Search

हजारीबाग : सब्जबाग दिखाकर छीन ली गई विस्थापितों की संजीवनी

  • त्रिवेणी सैनिक कंपनी के पीआरओ ने नुकसान को बताया फैक्ट्री बंद होने के पीछे की वजह
  • 200 से अधिक बेरोजगार हुईं महिलाएं भावी जीवन को लेकर हैं परेशान

फैक्ट्री में काम करने वाले सभी कर्मी हैं विस्थापित

Hazaribagh : त्रिवेणी सैनिक कंपनी की जिस टेक्सटाइल फैक्ट्री को विस्थापितों की संजीवनी बताई गई, उसका सब्जबाग दिखाकर छीन लिया गया. कंपनी की ओर से जिसकी चर्चा हर प्लेटफॉर्म पर की जाती रही, आज उसी फैक्ट्री को मैनेजमेंट ने बंद कर दिया. बड़कागांव की कोल माइंस पकरी बरवाडीह परियोजना एनटीपीसी के अधीनस्थ काम करने वाली कंपनी त्रिवेणी सैनिक माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कम से कम 200 से अधिक महिलाएं बेरोजगार हो चुकी हैं. आने वाले दिनों में फैक्ट्री खुलने के आसार भी कम होते जा रहे हैं. त्रिवेणी सैनिक माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड ने सीएसआर फंड से टेक्सटाइल फैक्ट्री 2016 में शुरू की थी. अचानक बिना नोटिस के ही फैक्ट्री बंद कर दी गई. अब 200 से अधिक महिलाओं का जीवन यापन कैसे होगा, यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. त्रिवेणी अपेरल्स एंड टेक्सटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से यह फैक्ट्री विस्थापित परिवारों के लिए खोली गई थी. कंपनी का कहना था कि सीएसआर फंड से फैक्ट्री को चलाई जा रही थी. इसके तहत ही 200 से अधिक महिलाएं काम कर रही थीं. इस फैक्ट्री को त्रिवेणी सैनिक कंपनी स्टेट ऑफ आर्ट अर्थात विस्थापन बना आशीर्वाद मॉडल के रूप में दिखाती रही है. उनका यह मॉडल अब बंद हो चुका है.

‘त्रिवेणी सैनिक कंपनी ने विश्वास के साथ किया धोखा’ 

फैक्ट्री बंद होने के बाद फुलवंती देवी कहती हैं कि एनटीपीसी ने उनकी जमीन अधिग्रहित की. त्रिवेणी सैनिक ने जमीन के बदले में नौकरी देने का वादा किया था. इसे देखते हुए एनटीपीसी कंपनी को उन लोगों ने जमीन दी. लेकिन सात साल के अंदर ही फैक्ट्री बंद हो गई. त्रिवेणी सैनिक कंपनी ने विश्वास के साथ धोखा किया है. नाजिया खातून कहती हैं कि वेतन से ही दो बच्चों का भरण-पोषण पिछले कई सालों से करती आ रही है. लेकिन अब जीने का सहारा छीन लिया गया. अगर कंपनी को धोखा देना ही था, तो उसने फैक्ट्री ही क्यों खोली. उन लोगों का यह भी कहना है बड़े-बड़े सपने दिखाए गए और आज वह सपना चूर-चूर कर दिया गया. सुनीता देवी और पिंकी कुमारी भी टेक्सटाइल फैक्ट्री में पिछले कई सालों से काम कर रही हैं. उन्होंने भी अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि एनटीपीसी ने जमीन मांगी और उसके अधीन काम करने वाली त्रिवेणी सैनिक कंपनी ने विश्वास दिलाया कि राष्ट्रीय स्तर की फैक्ट्री गांव में खोली जाएगी. जो भी विस्थापित हैं, उन्हें रोजगार दिया जाएगा. रोजगार तो दिया गया, लेकिन अब यह कहा जा रहा है कि फैक्ट्री घाटे में चल रही थी. इस कारण टेक्सटाइल फैक्ट्री बंद की जा रही है. उनका यह भी कहना है कि त्रिवेणी सैनिक जैसी कंपनी ने जब टेक्सटाइल फैक्ट्री खोली, तो उन्हें बाजार भी तलाश करना चाहिए था. यह जिम्मेवारी ग्रामीणों की नहीं है.

‘स्थानीय राजनीति की शिकार हो गई फैक्ट्री’ 

फैक्ट्री बंद करने को लेकर त्रिवेणी सैनिक कंपनी के पीआरओ अरविंद देव ने कहा कि फैक्ट्री स्थानीय राजनीति की शिकार हो गई. कभी हड़ताल, तो कभी प्रदर्शन से काम प्रभावित हुआ और उत्पादन घाटे में चला गया. घाटे को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. इसे देखते हुए यह स्थिति बन गई कि फैक्ट्री ही बंद कर दी जाए. इसे भी पढ़ें : रूस">https://lagatar.in/russias-mission-moon-failed-luna-25s-cross-landing-on-the-moon/">रूस

का मिशन मून फेल, लूना-25 की चंद्रमा पर क्रैस लैंडिंग
[wpse_comments_template]

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp