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आत्मसंतुष्टि की कीमत चुका रहा भारत, चेतावनी के बाद भी दूसरी लहर का अंदाज नहीं लगा सकी केंद्र सरकार

“अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने एक रिपोर्ट छापी है. इसमें देश के एक टॉप रिसर्चर ने कहा कि केंद्र सरकार न सिर्फ कोविड-19 की दूसरी लहर का अंदाजा नहीं लगा सकी बल्कि एहतियाती कदम उठाने में भी ढिलाई बरती गयी. पढ़ें इसका हिंदी अनुवाद.”

New Delhi : चेतावनी के सभी संकेतों के बावजूद केंद्र कोविड -19 की दूसरी लहर का अंदाजा लगाने में नाकाम रहा और उन कदमों को उठाने में भी ढीला पड़ गया, जो तबाही को कम सकते थे. यह बात एक शीर्ष सरकारी शोधकर्ता ने कही है. यह भारत के उन अन्य विशेषज्ञों की बातों से मेल खाती है, जो कहते आ रहे हैं कि भारत ने आत्मसंतुष्टि की कीमत चुकायी है.

स्वास्थ्य शोधकर्ता, जो कोविड-19 पर केंद्र सरकार के राष्ट्रीय कार्यबल के सदस्य हैं, ने कहा कि दूसरी लहर और देश भर में अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी की वजह आत्मसंतुष्टि की वह भावना है. इस भावना के कारण भारत और बाहर के आ रहे उन आंकड़ों की अनदेखी कर दी गयी, जो एक बड़ी लहर की चेतावनी दे रहे थे. 

इस शोधकर्ता ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, "यह निराशाजनक और दुखद है. अब जो चल रहा है, उसे अचानक रोका नहीं जा सकता.  संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि इस बात के संकेत थे कि एक बड़ी लहर हमारी ओर आ रही है, लेकिन इस जानकारी को अपनी तैयारियों को बढ़ाने अथवा लोगों को कड़ी चेतावनी देने के लिए नहीं किया गया.

अब यब लहर अपना भयावह रूप दिखा रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीते गुरुवार को देश में कोविड-19 संक्रमण के 3,14,835 नये मामले सामने आये. अब देश भर में सक्रिय मरीजों की संख्या 2 करोड़ 29 लाख से अधिक हो गयी है, जो पिछले सितंबर में पहली लहर के दौरान दोगुने से भी अधिक है.

शोधकर्ता ने कहा कि अब हम सिर्फ आपने आप से पूछ ही सकते हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद अथवा भारत सरकार है. मेरे हिसाब से सभी इसके जिम्मेवार हैं. हम सामूहिक रूप से फेल रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों को धमकाया भी गया है. दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस विषय पर चर्चा के लिए पूछे जाने पर प्रतिक्रिया के लिए अनिच्छुक दिखा. 

बुधवार को स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि अब यह चर्चा करने का समय नहीं है कि हम क्यों चूक गये. या क्या हम चूक गये. क्या हमने तैयारी की थी. आज महामारी का मिलकर सामना करने का समय है. उनसे पूछा गया था कि क्या भारत कोरोना की दूसरी लहर का अनुमान लगाने से चूक गया था.

एक बार  हम इसका सामना कर लें और सफलतापूर्वक इससे बाहर निकल आयें. इसके बाद ही शायद हम इस पर विचार कर सकेंगे. फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारों की सारी ऊर्जा इस महामारी से निपटने, लोगों की अनमोल जानों की रक्षा करने तथा हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाने पर पर केंद्रित हैं.

कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कोरोना की दूसरी लहर के लिए लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं कि लोगों ने मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया. लेकिन इस स्वास्थ्य शोधकर्ता ने कहा कि जनता पर उंगली उठाना अनुचित होगा.

उन्होंने कहा कि आप लोगों को दोष नहीं दे सकते. लोग वही करेंगे जो वे करना पसंद करते हैं और जो उन्हें करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.  शोधकर्ता ने कहा कि लोगों को उचित मार्गदर्शन औऱ संदेश देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हम अपने पास उपलब्ध खतरे की चेतावनी को जनता तक पहुंचाने में सक्षम नहीं रहे.

शोधकर्ता ने बताया कि जनवरी 2021 में किये गये एक सर्वे में आईसीएमआर ने पाया था कि केवल 25 प्रतिशत लोग पहले से ही संक्रमित थे.  इसका मतलब था कि देश की 75 प्रतिशत आबादी अभी भी भविष्य की लहर के लिए अतिसंवेदनशील थी. हम यूरोप और अमेरिका के उदाहरण से भी जानते थे कि दूसरी लहरें पहली से बड़ी हो सकती हैं.

शोधकर्ता ने अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों की इस बात से सहमत दिखे कि अक्टूबर और दिसंबर 2020 के बीच महामारी के कम होने और नये मामलों की दैनिक संख्या में लगातार कमी आने के बाद सरकार ने चुनावी रैलियों और कुंभ मेले में होने वाली भीड़ पर नियंत्रण करने के लिए कोई गंभीर काम नहीं किया.

उन्होंने कहा कि कुंभ और चुनावी रैलियों में रोज हजारों लोग इकट्ठा होते थे. लेकिन स्वास्थ्य अधिकारियों ना मास्क पहनने और शारीरिक दूरी बनाये रखने के बारे में सरसरी सलाह जारी करके जिम्मेदारी पूरी कर ली. 

रामनारायण लक्ष्मीनारायण, जो  अर्थशास्त्री, महामारीविद हैं, ने कहा कि हम जो देख रहे हैं, वह अटल या अपरिहार्य नहीं था. रामनारायाण सेंटर फॉर डिसीज डायनामिक्स इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के संस्थापक निदेशक हैं. जो अमेरिका और भारत में एक शोध थिंक टैंक है.  उन्होने कहा कि ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन का इंतजाम प्रक्रिया का एक अंग होना चाहिए था. स्टेडियमों में हजारों बिस्तरों के साथ तैयारी भी संभव हो सकती थी.

कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बाल की खाल निकालने का कोई मतलब नहीं है कि कौन ज्यादा दोषी है. राजनीतिक नेता या उन्हें सलाह देनेवाले विशेषज्ञ. एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि यह ऐसी सरकार नहीं है, जो असहमति को बर्दाश्त करे. यदि विशेषज्ञ (आधिकारिक) लाइन के भीतर नहीं रहते, तो वे बाहर कर दिये जायेंगे. एक विशेषज्ञ ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि जो भी निर्वाचित होता है, जिम्मेदारी उस पर ही होती है.