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सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के 15 मिनट पहले आने और एक घंटे बाद जाने का विरोध शुरू

Jamshedpur : अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ ने सरकार के प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के संचालन का समय बढ़ाने का कड़ा विरोध किया है. संघ के नेता सुनील कुमार, पूर्वी सिंहभूम जिला अध्यक्ष सुनील कुमार यादव, जिला महासचिव सरोज कुमार लेंका, प्रवक्ता ओम प्रकाश सिंह, संजय केसरी, माधिया सोरेन, सुधांशु शेखर बेरा ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि सरकार ने शिक्षकों को परेशान करने की नीयत से यह आदेश जारी किया है. यह पूर्णतः अप्रासंगिक और अव्यवहारिक है. इस आदेश को जल्द वापस लेने की मांग की गई है. संघ के नेताओं ने कहा कि इससे शिक्षा-शिक्षक हित में कोई लाभ नहीं होने वाला. नए विभागीय आदेश के तहत अब शिक्षकों को 15 मिनट पहले स्कूल पहुंचना होगा और बच्चों की छुट्टी के बाद भी एक घंटे तक स्कूल में रुकना होगा. शिक्षकों के लिए ग्रीष्मावधि में सुबह 8 बजे से 2 बजे तक और शीतकालीन अवधि में सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक का समय निर्धारित किया गया है. शिक्षक नेताओं ने कहा है कि बच्चों की छुट्टी के बाद भी शिक्षकों को एक घंटा विद्यालय में अलग से रोकने के आदेश का कोई औचित्य नहीं है. झारखंड में आरटीई के तहत 200 और 220 कार्य दिवसों की तुलना में औसतन 253 दिन स्कूल का संचालन होता है. अन्य विभाग के कर्मियों को 33 दिन का ईएल मिलता है. लेकिन शिक्षकों को उक्त ईएल के बदले ग्रीष्मावकाश दिया जाता है. इसलिए बढ़े हुए समय का आदेश न्यायसंगत नहीं होने के साथ ही छात्र हित में भी उचित नहीं है.

हड़ताल पर भी जा सकते हैं शिक्षक

संघ ने कहा है कि यदि बढ़े हुए समय संबंधी आदेश को वापस लेकर पूर्व की भांति समय को बहाल नहीं किया गया तो पूरे राज्य में जोरदार आंदोलन किया जाएगा. आवश्यकता पड़ी तो राज्य के सभी शिक्षक इस एक मुद्दे पर झारखंड में पहली बार हड़ताल पर जाने को विवश होंगे. ज्ञात हो कि झारखंड गठन के बाद 21 वर्षों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों की ओर से एक बार भी हड़ताल नहीं की गई है. एकीकृत बिहार में विभिन्न मांगों लेकर अक्सर आंदोलन और हड़ताल होते रहे हैं.

संघ ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया

केरल, कर्नाटक राज्य सहित फ्रांस और अन्य देशों का उदाहरण अंकित करते हुए जारी आदेश पर संघ के पदाधिकारियों ने सवाल किया है. नेताओं ने कहा कि क्या उक्त राज्य और देशों की भौगोलिक व सामाजिक स्थिति झारखंड के समान है? क्या उक्त राज्य और देशों में झारखंड की भांति 95% प्रधानाध्यापक का पद रिक्त है. प्रभारी प्रधानाध्यापक के भरोसे विद्यालय संचालित हैं? क्या उक्त राज्य एवं देशों में भी पिछले 25-30 वर्षों से शिक्षकों को प्रमोशन नहीं दिया गया है? क्या उक्त राज्य एवं देशों में भी झारखंड की तरह शिक्षकों को अध्यापन के अलावे एमडीएम का संचालन, चावल का वितरण, बच्चों का आधार कार्ड बनाना, बैंक खाता खुलवाना, बीएलओ कार्य, शिक्षकों को गोदाम से विद्यालय तक चावल लाने के लिए मजबूर करना, प्रखंड से किताब विद्यालयों तक लाना और अन्य गैर शैक्षणिक कार्य कराए जा रहे हैं? अगर ऐसा नहीं है तो वैसे राज्य और देश से झारखंड की तुलना कर शिक्षकों को प्रत्येक दिन अतिरिक्त एक घंटा कार्य करने का आदेश कहां तक न्यायसंगत है. यह विभागीय अधिकारियों को बताना चाहिए. [wpse_comments_template]

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