Prakash K ray
शहीदे-आज़म भगत सिंह कहते थेः बम इंक़लाब नहीं लाते. इसी तर्ज़ पर मैं कहता हूं कि बम लोकतंत्र भी नहीं लाते. ब्लेयरवादी लिबरल (और ब्रेझनेववादी लेफ़्टिस्ट भी कुछ हद तक) चाहे जो कहें, तथ्य किसी भी तर्क और विश्लेषण पर भारी पड़ते हैं. अपने को भरमाने का मौक़ा किसी को नहीं देना चाहिए. यह हिसाब है, जो अमेरिकी कांग्रेस ने पांच बड़ी हथियार कंपनियों को बीते दो दशक में दिया है. दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक.
इन कंपनियों के स्टॉक रिटर्न के आंकड़े पहले ही सार्वजनिक हो चुके हैं. अमेरिकी जनता के एवज़ में लिए गए कर्ज को हथियार कंपनियों को भुगतान किया गया और दावा किया गया कि आतंक से लड़ा जा रहा है. मानवाधिकार सुनिश्चित किया जा रहा है. लोकतंत्र लाया जा रहा है.
अगले कुछ दशकों तक अमेरिकी जनता को अफ़ग़ान युद्ध के ख़र्च के लिए 6.5 ट्रिलियन डॉलर चुकाना होगा. ऐसा ही 1980 के दशक में समाजवाद लाने के नाम पर हुआ था. सोवियत संघ ने कमाई की. सोवियत संघ ध्वस्त हो गया और फिर बरसों तक रूसी और मध्य एशियाई देशों की जनता त्रस्त रही.
अफ़ग़ान रैप अप
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पहली बार सरकारी अफ़ग़ान टीवी व रेडियो पर तालिबान पॉलिटिकल ऑफ़िस के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिज़ई ने देश को अमीरात की ओर से संबोधित किया है. स्तानिज़ई तालिबान के मुख्य रणनीतिकार हैं. 1980 के दशक के शुरू में वे भारत में देहरादून की मिलिटरी एकेडेमी में प्रशिक्षण ले चुके हैं. रिपोर्टों के मुताबिक़, उनके बैचमेट उन्हें शेरू बुलाते थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहाः-
– सारे कमर्शियल बैंक खुल गए.
– स्वास्थ सेवा में कार्यरत सभी महिला कर्मियों को काम पर लौटने को कहा गया.
– बच्चे-बच्चियों के स्कूल खुल गए.
– शिया समुदाय के प्रतिनिधियों ने तालिबान नेतृत्व से मुलाक़ात की और अपनी शिकायतें व समस्याए बतायीं. साथ ही, अमीरात की नीतियों के प्रति समर्थन जताया.
– काबुल हवाई अड्डे के एक हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण हो गया है. क़तर और तुर्की मिलकर हवाई अड्डे का संचालन करेंगे.
– काबुल के एक यूट्यूबर का दावा है कि विस्फ़ोट के दौरान हुईं अधिकतर मौतें अमेरिकी सेनाओं की गोली से हुई है. इसकी जांच होनी चाहिए.
– काबुल के शहरियों को हथियारों समेत सारा सरकारी सामान एक हफ़्ते के भीतर लौटाने का आदेश दिया गया है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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