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Brijendra Dubey
इजरायल और हमास की जंग के बीच ही अब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर भी उंगलियां उठने लगी हैं. इजरायल के पत्रकारों से लेकर नेतन्याहू के करीबी भी अब उनकी उस नीति का जिक्र करने लगे हैं, जिसके तहत पीएम ने हमास को अपना सबसे करीबी बना लिया था. दबी जुबान से अब लोग कह रहे हैं कि पीएम नेतन्याहू के उस पाप को इजराइल के मासूम भोगने को मजबूर हुए हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं.
इजराइल से निकलने वाले अखबार हेरात्ज में दिमित्री शुम्स्की ने लिखा है कि साल 2009 में नेतन्याहू ने एक ऐसी विनाशकारी, विकृत राजनीतिक सिद्धांत को अपनाया, जिसके बाद वह मानने लगे कि फिलिस्तीन की कीमत पर हमास को मजबूत करना इजराइल के लिए अच्छा होगा. 5 मई 2019 को नेतन्याहू के करीबी गेर्शोन हाकोहेन ने यनेट न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘हमें सच बताना होगा.’ उनका कहना था कि नेतन्याहू की रणनीति दो देशों के विकल्प को रोकने की है. इसलिए वह हमास को अपना निकटतम साझेदार बना रहे हैं. खुलेआम तो हमास दुश्मन है, लेकिन गुप्त रूप से, यह एक सहयोगी है. हाकोहेन रिजर्व बलों में मेजर जनरल थे.
रेस्पॉन्सिबल स्टेटक्राफ्ट में मेरोन रैपोपोर्ट ने लिखा है कि 1996 में नेतन्याहू पहली बार पीएम बने थे. तब से ही नेतन्याहू ने फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ किसी भी बातचीत से बचने की कोशिश की है. बातचीत की बजाय उन्होंने हमेशा इससे बचने का ही विकल्प चुना. नेतन्याहू ने बार-बार दावा किया कि इजरायल को समृद्धि के लिए फिलिस्तीनियों के साथ शांति की जरूरत नहीं है. इसकी सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक ताकत इसके बिना भी काफी है. सच्चाई है कि उनके शासन के वर्षों के दौरान खासतौर पर साल 2009 और 2019 के बीच, इजरायल ने आर्थिक समृद्धि का अनुभव किया. इसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति में सुधार हुआ. ऐसे में वह मानने लगे कि वह सही रास्ते पर चल रहे हैं.
नेतन्याहू ने कभी भी गाजा और वेस्ट बैंक को अलग करने की कोई नीति नहीं बनाई. न ही उन्होंने फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) और फिलिस्तीनी देश की स्थापना की इसकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को कमजोर करने के लिए एक हथियार के तौर पर हमास का यूज किया. नेतन्याहू साल 2018 में इस बात पर सहमत हो गए थे कि कतर, गाजा में हमास सरकार को फंड देने के लिए हर साल लाखों डॉलर ट्रांसफर करेगा. जंग में अब तक इजरायल की तरफ 1600 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि हजारों लोग घायल हो गए हैं. लोगों का दबी जुबान में ही सही, लेकिन अब मानना है कि दो देशों के अपने सिद्धांतों की रणनीति के तहत नेतन्याहू ने हमास को अपने बहुत करीब कर लिया था. सार्वजनिक तौर पर तो हमास को वह इजरायल का दुश्मन कहते थे, लेकिन असल में वह उनका करीबी साथी बन चुका था. उसी का खामियाजा इजराइल भुगत रहा है.
7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर सबसे खतरनाक आतंकी हमला किया. इस आतंकी हमले में हमास ने जो रणनीति अपनाई है, वह अब तक की सबसे एडवांस्ड और सोफेस्टिकेटेड मानी जा रही है. आसमान, समुद्र और जमीन से हमास ने इजरायल पर हमले किए. इसे मिलिट्री की भाषा में मल्टी-डोमेन ऑपरेशन के तौर पर जाना जाता है. हमला इतना ज्यादा खतरनाक था कि इसने इजरायली आयरन डोम डिफेंस सिस्टम को भी फेल कर दिया. रॉकेट हमलों से पहले ड्रोन का प्रयोग करके हमास ने इजरायल की सिक्योरिटी पोस्ट्स पर हमले किए. हमलों के लिए हमास ने पहले से ट्रेनिंग तक ली थी.
हमास के हमलों की तैयारी को लेकर आई रिपोर्ट हैरान करने वाली है. ट्रेनिंग के बाद हमास के आतंकी इजरायल की सीमा में दाखिल हुए. इजरायल पर कई दिशाओं से हमले हुए. कई नागरिकों और सैनिकों की हत्या कर दी गई और सैन्य उपकरणों पर आतंकियों का कब्जा हो गया. आतंकियों ने एक म्यूजिक फेस्टिवल को निशाना बनाया और कुछ लोगों को बंधक बना कर ले गए. रक्षा विशेषज्ञों की मानें, तो हमास ने कई योजनाएं उस समय बनाई होंगी, जब इजरायल राजनीतिक प्रदर्शनों से गुजर रहा था, जिन्होंने देश को महीनों तक हिला कर रख दिया था. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की तरफ से लाए गए कानून के विरोध में जनता प्रदर्शन कर रही थी. माना जा रहा है कि इन प्रदर्शनों की वजह से इजरायल की खुफिया जानकारी कमजोर पड़ गई थी.
कहा जा रहा है कि हमास ने अपनी तैयारियों को छिपाने के लिए इजरायली खुफिया जानकारी का अच्छे से अध्ययन किया होगा. उसने इजरायल के स्रोतों को पहचाना होगा और उन्ही पर ध्यान केंद्रित किया होगा. कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हमास ने सुरंग के बुनियादी ढांचे में भी भारी निवेश किया है. अंडरग्राउंड बंकर का अच्छा खासा नेटवर्क तैयार किया गया है. इन सुरंगों ने उसे इजरायल की चेकपोस्ट्स तक गुजरने और चौंकाने वाले हमले करने में सक्षम बनाया है.
सुरंगों और अंडरग्राउंड फैसिलिटज से हमास को बड़ा फायदा हुआ है. हमास ने साल 2014 में जब इजरायल पर हमला किया तो हमास को समझ आया कि शहरों में युद्ध कैसे लड़ा जा सकता है. इसके बाद उसने आईईडी, सुरंग नेटवर्क, मनोवैज्ञानिक युद्ध और बाकी रणनीतियों का फायदा उठाया. ऐसा लगता है कि हमास ने साल 2002 में हुई जेनिन की लड़ाई के दौरान जेनिन सैनिकों की रणनीति से हमले की प्रेरणा ली थी. अप्रैल 2002 में, जेनिन शरणार्थी शिविर पर एक इजरायली हमले में महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 52 फिलिस्तीनियों की मौत हो गई थी. इसमें 23 इजरायली सैनिक मारे गए और कई अन्य घायल हो गए. जेनिन की लड़ाई से हमास ने जो प्रमुख सबक सीखा है, वह घायलों को पहुंचाने और इजरायली मिलिट्री ऑपरेशंस को ब्लॉक करने में आईईडी का यूज था. आईईडी कम लागत वाले और आसानी से छिपाए जाने योग्य होते हैं. तब से हमास ने अपने जखीरे में आईईडी को शामिल कर लिया और उयका उपयोग इजरायली सैन्य वाहनों, गश्ती दल और प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के लिए किया है.
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