Deepak Ambastha
कन्हैया कुमार ने लाल कटोरा फेंक कर कांग्रेस का झोला डंडा थाम लिया है. कन्हैया कांग्रेस में राहुल गांधी की पसंद हैं, राहुल की पसंद तो नवजोत सिंह सिद्धू भी हैं पर हश्र देश दुनिया देख रही है, ध्यान आता है देश और राज्य की समस्या सुनने से अधिक अपने कुत्ते को बिस्कुट खिलाना पसंद करने वाले राहुल गांधी को कन्हैया की तेजी कब तक बर्दाश्त हो सकती है ? तपे तपाये कम्युनिस्ट जब कन्हैया की आंच से पिघलने लगे तो कांग्रेस में कन्हैया का क्या होगा ? हाथी खरीदना और हाथी पालना दो अलग-अलग बात है, कन्हैया के संदर्भ में कांग्रेस की दशा भी वैसी ही होने की संभावना है.
कन्हैया कुमार जहां की उपज हैं और जहां परवान चढ़े सब के सब कांग्रेस की सोच और तौर तरीकों से विपरीत हैं,कभी यह कहने वाले विद्रोही कन्हैया कि देश बर्बाद करने के लिए एक कांग्रेस काफी है, कांग्रेस के साथ गुज़र बसर करेंगे कैसे ? यह देखना दिलचस्प होगा.
साम्यवादी विचारधारा में रचे-बसे कन्हैया कांग्रेस को कैसे बर्दाश्त करेंगे और कांग्रेसी कन्हैया को कैसे बर्दाश्त करेंगे यह समय बताएगा.कन्हैया बहुत अच्छे वक्ता हैं, साम्यवादी सोच के साथ जब वह हमलावर होते हैं तो बरबस ध्यान खींच लेते हैं, लेकिन क्या कांग्रेसी चोले में उनकी धार बनी रह सकती है,अगर नहीं तो फिर उन्हें कांग्रेस में उन्हीं मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा जिनकी वजह से उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से किनारा किया है. कन्हैया को कम्युनिस्ट बर्दाश्त नहीं कर पाए तो कांग्रेसी ?
काबीलियत नाकाबिलियत से अलग यह बात तो तय है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के समानांतर कोई खड़ा नहीं हो सकता, फिर कन्हैया कुमार की यह फितरत भी नहीं है कि वो सिर झुकाए, ऊंगली बढ़ाए पार्टी निर्देश का इंतजार करें,देर सबेर टकराव तय है, सिद्धू ताजा उदाहरण हैं, कन्हैया के लिए सबक भी. सवाल उठना लाजिमी है कि कन्हैया क्या इस सत्य को आराम से मान लेंगे कि पार्टी में राहुल गांधी एकमात्र सत्य हैं बाकी सब माया है. जिस तामझाम, पोस्टरबाजी के साथ कांग्रेस में उनका आगमन हुआ है जाहिर है उनपर पार्टी को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी भी रहेगी, अगर कन्हैया इस राह पर तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो निश्चितता और अनिश्चय से भरे राहुल गांधी का भविष्य क्या होगा ? तब होने वाले टकराव की आशंका को आराम से नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. आज जिस कन्हैया के लिए स्वागत गान हो रहा है कल उसी से परेशान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, पंजाब में सिद्धू का इस्तीफा और राहुल गांधी की चुप्पी अच्छा उदाहरण है.
कन्हैया और विवादों का पुराना रिश्ता है, जेएनयू प्रकरण इसका उदाहरण है, कन्हैया पर संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु का समर्थन, देश विरोधी नारे लगाने समेत कई आरोप हैं मामला अभी कोर्ट में है. कन्हैया बिहार के बेगूसराय जिले से आते हैं जो कभी कम्युनिस्टों का गढ़ रहा है, वहां से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन चार लाख से अधिक वोटों से पराजित हो गए, कांग्रेस इनको सहारे वैरणी पार करने की योजना बना रही है, कन्हैया दो धारी तलवार हैं जान बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस इस तलवार से और लहुलुहान भी हो सकती हैं.
फिलहाल कांग्रेस ज़श्न मना रही है, कन्हैया के पार्टी में अवतरण का,यह बताया जा रहा है कि अब चमत्कार होने ही वाला है,एक बात दीगर है कि कांग्रेस कन्हैया को पा कर आत्ममुग्ध हो रही है, जिससे बचना चाहिए उसी में डुबकियां लगा रही है,इधर कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि कन्हैया पार्टी के जिस कमरे में बैठते थे वहां का एयरकंडीशनर खोल कर ले गए हैं, हालांकि एसी उन्होंने ने ही लगवाया था, कांग्रेस को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि ऐसे तेवर और विचार वाले कन्हैया से कांग्रेस कब तक निभाएगी, कन्हैया गए तो पार्टी की बची-खुची साख समेट ले जाएंगे क्योंकि कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है जहां ख़ुद एसी लगाना और खोलना पड़े तो कन्हैया ले क्या जाएंगे, राहुल गांधी विचार कर लें, फिलहाल प्रशांत किशोर की सलाह पर कांग्रेस चलने की तैयारी कर रही है, कन्हैया कुमार प्रशांत किशोर से इत्तेफाक नहीं रखते तो एक म्यान में दो तलवारें रहेंगी कैसे.
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