अब आप यह समझिये कि यह सूची क्या है?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के तमाम देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्योरा होता है. मसलन, लोगों को किस तरह का खाद्य पदार्थ मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता और मात्रा कितनी है और उसमें कमियां क्या हैं. इस इंडेक्स में दुनिया के विकसित देश शामिल नहीं होते हैं. साल 2006 में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट (आइएफपीआरआइ) नाम की जर्मन संस्था ने पहली बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक जारी किया था. `ग्लोबल इंडेक्स स्कोर` ज़्यादा होने का मतलब है उस देश में भूख की समस्या अधिक है. उसी तरह किसी देश का स्कोर अगर कम होता है तो उसका मतलब है कि वहां स्थिति बेहतर है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स को नापने के चार मुख्य पैमाने हैं - कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर. मोदी जी का न्यू इंडिया इन चारों मोर्चों पर फेल साबित हुआ है. हम दावे करते हैं कि हम अब विकासशील से विकसित देशों की सूची में आने वाले हैं. हम दावे करते हैं कि हम विश्व की सबसे बड़ी पांचवीं-छठी अर्थव्यवस्था हैं. लेकिन सच तो यह है कि हम भारत में सभी नागरिकों की भूख मिटा नहीं पाये हैं.अदम गोंडवी ने लिखा है
`उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया. पर हक़ीक़त ये है कि मौसम और बदतर हो गया`
हमारे न्यूज़ चैनल अपने देश में बढ़ती महंगाई से ज्यादा पाकिस्तान की भुखमरी की खबरें बताते हैं. लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि कोरोना काल में गहरे आर्थिक संकट झेलने के बावजूद अपनी स्थिति सुधारते हुए 88 वें स्थान पर पहुंच गया है. साल 2020 की इस लिस्ट में भारत (94) तो अन्य एशियाई देशों जैसे नेपाल(73), म्यांमार(69), श्रीलंका(64) और बांग्लादेश(75) से भी बहुत पीछे है. लेकिन इसके बावजूद न तो मोदी सरकार को शर्म आयेगी और न उसका गुणगान गाते रहने वाली मीडिया को. डिस्क्लेमर : लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं, ये इनके निजी विचार हैं.