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हजारीबाग : दृष्टि बाधित बच्चियां सीख रहीं आत्मरक्षा के गुर, बोलीं- अब नहीं लगता डर

मुंबई के प्रशिक्षक दे रहे सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग, साइटसेवर्स और जेएसएलपीएस की संयुक्त पहल

Gaurav Prakash Hazaribagh : हजारीबाग में दृष्टिबाधित बच्चियां आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं. मुंबई से आए प्रशिक्षक उन्हें सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे रहे हैं. यह प्रशिक्षण साइटसेवर्स और जेएसएलपीएस की संयुक्त पहल पर शुरू की गई है. 16 से 21 अगस्त तक चले प्रशिक्षण शिविर में साइटसेवर्स और झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के संयुक्त प्रयास से लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सिखाया जा रहा है. शिविर में आई लड़कियों ने बताया कि सेल्फ डिफेंस सीखना बहुत आसान नहीं था. अब प्रशिक्षण पाने के बाद वह आत्मविश्वास से लबरेज हैं कि अपनी रक्षा खुद कर सकती हैं. सुदूरवर्ती गांवों से 16 दृष्टिबाधित बच्चियां आत्म सुरक्षा के गुर सीख रही हैं. इन बच्चियों में कुछ शत प्रतिशत दृष्टि बाधित या फिर कम दृष्टि वाली हैं. इसे भी पढ़ें : अवैध">https://lagatar.in/illegal-mining-case-advocate-missing-for-petition-filed-for-cbi-probe-police-engaged-in-search/">अवैध

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देशभर में 1000 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं अरविंद खेरे 

मुंबई से आए अरविंद खेरे पिछले 18 वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों से 1000 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं. अरविंद ने बताया कि हजारीबाग में प्रशिक्षण शिविर में 16 दृष्टिबाधित लड़कियों को प्रशिक्षण दिया है. हजारीबाग आने का यह दूसरा मौका मिला है. यहां की बच्चियां प्रशिक्षण लेने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि लड़कियों में आईक्यू लेवल भी काफी ऊंचा है. बहुत ही कम समय में बच्चियों ने कई बारीकियां को समझा और सीख भी लिया है. बच्चियों को ट्रेनिंग देने में काफी अच्छा भी लगा. उन्होंने यह भी कहा कि पूरे झारखंड में हजारीबाग ही ऐसा जिला है, जहां ऐसा कार्यक्रम चलाया गया है. उन्होंने बताया कि सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग के तहत पंच, किक, फॉरवर्ड और बैकवर्ड हैंड मूवमेंट आदि सिखाया जाता है, जो न केवल लड़कियों को परिस्थितियों का सामना करने के लिए सशक्त बनाता है, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाता है. दैनिक गतिविधियों जैसे कि वे कैसे एक दरवाजा खोलती हैं, अपने दांत को ब्रश करती हैं, सीढ़ियां चढ़ती हैं आदि डिफेंस के गुर सिखाए जाते हैं. इस पद्धति के माध्यम से वे बहुत जल्दी सीखती हैं और पांच दिनों की अवधि में ही पूरी तरह से प्रशिक्षित हो जाती है. हालांकि, विभिन्न अक्षमताओं को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग तकनीक सिखाई जाती है.

अब मिताली के अकेले बाहर जाने पर मां को फिक्र नहीं

प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने आयी मिताली ने बताया कि सेल्फ डिफेंस सीखना बहुत आसान नहीं था पर अब वह आत्मविश्वास से लबरेज है. उनकी मां ने कहा कि जब वह अकेली बाहर जाती थी, तो मिताली की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी. लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह अपनी रक्षा कर सकती है.

हमलावर का सामना करने को तैयार है साजिया

छात्रा साजिया ने कहा कि वह देख नहीं सकती. लेकिन फिर भी अब अपनी रक्षा कर सकती है. अगर हमलावर पीछे से मारता है, तो अपनी कोहनी से उस पर हमला कर सकती है. अगर हमलावर सामने से हमला करता है, तो हथेली से मारकर अपनी रक्षा कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि खुद को बचाने के गुर सीखे हैं.

यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए यह पहल बेहतर : शांति मार्डी 

झारखंड स्टेट लेवल यूथ प्रमोशन सोसाइटी की स्टेट को-ऑर्डिनेटर शांति मार्डी बताती है कि दिव्यांग लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न होने का अधिक खतरा होता है. इसलिए महत्वपूर्ण है कि उन्हें सेल्फ डिफेंस सिखाया जाए, ताकि अपनी रक्षा कर सकें. इसे देखते हुए 16 बच्चियों को आत्म सुरक्षा की ट्रेनिंग दी गई. महत्वपूर्ण बात यह है कि पांच दिनों की ट्रेनिंग में इनमें अभूतपूर्व परिवर्तन भी देखने को मिल रहा है. आज के समय में सबसे महत्वपूर्ण है आत्म सुरक्षित होना. बेटियां अगर सुरक्षित रहेंगी, तो उनका सर्वांगीण विकास भी हो सकता है. दिव्यांग बच्चियां और उनके परिवार हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि वह कैसे सुरक्षित रहेंगी. इस तरह की ट्रेनिंग से वह अब खुद को सुरक्षित मान रही हैं. इसे भी पढ़ें : 1000">https://lagatar.in/illegal-mining-scam-of-1000-crores-ed-sent-summons-to-dsp-rajendra-dubey/">1000

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