डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने वैज्ञानिकों की बात नहीं मानी थी. जिसकी वजह से अमेरिका में 5.70 लाख लोगों की मौत हो गयी
London : प्रसिद्ध साइंस जर्नल नेचर के अनुसार भारत और ब्राजील की सरकारों ने कोरोना वायरस को लेकर वैज्ञानिकों द्वारा दी गयी सलाह को दरकिनार किया. इसलिए इन देशों में कोरोना की दूसरी लहर भयावह हो गयी. लिखा कि वैज्ञानिकों की सलाह मानी गयी होती तो कोरोना वायरस की खतरनाक दूसरी लहर को नियंत्रित करना आसान होता. साइंस जर्नल नेचर के अनुसार भारत और ब्राजील ने साइंटिस्ट्स की सलाह न मानकर कोरोना नियंत्रण का अच्छा मौका हाथ से जाने दिया.
जर्नल के अनुसार भारत और ब्राजील करीब 15 हजार किलोमीटर दूर हैं लेकिन दोनों में कोरोना को लेकर एक ही समस्या है. दोनों देशों के नेताओं ने वैज्ञानिकों की सलाह या तो मानी नहीं या फिर उस पर देरी से अमल किया. जिसकी वजह से दोनों देशों में हजारों लोगों की असामयिक मौत हो गयी.
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो कोविड-19 को छोटा फ्लू कहते रहे
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो लगातार कोविड-19 को छोटा फ्लू कहते रहे. उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह को दरकिनार कर दिया. ब्राजील सरकार ने लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की बाध्यता को ढंग से लागू नहीं कराया, वहीं भारत में सरकार ने वैज्ञानिकों की सलाह पर समय पर एक्शन नहीं लिया, जिसकी वजह से देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े और हजारों लोगों की जान चली गयी. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने वैज्ञानिकों की बात नहीं मानी थी. जिसकी वजह से अमेरिका में 5.70 लाख लोगों की मौत हो गयी.. दुनिया में कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में ही हुई हैं.
हजारों की संख्या में लोग चुनावी और धार्मिक आयोजनों में शामिल हुए
नेचर जर्नल ने अपने लेख में कहा है कि भारत को लेकर कहा कि देश में हजारों की संख्या में लोग चुनावी और धार्मिक आयोजनों में शामिल हुए. भारत में पिछले साल सिंतबर में कोरोना केस उच्चतम स्तर पर थे. तब 96 हजार लोग संक्रमित हो रहे थे. इसके बाद इस साल मार्च के शुरुआत में मामले कम होकर 12 हजार तक पहुंच गये थे. यह देखकर भारत सरकारआत्मसंतुष्ट हो गयी थी. इस दौरान सारे बिजनेस वापस से खोल दिये गये.
लोगों की भीड़ जमा होने लगी. लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना कम कर चुके थे. चुनावी रैलियां, धरने-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजन हो रहे थे. पूरी प्रक्रिया मार्च से लेकर अप्रैल तक चली. जिसकी वजह से कोरोना केस की संख्या तेजी से बढ़ी है.
भारत में वैज्ञानिक आसानी से कोविड-19 रिसर्च के डेटा एक्सेस नहीं कर पाते
नेचर जर्नल ने अपने लेख में कहा है कि भारत में वैज्ञानिक आसानी से कोविड-19 रिसर्च के डेटा एक्सेस नहीं कर पाते. जिसकी वजह से वैज्ञानिक सही भविष्यवाणी करने में विफल हो जाते हैं. वैज्ञानिकों को कोरोना के टेस्ट रिजल्ट और अस्पतालों में हो रहे क्लीनिकल जांचों के सही और पर्याप्त परिणाम नहीं मिल पाते. एक और बड़ी परेशानी है कि बड़े पैमाने पर देश में जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं हो पा रही है.
देश के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर कृष्णास्वामी विजयराघवन ने देश में मौजूद चुनौतियों की बात स्वीकार करते हुए कहि कि कैसे सरकार से अलग रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक डेटा एक्सेस कर सकते हैं. नेचर ने लिखा है कि दो साल पहले देश के 100 इकोनॉमिस्ट और आंकड़ों के रणनीतिकारों ने मोदी सरकार को पत्र लिखकर डेटा एक्सेस की मांग की थी.
पत्र तब लिखा गया था जब नेशनल स्टेटिस्टिकल कमीशन से कुछ सीनियर अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया था. उनकी मांग थी कि हमें सरकारी डेटा का पूरा एक्सेस नहीं मिलता. बता दें कि पिछले सप्ताह भारत में कोविड-19 की वजह से 4 लाख से ज्यादा लोग एक दिन में संक्रमित हुए. वहीं 3500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी..

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