Lagatar Desk : सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना एक्ट (धारा 498A) के तहत दर्ज मामलों में गिरफ्तारी को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जब कोई महिला अपने ससुराल पक्ष के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराए, तो पुलिस अगले दो महीनों तक उसके पति या उनके रिश्तेदारों को गिरफ्तार न करे.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशा निर्देशों को बरकरार रखते हुए लिया गया, जिसका उद्देश्य इस कानून के दुरुपयोग को रोकना है.
शीर्ष कोर्ट ने एक महिला आईपीएस अधिकारी से जुड़े मामले में यह टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि शिकायत की जांच के लिए पहले परिवार कल्याण समिति को मामला सौंपा जाए. इस दौरान पुलिस को तुरंत गिरफ्तारी से बचना होगा, ताकि समझौते की संभावनाएं बनी रहें.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस फैसले का उपयोग किसी व्यक्ति के खिलाफ भविष्य में अदालती या प्रशासनिक कार्यवाही में नहीं होगा. यह कदम दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
जानकारी के मुताबिक, एक महिला आईपीएस अधिकारी, शिवांगी बंसल और उनके पति साहिब बंसल से जुड़े वैवाहिक विवाद के मामले में यह दिशा-निर्देश शीर्ष अदालत ने दिया है. इस मामले में दोनों पक्षों ने आपसी समझौता कर लिया था.
जिसमें बच्ची की कस्टडी, भरण-पोषण और संपत्ति हस्तांतरण जैसे मुद्दे शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस समझौते को संज्ञान में लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों को मंजूरी दी, जो धारा 498A के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाते हैं.
कोर्ट ने दो महीने के "कूलिंग-ऑफ पीरियड" की व्यवस्था लागू की है, जिसमें शिकायत दर्ज होने पर पुलिस तुरंत गिरफ्तारी नहीं करेगी. इसके बजाय, मामला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के तहत गठित परिवार कल्याण समिति (FWC) को भेजा जाएगा.
यह समिति दोनों पक्षों से बातचीत कर सुलह की संभावनाएं तलाशेगी और दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी. इस दौरान पुलिस मेडिकल रिपोर्ट, गवाहों के बयान जैसे साक्ष्य एकत्र कर सकती है, लेकिन गिरफ्तारी से बचेगी.
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