Search

पश्चिम बंगाल में भाजपा कैसे बढ़ी!

Sagar Singh लोग पूछते हैं कि वर्ष 2019 के बाद अचानक भाजपा पश्चिम बंगाल की राजनीति में इतना ऊपर कैसे आ गयी. आखिर उससे पहले 75 साल तक भाजपा का कोई आधार भी नहीं था बंगाल में. वामपंथी इसका इल्जाम तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी पर लगाते हैं. कारण ये है कि कांग्रेस से अलग होने के बाद वर्ष 2001 में ममता बनर्जी का एनडीए गठबंधन में शामिल होना. हालांकि तहलका मामले में बीजेपी का नाम आने के बाद ही उन्होंने उस समय रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. वर्ष 1999 लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस बीजेपी के साथ लड़ी और पश्चिम बंगाल में 8 सीटें जीतने में कामयाब रही. जबकी बीजेपी को कोई सफलता नहीं मिली. ध्यान रहे कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी वर्ष 1998 में कांग्रेस से अलग होकर बनी थी और पार्टी का मुख्य उद्देश्य राज्य से वाम मोर्चा की सरकार को हटाना था. राज्य कांग्रेस के नेताओं से ममता बनर्जी के मतभेद ही इसलिए थे कि उनका मानना था कि राज्य कांग्रेस के कुछ नेता वाम सरकार के लिए सॉफ़्ट कॉर्नर रखते हैं. ऐसे में अपनी नयी बनी पार्टी को विस्तार देने के लिए ममता बनर्जी को केंद्र की राजनीति में भविष्य दिखा और उन्होंने बीजेपी से गठबंधन किया. इसके बाद वर्ष 2006 विधानसभा चुनाव भी तृणमूल ने बीजेपी के साथ लड़ा. इस चुनाव में तृणमूल का प्रदर्शन खास नहीं रहा और बीजेपी तो खाता भी नहीं खोल पायी. इसके बाद तृणमूल और बीजेपी का साथ हमेशा के लिये छूट गया. बीजेपी अपने दम पर प्रयासरत रही, मगर उनका जनाधार पहले सा ही रहा. हां, इस बीच लोकसभा में उनका खाता जरुर खुल गया दार्जिलिंग से. लेकिन सवाल वहीं का वहीं है अभी तक कि फिर बीजेपी का इतना जनाधार कैसे बढ़ गया. तो इसका जवाब ये है कि वर्ष 2011 में तृणमूल की भारी भरकम जीत के बाद वाम मोर्चा की ताकत राष्ट्रीय स्तर पर बहुत घट गयी. कांग्रेस उस समय तृणमूल के साथ गठबंधन में थी. इधर, दिल्ली में भाजपा के अंदर एक बड़ा बदलाव आ रहा था. अटल-आडवानी की जगह नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह और अरुण जेटली जैसे नेता शीर्ष पर आ रहे थे. पूरा देश राम मन्दिर के नाम पर घनघोर ध्रुवीकरण से गुजर रहा था. रही सही कसर अन्ना आन्दोलन ने पूरी कर दी और नरेंद्र मोदी की लहर पूरे देश की हिन्दी पट्टी में चलने लगी. इसी लहर पर सवार होकर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और एनडीए की प्रचंड जीत हुई. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 34 सीटें जीत कर केंद्र में चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी. बीजेपी पहली बार अपनी सीटों की संख्या को तीन तक पहुंचाने में कामयाब हुई और पश्चिम बंगाल में उनका वोट परसेंटेज 15% तक पहुंच गया. मतलब, बीजेपी की जो आंधी चली थी, वो ममता बनर्जी के सामने बेअसर ही रही. दो साल बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तब भी बीजेपी महज 3 सीट ही जीत पायी. इसके बाद शुरु हुआ बीजेपी का पश्चिम बंगाल और नॉर्थ ईस्ट के प्रदेशों पर विशेष ध्यान देने का प्रोग्राम. जिसके तहत त्रिपुरा और आसाम में लोकल बॉडीज के साथ मिलकर या स्थापित पार्टियों के नेताओं को तोड़कर बीजेपी में शामिल करके अपना वर्चस्व बढ़ाया गया. जल्द ही त्रिपुरा की 25 साल की वाम मोर्चा की सरकार को हरा कर सत्ता पर कब्जा किया. इसके बाद NRC और CAA को ढाल बनाकर असम में भी सरकार बनाने में कामयाब हुए. अब बीजेपी का वन प्वाइंट प्रोग्राम था- पश्चिम बंगाल में ताकत बढ़ाना. इसका सबसे बढिया मौका मिला सारदा चिट फंड घोटाले से. इस घोटाले के नाम पर वाम मोर्चा और बीजेपी ने ममता बनर्जी को खूब घेरा. फिर CBI और ED का इस्तेमाल करके तृणमूल के नेताओं को तोड़ने का अभियान शुरु हुआ. साथ ही साथ वाम मोर्चा के कैडर को बीजेपी में सम्मिलित करने का खेल भी चलता रहा. तृणमूल में नंबर-2 की पोजिशन रखने वाले मुकुल रॉय जैसे नेता को CBI और ED के जरिये बीजेपी ने भगवा जामा पहना दिया. फिर उन्हीं के जरिये, अर्जुन सिंह जैसे कद्दावर नेता को भी बीजेपी में शामिल कर लिया गया. उस वक्त बहुत से नेता ऐसे भी रहे जो तृणमूल में रह कर भी मुकुल रॉय के लिये जमीन तैयार करते रहे. अधिकारी परिवार ऐसे ही नेताओं में रहे. बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति को जम कर हवा दी गयी. वामपंथी वोटरों को बरगला कर वोट बैंक में इजाफा किया गया. ध्यान रहे कम सीटें मिलने के बावजूद भी वर्ष 2011 में वाम मोर्चा का वोट परसेंटेज 38% और 2016 में लगभग 25% था. बहरहाल बीजेपी अपने मकसद में कामयाब रही और वर्ष 2019 में लगभग 19% वामपंथी वोटों की बदौलत 18 सीटें जीतने में कामयाब रही. इसके बाद से बीजेपी लगातार">https://english.lagatar.in/">लगातार

 मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर अपना वोट बैंक बनाने के प्रयास में रही और मुकुल रॉय जैसे नेता के सहारे तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को तोड़ने में लगातार">https://english.lagatar.in/">लगातार

 सफ़ल रही. जिसका नतीजा ये हुआ की आज बीजेपी तृणमूल के साथ सीधी टक्कर में है. जबकि, वाम मोर्चा और कांग्रेस हासिये पर दिख रहे हैं. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp