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तीसरे महायुद्ध की आहट के बीच शांति अपील और प्रतिबंध कितने कारगर!

Faisal Anurag तो क्या यह तीसरे महायुद्ध की आहट है? 1990 में बर्लिन की दीवार गिराए जाने के बाद तो कहा गया था कि अब भविष्य में विश्व महायुद्ध इतिहास का एक त्रासद अध्याय की तरह ही याद किया जाएगा, लेकिन यूक्रेन रूस विवाद पर जिस तरह दुनिया बंटी दिख रही है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि युद्ध सीमित होगा या फिर वह एक भयावहता में बदल दिया जाएगा. ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का एलान कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति अपील तनाव को कम कर सकेगी, यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता. फ्रांस के राष्ट्रपति इनामुएल मेक्रों के वार्ता प्रयासों की संभावना भी धूमिल हो गयी है. लेकिन मुख्य सवाल इस समय यह है कि चीन किसका साथ देगा. चीन ने शांति बनाए रखने और राजनयिक हल निकालने की अपील जरूर की है. लेकिन पहले से ही जिस तरह नाटो देश चीन को घेरने में लगे हुए थे उससे चीन में ज्यादा देर तटस्थ या तमाशबीन रहने की संभावना नहीं ही है. ताइवान को लेकर चीन को अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्र पहले से ही आंखे दिखा रहे हैं. भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में कहा है कि सभी पक्ष संयम बरतें और सुरक्षा हितों और इलाके में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए तनाव को तुरंत कम करने की आवश्यकता को महसूस करें. संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या और घाना के प्रतिनिधियों ने एक तरह से पुतिन के एलान को `शब्दों का एक असाधारण युद्ध` करार दिया है. दक्षिण कोरिया ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दी है. सुरक्ष परिषद में रूसी प्रतिनिधि वसीली नेबेंज्या ने परिषद में कही गयी बातों को "प्रत्यक्ष मौखिक हमला" करार दिया. रूस ने यह भी कहा कि तनाव बढ़ाने में पश्चिमी देशों की भूमिका पर भी गौर करने की जरूरत है. रूस के समर्थन में कोई देश खुल कर  सामने तो नहीं आया. भारत और चीन देानों के ही सभी देशों से यूक्रेन में युद्ध को टालने के लिए शांति और कूटनीति का जोरदार प्रयास करने का आग्रह किया. दोनेत्स्क और लुहांस्क यूक्रेन के दो ऐसे इलाके हैं, जहां पहले से ही विद्रोह के हालात बने हुए हैं. रूसी असर वाले इन दोनों में अब रूस ने मान्यता दे दी है. वाल्दिमीर पुतिन के इस निर्णय की पश्चिमी देशों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की बैठक शांति की अपील के रस्म के साथ खत्म हो गयी, लेकिन जिस तरह नाटो देशों की सक्रियता बढ़ रही है, उससे साफ जाहिर है कि पुतिन का अगला कोई भी कदम युद्ध के आगाज को अंजाम दे सकता है. पुतिन ने तो दोनेत्स्क और लुहांस्क को मान्यता देते हुए यह भी कह दिया है कि रूसी सैनिक वहां शांति स्थान के लिए जाएंगे. यूक्रेन सहित नाटो देशों ने इसे यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन बताया है. पुतिन ने अपने देश को संबोधित करते हुए दावा किया कि यूक्रेन पहले कभी कोई देश नहीं था, उसे बनाने में रूस की ही भूमिका रही है. क्रीमिया की तरह दोनेत्स्क और लुहांस्क का मामला भी जिस तरह फंस गया है, उसमें मिंस्क शाति समझौते की याद दिलायी जा रही है. लेकिन दुनिया के पूरे बीसवीं सदी में देखा है कि शांति समझौतों का तब मतलब नहीं रह जाता, जब महाशक्तियों के बीच टकराव चरम पर पहुंचता है. अमेरिका ने चीन ओर रूस को घेरने के लिए कई विश्वमंच बनाया. इसके साथ इस समय जब सारी दुनिया कोविड के बाद की मंदी से पूरी तरह उबर नहीं पायी है, अनेक आंतरिक संकटों का सामना कर रही है. जिस तरह 1930 की मंदी ने दूसरे महायुद्ध की पृष्ठभूमि बनाने में निर्णायक भूमिका निभाया था, आज के हालात कमोवेश उसी तरह बने हुए हैं. लंदन से प्रकाशित द गार्डियन में शॉन वाकर ने लिखा है कि पुतिन के दिमाग में केवल दो क्षेत्रों की मान्यता भर से ज्यादा कुछ योजना है. यूक्रेन को कुतरने की योजना को दुनिया सहजता से स्वीकार नहीं कर सकी. वाकर के अनुसार, रूस का साथ देने के लिए बेलारूस को भी कुछ कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. वाकर ने लिखा है `` पुतिन के अंतिम शब्द कि अगर कीव ने हिंसा को नहीं रोका, तो वे `आने वाले रक्तपात ` के लिए जिम्मेदार होंगे, अत्यंत खतरनाक हैं. सहजता से समझा जा सकता है कि यह युद्ध की घोषणा जैसा ही है.`` इस समय बेलारूस में भारी संख्या में रूसी सैनिक मौजूद हैं. भारत ने 2014 में क्रीमिया के रूस में मिलाए जाने की घटना के समय कहा था ``रूस का बिल्कुल न्यायसंगत हित क्रीमिया में है. लेकिन पिछले 8 सालों में विश्व राजनीति में अनेक नए मोड़ आ चुके हैं. अमेरिका और भारत के बीच बेहतर रिश्ते बने हैं और क्वाड में वह अमेरिका के साथ है. बीबीसी ने भारत के संबंध में लिखा है ` सीमा पर चीन की आक्रमकता को देखते हुए भारत को न केवल रूस की ज़रूरत है, बल्कि अमेरिका और यूरोप की भी ज़रूरत है. यूक्रेन को लेकर रूस और पश्चिम के देश आमने-सामने हैं. ऐसे में भारत न तो किसी एक का पक्ष ले सकता है और न ही तमाशबीन रह सकता है.` [wpse_comments_template]

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