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अगर कोई ईश्वर है तो वो उन्नाव रेप पीड़िता के लिए तो नहीं है

Girish Malviya

 

अगर कोई ईश्वर है तो वो उन्नाव रेप पीड़िता के लिए तो नहीं है. यदि एक बार इस केस की टाइमलाइन देखेंगे तो आप पाएंगे कि ऊपर जो लिखा गया है वो पूरी तरह से सच है. कल उन्नाव रेप केस में उम्र कैद की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. कोर्ट ने सेंगर की सजा को तब तक के लिए सस्पेंड कर दिया है, जब तक उनकी अपील पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती. दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले से नाराज होकर पीड़िता और उसकी मां न्याय की मांग को लेकर दिल्ली के इंडिया गेट पर धरने पर बैठ गईं. जिसे रातों रात दिल्ली पुलिस ने हटा दिया. 

 

रेप केस की घटना जो एक नाबालिग लड़की के साथ 2017 मे घटित हुई थी, उस केस में शुरुआती वर्ष में कोई सुनवाई नहीं की गई. जबकि 2013 में जो रेप कानून में संशोधन किए गए हैं, उसमें माइनर लड़की के साथ बलात्कार से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई का काम दो महीने में पूरा करने का प्रावधान किया गया है. ऐसे मामलों में अपील की सुनवाई छह महीने में पूरा करने की बात कही गयी है.

 

रेप पीड़िता का कहना था कि कुलदीप सिंह सेंगर और उसके सहायकों ने वर्ष 2017 में उसके साथ रेप किया था, जब वह उनके पास नौकरी मांगने गई थी. लेकिन जब इसकी शिकायत उसने पुलिस को की तो पुलिस ने उसे भगा दिया. पीड़िता को मजबूर होकर यह कहना पड़ा कि पुलिस ने उसका केस दर्ज नहीं किया, तो वह लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के बाहर आत्महत्या कर लेगी. इसके बाद एसआईटी ने जांच की ओर उसने अपनी जांच में कहा कि विधायक के खिलाफ दुष्कर्म के पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं.

 

पुलिस ने विधायक के खिलाफ कोई कदम उठाने के बजाय रेप पीड़िता के पिता को ही गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के बजाय अपने पिता के खिलाफ कार्रवाई किए जाने से तंग आकर पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. तब यह मामला मीडिया के संज्ञान में आया. पीड़िता के आरोपों को सार्वजनिक करने के अगले ही दिन उसके पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. इस घटना के बाद जनाक्रोश फैल गया, जिसके बाद विधायक के भाई अतुल सेंगर को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. बाद में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को भी अप्रैल 2018 में गिरफ्तार किया गया. 

 

लेकिन रेप पीड़िता के खिलाफ पुलिस प्रताड़ना का सिलसिला यही नहीं रुका. जनवरी 2019 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने उल्टे पीड़िता, उनकी मां और उनके चाचा के खिलाफ जाली स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टीसी) तैयार करने को लेकर धारा 419, 420, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज कर लिया. पीड़िता अपने परिवारवालों और वकील के साथ रायबरेली जेल चाचा से मिलने गई और जेल से लौटते समय उसकी कार और ट्रक में भिड़ंत हो गई. हादसे में पीड़िता और वकील गंभीर रूप से घायल हैं. वहीं, पीड़िता की मौसी और चाची की मौत हो गई. यानी घटना के बाद एक-एक करके पूरे परिवार को ही खत्म कर दिया गया.

 

 

इस दुर्घटना से पहले पीड़िता ने चीफ जस्टिस को एक चिठ्ठी लिख कर अपनी जान को खतरा होने की पूरी जानकारी भी दी थी. 12 जुलाई 2019 को पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को भी खत लिखा. उसने इस खत में साफ-साफ न्यायपालिका के बिक जाने की बात लिखी. पत्र में पीड़िता ने लिखा कि 7 जुलाई 2019 को सुबह लगभग 9 बजे एक कार से अभियुक्त शशि सिंह के पुत्र नवीन सिंह, अभियुक्त कुलदीप सिंह के भाई मनोज सिंह और कुन्नू मिश्रा दो अज्ञात व्यक्ति के साथ मेरे दरवाजे पर आकर कार में बैठकर यह धमकी दी है कि हम लोगों ने जज को खरीदकर कुलदीप सिंह व शशि सिंह की जमानत मंजूर करवा ली है और तुम लोगों को फर्जी मुकदमे में जेल में डालकर सजा कराकर सड़ा देंगे. इसका उद्धरण तुम महेश सिंह के मुकदमे में देख चुके हो. अभी समय है सुलह कर लो.

 

इस घटना के एक दिन बाद 8 जुलाई को दिन में 10 बजे के लगभग शशि सिंह के पति हरिपाल सिंह मेरे घर आये और यह धमकी दी कि उपरोक्त मुकदमे में सुलह कर लो नहीं तो पूरे परिवार को फर्जी मुकदमे में जेल में सड़ाकर मार डालेंगे. लेकिन चीफ जस्टिस साहब ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा. जैसे-तैसे फैसले का दिन आया . इस फैसले में जज साहब ने सीबीआई पर जो टिप्पणी की थी, वह बताती है किस तरह से मोदी ओर योगी सरकार अपने विधायक को बचाने की कोशिश कर रही थी.

 

सीबीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए जज साहब ने अपने फैसले में लिखा है कि सीबीआई का रवैया पीड़ितों को परेशान करने वाला था. इस मामले में पीड़िता की तरफ से दिए गए बयान को जानबूझकर सीबीआई की तरफ से लीक किया गया. सबसे पहले तो इस मामले में सीबीआई ने चार्जशीट ही तकरीबन एक साल के लंबे फासले के बाद कोर्ट में दाखिल की, जिसका फायदा आरोपी को मिला.

 

सीबीआई ने कुलदीप सिंह सेंगर के फोन की जांच नहीं की. सीबीआई ने जिस नंबर की जांच की वो नंबर सेंगर नहीं, बल्कि सेंगर का पीए इस्तेमाल करता था. दरअसल, कोर्ट का इशारा इस तरफ था कि जांच एजेंसी अप्रत्यक्ष रूप से सेंगर का ही पक्ष मजबूत कर रही थी. सीबीआई को पॉस्को एक्ट की गाइडलाइंस का पालन न करने के मामले में भी कोर्ट ने फटकार लगाई और इस केस में कल दोषी कुलदीप सेंगर को आसान शर्तों पर जमानत पर छोड़ दिया गया. यह है इस देश में न्याय व्यवस्था. कहते हैं कि "Not only must Justice be done, it must also be seen to be done." कम से कम भारत की न्याय व्यवस्था के बारे ये तो नहीं कहा जा सकता.

 

 

डिस्क्लेमर :   यह टिप्पणी लेखक के फेसबुक वॉल से ली गई है...

 

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