NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट अब छह दिसंबर को इस बात की समीक्षा करेगा कि चुनावी बॉन्ड योजना के जरिए राजनीतिक दलों को राशि प्राप्त करने की अनुमति देने वाले कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की वृहद पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए या नहीं. खबर है कि आज की सुनवाई में केंद्र सरकार ने SC में इलेक्ट्रॉल बॉन्ड सिस्टम को पारदर्शी, करार दिया. बता दें कि NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने SC में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की मांग की थी. इस मामले में तत्कालीन CJI एसए बोबडे ने अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था.
SC posts for Dec 6 pleas challenging provisions of Finance Act 2017 which paved way for anonymous electoral bonds.
Centre tells SC that methodology of electoral bonds is absolutely transparent mode of political funding & it is impossible to get black money or unaccounted money. pic.twitter.com/lbvULBxAJM
— ANI (@ANI) October 14, 2022
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मोदी सरकार की इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गयी थी
खबरों के अनुसार सुनवाई के क्रम में वकील प्रशांत भूषण ने इसे बॉन्ड का गलत उपयोग करार दिया था. आरोप लगाया था कि इसके उपयोग शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में कर रही हैं. कहा था कि बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है. चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी हासिल नहीं कर सकता है. प्रशांत भूषण ने इसे राजनीतिक दलों को रिश्वत देने का एक तरीका कहा था. जान लें कि मोदी सरकार की इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गयी थी, हालांकि सुनवाई 2019 में शुरू हुई. सुनवाई के क्रम में 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारियां चुनाव आयोग को दें. हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई थी
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चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया
दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया. इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कहा गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था.इस केस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा था कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी. चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल किये जाने को लेकर सुनवाई फिर से स्थगित कर दी गयी. इसके बाद मामले पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई.
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काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं चुनावी बॉन्ड
नियमानुसार बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीद सकता है. खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी पड़ती है. खरीदने वाला जिस पार्टी को बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1फीसदी वोट मिला होना चाहिए. डोनर द्वारा बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है.
2017 में अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पेश करते समय दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आयेगी. यह भी कहा था कि इससे ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा. लेकिन बॉन्ड योजना के विरोधियों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती, इस कारण ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं.