर मंगाये जा रहे हैं. रेमडेसिविर आ गया है. स्वास्थ्य मंत्री रोज अस्पतालों का दौरा कर रहे हैं. फोटो छप रहे हैं. बयान लग रहे हैं. लेकिन लोग मरते ही जा रहे हैं. हालात रोज बिगड़ रहे हैं.
सरकारी झूठ नंबर – 4
सरकारी तंत्र एक बड़ा फ्रॉड रच रहा है. मीडिया में छपने-दिखने के लिए. अखबारों-चैनलों पर झूठ का पुलिंदा परोसा जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग में दर्जन भर से ज्यादा आइएएस और राज्य सेवा के अफसर ठेल दिये गये हैं. प्रखंड से राज्य स्तर तक नोडल अफसरों की फौज खड़ी कर दी गयी है. किसी पर समन्वय का जिम्मा है. किसी पर ऑक्सीजन का. कोई बेड दिलाने का काम देख रहा है, तो कोई होम आइसोलेशन का इंतजाम. हकीकत यह है कि किसी अफसर में एक बेड दिलाने की कूवत नहीं है. एंबुलेंस और ऑक्सीजन तो दूर की बात है. अस्पतालों में संसाधन नहीं है, तो सरकारी अफसर क्या कर लेंगे. “ज्यादा जोगी मठ उजाड़” वाली स्थिति है. जितने अफसर बढ़ रहे हैं, मौतों का आंकड़ा भी उतना ही बढ़ रहा है.
सरकारी झूठ नंबर – 5
प्रशासन मौतों को लेकर भी झूठ बोलता है. दावा कुछ होता है, हकीकत कुछ और रविवार को सरकारी दावा 11 मौतों का था. जबकि 48 शवों का अंतिम संस्कार हुआ. सभी की अंत्येष्टि कोरोना प्रोटोकॉल के मुताबिक हुई. ये बाकी के 37 कौन लोग थे. आखिर कौन झूठ बोल रहा है. जाहिर है अधिकारी झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि तो लाशें बोल ही नहीं सकतीं. न सच न झूठ. मगर लाशें छुपती भी नहीं. दिख ही जाती हैं.
फिर भी इस सिस्टम में बैठे लोगों को शर्म नहीं आती. यह पूरी व्यवस्था क्रूर और अहंकारी है. अफसर सिर्फ आंकड़े गिनाते हैं. औसत बताते हैं. ये नहीं बताते कि सिस्टम की लापरवाही से जो मर जाता है, वो किसी घर का सहारा, किसी परिवार की उम्मीद, किसी बच्चे का मां-बाप, किसी की पत्नी, बेटी, बेटा या भाई था. एक स्वस्थ कामकाजी हर एक आदमी की ऐसी मौत राज्य और देश के जीडीपी पर असर डालती है. मगर इस निर्दयी, हृदयहीन और भ्रष्ट व्यवस्था को कोई फर्क नहीं पड़ता. ये भूल जाते हैं, कि –
एक आंसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आंखों का समुंदर होना