नीतीश कुमार का बढ़ता सियासी कद

Nishikant Thakur बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा किए जा रहे विपक्षी दलों की एकता का प्रयास रंग दिखाने लगा है. 23 जून को पटना में आयोजित 15 राजनीतिक पार्टियों की एकता बैठक में भाजपा को सत्ता से बाहर करने का प्रयास शुरू कर दिया गया है. बैठक का मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य यही था कि भाजपा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में किसी कीमत पर वापस सत्ता में नहीं आना चाहिए. अब आगे क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा, लेकिन विपक्षी एकता का जो पहला प्रयास देखा गया, उससे यह कहा जा सकता है कि देश के लगभग सभी राजनीतिक दल भाजपा की नीति से बुरी तरह पीड़ित हैं और इसे देश के लिए खतरा मानते हुए वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकने का विपक्षी दलों ने निश्चय कर लिया है. इस पहली बैठक में अभी भविष्य के लिए संभावित प्रधानमंत्री का चेहरा तय नहीं किया गया है, लेकिन द्विअर्थीय संवादों से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने एक इशारा राहुल गांधी के लिए कर दिया है कि `आप शादी कर लीजिए, बारात पूरा विपक्ष चलेगा.` बैठक में शामिल सभी विपक्षी दलों ने साथ जुड़ने की जो एकजुटता दिखाई है, वह भाजपा के 80 का दशक की याद दिलाता है, जब संसद में भाजपा के दो सदस्य हुआ करते थे और फिर 42 दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग, एनडीए) बनाया गया और जनता कांग्रेस के शासन से ऊबकर 303 संसद सदस्यों के साथ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की बागडोर उनके हाथों में पकड़ा दी. इन विपक्षी दलों की बैठक पर तरह-तरह से आलोचना भी होगी और इनकी एकता को तोड़ने का भरपूर प्रयास भी किया जाएगा. इस विपक्षी एकता बैठक के कई मायने निकाले जा रहे हैं. पहला यह कि सत्तारूढ़ भाजपा को अपने सूत्रों से जो जानकारी मिली होगी, उससे वह डर गई और आलोचना करने लगी. तर्कहीन आलोचना की शुरुआत गृहमंत्री तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कर दी है और कहा कि पटना में आयोजित विपक्षी एकता की बैठक एक फोटो सेशन है. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि `भ्रष्टों का महाठगबंधन (महागठबंधन) ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा.` दूसरा यह कि इस बैठक में शामिल कई विपक्षी दलों के नेताओं को तरह-तरह के प्रलोभन देकर ईडी, सीबीआई का डर दिखाकर उन्हें तोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिसकी शुरुआत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी को तोड़कर कर दिया गया है. वैसे, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी प्रदेश में उतने प्रभावशाली नहीं हैं कि उनका दल भाजपा के लिए राज्य में जीत की राह आसान कर सके. ऐसा इसलिए कि यदि उनका दल इतना प्रभावशाली होता तो फिर कभी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे. वैसे, जीतनराम मांझी की योजना तो यही थी कि मुख्यमंत्री द्वारा विश्वास में दी गई कुर्सी पर स्थायी रूप से काबिज हो जाएं, लेकिन राजनीतिक रूप से मंझे हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने उनकी नहीं चली और तभी से वह सरकार को अस्थिर करने के लिए प्रदेश में षड्यंत्र रचते रहे हैं. इसका अवसर उन्हें अब मिला है, जब सभी विपक्षी एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध हो रहे थे. उन्हें अपना खेमा बदलना पड़ा और अब भाजपाई जुमलों से प्रभावित होकर कुर्सी के लोभ में भाजपा में शामिल हो गए. सच तो यह है कि डरा हुआ तो विपक्ष है ही; क्योंकि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कई नेताओं को यही डर तो सता रहा है कि यदि 2024 में भाजपा सत्ता में फिर वापस लौट आई तो उसके बाद देश में चुनाव नहीं होंगे. दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्रियों, क्रमश: अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान का प्रेस कान्फ्रेंस में हिस्सा न लेने को भी उसी रूप में देखा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी विपक्षी एकता के पक्ष में नहीं है. आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस से समर्थन की मांग करते हुए कहा कि इसके बिना उनके लिए किसी भी गठबंधन में शामिल होना मुश्किल होगा. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी दिल्ली में आप प्रवक्ता के आरोपों को लेकर केजरीवाल से कड़ी नाराजगी जताई. इस बीच, दोनों नेताओं के बीच कहासुनी भी हो गई, जिसे टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने शांत करवाया. यह स्पष्ट है कि गैर-भाजपा दलों के बीच यह अहसास बढ़ रहा है कि आपसी दुश्मनी उन्हें भाजपा का आसान शिकार बना सकती है, जिसकी सत्ता की भूख पचास वर्ष राज्य करने की है. तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश गैर-भाजपा पार्टियां कांग्रेस और भाजपा की राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी के प्रति शत्रुता से पैदा हुई थीं, आम जमीन ढूंढना और भी अधिक अस्पष्ट हो जाता है. यदि विपक्षी दलों की एकता परवान चढ़ गया तो निश्चित तौर पर यह मानना पड़ेगा कि बिहार के मुखमंत्री नीतीश कुमार लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पदचिह्नों पर चल रहे हैं, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में अपने को सामने लाने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है. वैसे, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन में कठिन परिश्रम के बल पर आगे बढ़े नेता हैं. बिहार के ये दोनों सर्वमान्य नेता हैं, साथ ही देश के हर राज्य के लोग इन दोनों को जानते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जो छवि अब राहुल गांधी की विकसित हो गई है, उससे कोई इनकार नहीं कर सकता. अभी से जो इस बैठक में असहमति कई पार्टियों द्वारा और विशेषरूप से आम आदमी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दिखाई गई , उससे यही लगने लगा है कि यह एकता का प्रयास भी कहीं सच में ताश के पत्ते की ही तरह बिखर न जाए. डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]
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