alt="" width="720" height="540" /> तस्वीरः रांची के धुर्वा में लगने वाला साप्ताहिक हाट शालीमार[/caption]

कैसे पड़ा 65 साल पुराने बाजार का नाम शालीमार

Shubham Kishor Ranchi: अगर आप रांची में रहते हैं तो आपने कभी न कभी शालीमार बाजार का नाम सुना ही होगा. आप वहां ख़रीदारी के लिए भी गए होंगे. वर्तमान में शालीमार साप्ताहिक बाजार अवैध महसूल वसूली के लिए चर्चा में है. लेकिन रांची के सबसे पुराने बाजार में से एक शालीमार बाजार का नामकरण कैसे हुआ. इसका इतिहास बहुत ही रोचक है. झारखंड की राजधानी रांची (तत्कालीन बिहार का भाग) में हैवी इंजीनियरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड (एचईसी) की स्थापना 31 दिसंबर 1958 को हुई. एचईसी को स्थापित करने में कई कंपनियों ने भागीदारी निभाई. जिसमें विदेशी से लेकर भारतीय कंपनियां शामिल थीं. एचईसी परिसर में आवासीय कॉलोनियों के निर्माण में कई कंपनियां और ठेकेदारों की भूमिका थी. उनमें एक कंपनी का नाम शालीमार था, जिसने आवासीय कॉलोनियों के निर्माण में योगदान दिया था. उस क्षेत्र में एक मैदानी भाग था, जहां शालीमार कंपनी ने अपने मजदूरों के रहने के लिए अस्थायी निर्माण किया. बुनियादी सुविधाओं को लेकर मजदूरों को दूर नहीं जाना पड़े इसलिए ठेकेदार ने वहां बाजार लगवाना शुरू करवाया. [caption id="attachment_873599" align="alignnone" width="720"]
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alt="" width="720" height="540" /> तस्वीरः रांची के धुर्वा में लगने वाला साप्ताहिक हाट शालीमार[/caption]
alt="" width="720" height="540" /> तस्वीरः रांची के धुर्वा में लगने वाला साप्ताहिक हाट शालीमार[/caption]