Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जमानत प्रक्रिया से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन न करने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है.
हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस आनंदा सेन की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा लगता है कि मजिस्ट्रेट सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं, खासकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में. सुनवाई के दौरान अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट को संवेदनशील और जागरूक होना चाहिए.
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की. याचिकाकर्ता जिनकी उम्र 66 वर्ष है, उन्होंने मजिस्ट्रेट कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. निचली अदालत ने 21 अप्रैल 2025 को यह कहते हुए उनकी याचिका का निपटारा कर दिया था कि यह शिकायत आधारित मामला है और संज्ञान लिये जाने के बाद गिरफ्तारी की कोई आशंका नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता को केवल अदालत में पेश होना होगा.
हालांकि याचिकाकर्ता ने बाद में दोबारा अदालत का रुख किया और बताया कि मजिस्ट्रेट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें हिरासत में ले लिया गया. हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी( न्याय मित्र) एडवोकेट जितेंद्र शंकर सिंह ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता को सेशन कोर्ट से जमानत मिल चुकी है.
लेकिन मजिस्ट्रेट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के सतेंद्र कुमार एंटिल बनाम सीबीआई' (2022 LiveLaw (SC) 577) मामले में दिये गये स्पष्ट दिशानिर्देशों का उल्लंघन है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जहां संज्ञान लिया गया हो और समन जारी हो, वहां आरोपी को वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जा सकती है.
ऐसी स्थिति में आरोपी को हिरासत में लिये बिना या अंतरिम जमानत देकर उसकी जमानत याचिका पर निर्णय किया जाना चाहिए. इस गंभीर उल्लंघन को देखते हुए, झारखंड हाईकोर्ट ने झारखंड न्यायिक अकादमी के निदेशक को निर्देश दिया है कि संबंधित मजिस्ट्रेट को न्यायालय समय के बाद कम से कम दो दिन का विशेष प्रशिक्षण दिया जाये.
इस प्रशिक्षण का उद्देश्य उन्हें सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों की समुचित जानकारी देना है