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हजारीबाग: लकड़ी, थर्माकोल और टीन के घरौंदों ने ली मिट्टी के घरकुंडों की जगह

Gaurav Prakash Hazaribagh: शहर में लकड़ी, थर्माकोल और टीन के घरौंदों ने अब मिट्टी के घरकुंडे की जगह ले ली है. शहर में परंपरागत खिलौनों के वजूद मिटते नजर आ रहे हैं. बदलते जमाने में आधुनिकता का असर पर्व-त्योहार पर भी पड़ने लगा है. घरौंदा पूजा में भी आधुनिकता का रंग चढ़ गया है. पहले घर की बच्चियां मिट्टी से घरौंदों का निर्माण करती थीं. अब मिट्टी के घरौंदों की जगह लकड़ी, थर्माकोल और टिन के घरौंदे ने जगह ले लिया है. यही कारण है कि हजारीबाग के बजार में रेडीमेड घरौंदों की खूब बिकी हो रही है. दरअसल दीपावली की शाम घरौंदे की पूजा छोटी बच्चियों व अविवाहित कन्याओं की ओर से किया जाना काफी शुभ माना जाता है. घरौंदा में विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन रखकर इसमें लावा, मुढ़ी, चना, मटर, चावल के अलावा मिठाई भरे जाने की परंपरा है. पुजारी आनंद पाठक बताते हैं कि भाई की उन्नति, धन-धान्य से उसके परिपूर्ण होने की कामना से घरौंदा पूजन किया जाता है. दीपावली की शाम बहनें मिट्टी के दीये जलाकर मिठाई, मूढ़ी, लावा व बताशा आदि मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ घरौंदा पूजन करती हैं. यही कामना की जाती है कि भाई का घर भी अन्न-धन से भरा पूरा रहे. घरौंदा पूजा के बाद बहनें अपने भाइयों को प्रसाद खिलाती हैं. समय के साथ सबकुछ बदल गया. नई पीढ़ी की बच्चियां मिट्टी का घरौंदा बनाना पसंद नहीं कर रही हैं. हजारीबाग के दीपावली बाजार में घरौंदा खरीदने आयीं पूजा कुमारी बताती हैं कि रेडीमेड घरौंदा ही खरीदना पसंद करती हैं. एक तो समय नहीं है कि मिट्टी लाएं और घरौंदा तैयार करें. घरौंदा बनाने में काफी समय लगता है. दूसरा उतना धैर्य नहीं कि एक ही चीज में उतना वक्त दिया जाए. रानी कुमारी बताती हैं कि जब वह स्कूल में पढ़ा करती थीं, तो दादी घरौंदा बनाने में मदद करती थीं. दादी के बाद की पीढ़ी मम्मी-पापा और घर में कोई बताने वाला भी नहीं है. इस कारण भी घरौंदा बाजार से खरीद कर लाते हैं और विधि विधान के साथ पूजा करते हैं. इसे भी पढ़ें–  पीएम">https://lagatar.in/pm-modi-will-worship-ramlala-virajman-this-evening-ayodhya-will-be-lit-with-18-lakh-lamps/">पीएम

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हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी गांव की बच्चियां मिट्टी का घरौंदा बनाना पसंद करती हैं. हजारीबाग के लूटा गांव की रहने वाली रिचा बताती हैं कि सभी बच्चियां एक साथ मिलकर घरौंदा बनाती हैं. इसमें उनकी बहन और मां भी मदद करती हैं. घरौंदा बनाने के लिए दीपावली के एक सप्ताह पहले से मेहनत करते हैं. नदी के किनारे से मिट्टी लाते हैं. उसके बाद मिलकर मिट्टी से घरौंदा तैयार करते हैं. उसे रंग बिरंगे रंग से रंगते हैं, सजाते हैं और फिर दीपावली के साथ सभी बहनें मिलकर पूजा करते हैं. झंडा चौक पर घरौंदा बेचने वाले मनोहर बताते हैं कि हजारीबाग में अब अधिकांश लोग रेडीमेड घरौंदे की खरीदारी कर रहे हैं. खासकर शहरी क्षेत्र वाले. वे लोग 400 से 1100 रुपए तक के घरौंदे बनाकर रखते हैं. उनका कहना है कि आधुनिकता का असर पर्व-त्योहार पर भी पड़ा रहा है, जो अच्छा नहीं है. सभी लोगों को अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाए रखने की जरुरत है. इसे भी पढ़ें–  डीजीपी">https://lagatar.in/dgp-neeraj-sinha-and-dg-anurag-gupta-released-the-book-ready-reference/">डीजीपी

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