Shubham Kishor
Ranchi : विश्वनाथ सिंह (मुख्य प्रशिक्षक, भारतीय खेल प्रधिकरण, रांची सह समन्वयक, झारखंड खेलो इंडिया ) लगभग 35 साल की सेवा के बाद पद से सेवानिवृत्त हुए. मंगलवार को रांची में मोरहाबादी मैदान में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस दौरान खास बातचीत में विश्वनाथ सिंह ने अपने वॉलीबॉल के सफर के बारे में बात की. बताया कि उनके पिता एचईसी में वॉलीबॉल खेलते थे और वहां कोच भी थे. उन्हीं के साथ मारवाड़ी मैदान में जाने के क्रम में वॉलीबॉल खेलने की शुरूआत हुई. शेखर बोस जो कि विश्वनाथ के वॉलीबॉल के गुरु रहे, उनके मार्गदर्शन में खेल के गुर सिखे. उन्होंने बताया कि स्पोर्ट्स उनके खून में है. घर में शुरूआत से स्पोर्ट्स का माहौल रहा और अभी भी खेल के क्षेत्र में उनके परिवार के लोग सेवा दे रहे हैं. उन्होंने खिलाड़ियों को कहा कि अगर गुरुभक्ति करनी है तो एकलव्य की तरह करो, अर्जुन की तरह नहीं. तो तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.
2017 तक लड़कियों की टीम को प्रशिक्षण दिया
पलामू के रहने वाले विश्वनाथ ने बताया कि पीपरा में उनका गांव है और 1958 में उनके गांव में अखाड़ा बना, जहां 30 पहलवान लड़ते थे और उन्हीं के घर में रहते और खाते थे, तो स्पोर्ट्स से वो बचपन से जुड़े हैं. 1987 में अमेठी के सुलतानपुर से कैरियर की शुरूआत करने के बाद 1988 में रांची आए. भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ मिलकर सेंटर की शुरूआत की. 2000 तक बरियातू गर्ल्स स्कूल में एनएसडीसी स्कीम में सेवा दी. आईएएस अधिकारी पीके सिन्हा के मोरहाबादी में सेंटर शुरू करने के बाद महिला टीम वहां आई और उसका जिम्मा विश्वनाथ सिंह को मिला. 2000 से लेकर 2017 तक लड़कियों की टीम को प्रशिक्षण दिया.
अब वॉलीबॉल को आगे बढ़ाने का काम करेंगे
पुराने दिनों को याद करते हुए विश्वनाथ सिंह ने बताया कि पहले खिलाड़ियों के अंदर जज्बा होता था. उस वक्त बहुत सारे क्लब होते थे. सभी खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा रहती थी. अपने क्लब को जिताने के लिए. आज के दौर में क्लब कम हो गए, सरकारी टीम का दबदबा ज्यादा बढ़ गया. बताया कि उनके द्वारा प्रशिक्षित किए गए लगभग 200 खिलाड़ियों को नौकरी भी मिली है. उन्होंने मोरहाबादी में वॉलीबॉल कोर्ट बनाने का श्रेय वरिष्ठ अधिकारी संतोष को दिया. विश्वनाथ सिंह ने कहा कि रिटायर होने के बाद वॉलीबॉल को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.
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