NewDelhi : समलैंगिक विवाह यानी पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री के विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने या नकारे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच में सुनवाई शुरू हो गयी है. सुनवाई के क्रम में याचिकाकर्ताओं के वकील मुकुल रोहतगी ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की. साथ ही SC को सुझाव दिया कि कानून में पति-पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है.
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अनुच्छेद 14 के अनुसार समानता के अधिकार की रक्षा हो जायेगी
तर्क दिया कि इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14 के अनुसार समानता के अधिकार की रक्षा हो जायेगी. लेकिन केंद्र की ओर से दलील पेश करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की. तुषार मेहता ने फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात कहते हुए कहा कि जब तक राज्य इसमें सीधे न जुड़े तब तक इस पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा.
इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील मुकुल रोहतगी ने 377 के अपराध के दायरे से बाहर किये जाने के मुद्दे से अपनी दलील शुरू की. कहा कि समलैंगिकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामला पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था
मामले की तह में जायें तो 13 मार्च को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह मामला पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था. इस बेंच में सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. सुनवाई के क्रम में मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार समानता के अधिकार के तहत विवाह को मान्यता दी जानी चाहिए. कहा कि सेक्स ओरिएंटेशन सिर्फ महिला -पुरूष के बीच नहीं, बल्कि समान लिंग के बीच भी होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है
अपनी बात पर जोर देते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है. लेकिन हालात बदले नहीं है. उन्होंने समलैंगिकों के साथ भेदभाव किये जाने की बात कही. रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाया कि उसने हमेशा अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए अंतरजातीय और अंतर-धार्मिक जोड़ों के अधिकार की रक्षा की है.
समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता को भेदभाव करार देते हुए कहा कि यह LGBTQIA+ जोड़ों की गरिमा और एटीएम संतुष्टि की जड़ पर आघात करता है. तर्क दिया कि LGBTQ+ नागरिक देश की आबादी में 7 -8 फीसदी हैं.
आईपीसी की धारा 377 डिक्रिमिनलाइज कर दी गयी है
जान लें कि सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को पूर्व में ही डिक्रिमिनलाइज कर दिया है. इसके बाद भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं रह गया है. हालांकि अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं है. SC में दायर याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े अन्य कानूनी प्रावधानों को चुनौती दी गयी है और समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की गुहार लगाई गयी है.
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